Wednesday 18 September 2013

जलनेति

मनुष्य के शरीर में दो समानांतर ध्रारायें प्रवाहित होती हैं /प्रथम प्राणशक्ति जो दाहिने नासिका छिद्र से और दूसरी मानसिक शक्ति जो बाएं नासिका छिद्र से प्रवाहित होती है /यह दोनों क्रमशः सूर्य नाड़ी एवं चन्द्र नाड़ी का प्रतिनिधित्व करती हैं /हठ योग के अन्तर्गत षटकर्म का वर्णन मिलता है /यह एक ऐसी तकनीक है जिससे शरीर की शुद्धि होती है और हड्डियों के भीतर व्याप्त विषाक्त तत्व बाहर निकल जाते हैं /जलनेति इसी प्रकार की एक वैज्ञानिक क्रिया है जो सामान्य व्यक्ति भी सावधानीपूर्वक कर सकता है /जलनेति योग की एक क्रिया है। यह योग की सप्त क्रियायों में से एक है। इसके तहत नैजल ट्रैक की सफाई के लिए नासिका के एक छिद्र से हल्के नमक युक्त पानी को अन्दर प्रविष्ट कराया जाता है और उसे दूसरे नाक छिद्र से बाहर निकाला जाया है। नासिका में पानी प्रविष्ट कराने के लिए एक विशेष पात्र का प्रयोग किया जाता है जिसे नेति पात्र कहते हैं।  
विधि :-
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         -सावधानी
          जलनेति का पात्र साफ और सूखा होना चाहिए। इसे वैक्टीरिया मुक्त करने के लिए गर्म पानी में ठीक से उबल लें और अपने हाथों को ठीक से साफ करके जलनेति क्रिया प्रारम्भ करें। सम्भव हो तो जलनेति के लिए परम्परागत पत्रों की जगह ऐसे वैज्ञानिक पात्र का प्रयोग करें जिसमें बल्ब सीरीज लगी हो अथवा स्क्वीज बाटल के रूप में हों। 





