मंडूक आसन से यह ध्वनित होता है कि इस आसन में मेढक की तरह आकृति बनायी जाती है। यह सामान्य आसन की श्रृंखला का एक महत्वपूर्ण आसन है। प्रातः अथवा सायंकाल कभी भी खाली पेट इस आसन को किया जा सकता है।
विधि :-
१--किसी पार्क अथवा खुले हुए वातावरण में कम्बल अथवा चटाई पर वज्रासन में बैठ जाएँ।
२-अपनी सांसों को सामान्य करते हुए कमर और गर्दन सीधी रखते हुए सामने की ओर किसी बिंदु को देखें।
३-दोनों हाथों की चारों अँगुलियों को मोड़ते हुए मुट्ठी को बंद कर उसे नाभि के अगल बगल इस प्रकार से रखें कि अंगुलियाँ पेट से लगी रहें और दोनों मुट्ठियाँ एक दुसरे को स्पर्श करती रहें ।
४- अब एक लम्बी साँस भरें और धीरे धीरे साँस निकालते हुए आगे की ओर इस प्रकार झुकें कि मस्तक आसन को स्पर्श कर ले किन्तु यह ध्यान रहे कि इस दौरान आपका नितम्ब एडियों से चिपका रहे। यदि ऐसा सम्भव न हो तो उसी सीमा तक झुके जहाँ तक एडी और नितम्ब एक दूसरे को स्पर्श करते रहें।
५- अपनी सांसों को बाहर की ओर रोकते हुए अर्थात बाह्य कुम्भक लगाते हुए थोड़ी देर तक रुकें और पुनः साँस भरते हुए धीरे धीरे ही उठें।
६-इस क्रिया को कम से कम पांच बार दुहरायें।
सावधानी :-
इस आसन को भोजन के आठ घंटे बाद ही करें। आगे झुकते समय उसी क्रम में साँस को बाहर निकालते जाएँ तथा उठते समय उसी क्रम में साँस भरते जाएँ। आगे झुकने के बाद जितनी देर तक आप रुके रहें उतना ही लाभकारी होगा। यदि आगे झुकते समय शरीर के किसी अंग में दर्द अथवा तनाव महशूस हो तो इस आसन को कदापि न करें और वज्रासन में ही बैठे रहें ।
परिणाम :-
१- इस आसन को करने से रीढ़ में लोच पैदा होती है तथा रक्त प्रवाह संतुलित रहता है।
२-मंडूक आसन को करने से पेट की चर्बी निरंतर कम होती जाती है./
३-शरीर को सुडौल एवं आकर्षक बनाने में इस आसन का विशेष योगदान होता है।
विधि :-
१--किसी पार्क अथवा खुले हुए वातावरण में कम्बल अथवा चटाई पर वज्रासन में बैठ जाएँ।
२-अपनी सांसों को सामान्य करते हुए कमर और गर्दन सीधी रखते हुए सामने की ओर किसी बिंदु को देखें।
३-दोनों हाथों की चारों अँगुलियों को मोड़ते हुए मुट्ठी को बंद कर उसे नाभि के अगल बगल इस प्रकार से रखें कि अंगुलियाँ पेट से लगी रहें और दोनों मुट्ठियाँ एक दुसरे को स्पर्श करती रहें ।
४- अब एक लम्बी साँस भरें और धीरे धीरे साँस निकालते हुए आगे की ओर इस प्रकार झुकें कि मस्तक आसन को स्पर्श कर ले किन्तु यह ध्यान रहे कि इस दौरान आपका नितम्ब एडियों से चिपका रहे। यदि ऐसा सम्भव न हो तो उसी सीमा तक झुके जहाँ तक एडी और नितम्ब एक दूसरे को स्पर्श करते रहें।
५- अपनी सांसों को बाहर की ओर रोकते हुए अर्थात बाह्य कुम्भक लगाते हुए थोड़ी देर तक रुकें और पुनः साँस भरते हुए धीरे धीरे ही उठें।
६-इस क्रिया को कम से कम पांच बार दुहरायें।
सावधानी :-
इस आसन को भोजन के आठ घंटे बाद ही करें। आगे झुकते समय उसी क्रम में साँस को बाहर निकालते जाएँ तथा उठते समय उसी क्रम में साँस भरते जाएँ। आगे झुकने के बाद जितनी देर तक आप रुके रहें उतना ही लाभकारी होगा। यदि आगे झुकते समय शरीर के किसी अंग में दर्द अथवा तनाव महशूस हो तो इस आसन को कदापि न करें और वज्रासन में ही बैठे रहें ।
परिणाम :-
१- इस आसन को करने से रीढ़ में लोच पैदा होती है तथा रक्त प्रवाह संतुलित रहता है।
२-मंडूक आसन को करने से पेट की चर्बी निरंतर कम होती जाती है./
३-शरीर को सुडौल एवं आकर्षक बनाने में इस आसन का विशेष योगदान होता है।
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