प्राणायाम

प्राणायाम शब्द प्राण एवं आयाम दो शब्दों से मिलकर बना है /प्राण का अर्थ श्वास ,जीवन ,चैतन्य ,ऊर्जा एवं जीवनीशक्ति होता है / इस प्रकार प्राणायाम को श्वास का विज्ञान भी  कहा जा सकता है ./ सामान्यतः प्राणायाम को सांसों के नियन्त्रण करने की क्रिया के रूप में जाना जाता है / इस प्रकार प्राणायाम श्वास लेने की  सर्वोत्कृष्ट क्रिया है जिसके माध्यम से वायु हमारे फेफड़ों में प्रविष्ट होकर अतिरिक्त ऊर्जा का संचार करती है/ दूसरे शब्दों में प्राणायाम, प्राण अथवा जीवन ऊर्जा के विस्तार एवं नियन्त्रण की एक क्रिया के रूप में जानी जाती है /
     योगशास्त्र में प्राणायाम के निम्नलिखित चार सोपान वर्णित हैं :-
  १-पूरक अर्थात श्वास को अंदर लेना /
  २-रेचक अर्थात श्वास को बाहर छोड़ना /
  ३- अन्तर्कुम्भक अर्थात श्वास लेने  के पश्चात यथासम्भव उसे अंदर रोकना /
  ४- बहिर्कुम्भक अर्थात श्वास को  निकालने के पश्चात् यथासम्भव कुछ देर तक बाहर रोके रखना /
   मानव शरीर में अन्नमय कोश ,मनोमय कोश ,प्राणमय कोश ,विज्ञानमय कोश ,एवं आनन्दमय कोश अन्तर्निहित होते हैं /शक्ति के सूक्ष्मतम रूप में वायु सर्वप्रमुख है /अतः हठयोग प्रदीपिका में  इसे उदान, अपान,समान ,प्राण ,तथा व्यान  पाँच श्रेणियों में विभक्त किया गया है /श्वास लेना  शरीर की एक महत्वपूर्ण क्रिया है क्योंकि जीवन श्वास से ही संचालित होता है /अतः यौगिक प्राणायाम यह प्रमाणित करता है कि मनुष्य जिस प्रकार और जितनी मात्रा  में साँस लेता है उतना ही प्रभाव प्रत्यक्ष रूप में शरीर एवं मन दोनों पर पड़ता है और यही प्रभाव ही मनुष्य के जीवन का निर्धारण करता है /  इस प्रकार प्राणायाम का प्रमुख उद्देश्य है फेफड़ों का पूर्ण उपयोग किया जाना और जीवनी शक्ति का अधिकाधिक संचय किया जाना /अधिक प्राण से शरीर की कोशिकाओं ,हड्डियों ,मांसपेशियों, रक्त एवं सामान्य स्वास्थ्य में सुधार होता है /प्राणायाम का दूसरा उद्देश्य है श्वास को धीरे धीरे लेना और उसके व्यवस्थित होने में सहायक होना /स्वामी सत्यानन्द जी का कथन है कि जो लोग श्वास तेजी से और अनियमित रूप से लेते हैं उनका शरीर एवं मन दोनों दुर्बल हो जाता है जिसके कारण वे घबराहट महशूस करते हैं / ऐसे लोगों की आयु भी कम हो जाती है /यौगिक श्वास क्रिया का तात्कालिक प्रभाव मन पर पड़ता है अर्थात धीरे धीरे श्वास लेने से चिंता एवं तनाव रहित होकर चित्त को एकाग्र करने में सहायता मिलती है /स्वामी शिवानन्द जी का कथन है "there is an intimate connection between the breath ,nerve currents and control of the inner prana or vital forces .prana becomes visible on the physical plane as motion and action ,and on the mental plane as thought .pranayam is the means by which a yogi tries to realize whithin his individual body the whole cosmic nature ,and attempts to attain perfection by attending all the powers of the univers ."
हठयोग एवं राजयोग में कुम्भक प्राणायाम पर विशेष बल दिया गया है किन्तु मेरा अपना मन्तव्य यह है कि सामान्य व्यक्ति अथवा बीमार व्यक्ति को कुम्भक कदापि नहीं करना चाहिए /कुम्भक क्रियाएं सिद्ध योगियों के लिए हैं जो प्राणायाम क्रिया में पारंगत होते हैं /सामान्य अथवा गृहस्थ व्यक्ति के लिए नाड़ीशोधन ,भ्रामरी ,शीतली प्राणायाम ही पर्याप्त हैं /१०-१५ सेकंड तक कुम्भक क्रिया करने में कोई हानि नहीं है किन्तु दीर्घ कुम्भक हेतु विशेष पात्रता होना अनिवार्य है /
प्राणायाम हेतु सामान्य निर्देश :-
योगशास्त्र में प्राणायाम हेतु अनेकानेक विधियों का वर्णन मिलता है किन्तु सामान्य एवं गृहस्र्थ व्यक्ति के लिए निम्नांकित बातों  पर विशेष ध्यान देना चाहिए :-
१- समय ;-प्राणायाम का समय प्रातः काल सूर्योदय के पूर्व अथवा सायंकाल सूर्यास्त के पश्चात का समय उपयुक्त माना गया है /
२- शारीरिक शुद्धता :- भोजन के आठ घंटे बाद खाली पेट अर्थात शौच क्रिया के पश्चात  स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनकर किया गया प्राणायाम उपयुक्त होता है किन्तु  विशेष परिस्थितियों में मल मूत्र त्याग करने के पश्चात् हाथ पैर धो करके भी इसे किया जा सकता है / 
 ३-भोजन :-शरीर में रक्त भोजन के सार तत्वों से निर्मित होता है /ग्रंथियां स्वस्थ और मजबूत रक्त से भोजन लेकर निर्मित होती हैं / मांस ,अंडे ,घी ,मक्खन ,मिठाइयाँ दैनिक भोजन में सम्मिलित नहीं होनी चाहिए / हल्का एवं सुपाच्य भोजन लेना चाहिए /फलों का अधिकाधिक उपभोग करना चाहिए /
४-   स्थान:- प्राणायाम के लिए उपयुक्त स्थान हरियाली युक्त पार्क ,छत अथवा खुली हुई बालकनी मानी गयी है /इसके अभाव में कमरे के अंदर दरवाजे एवं खिड़कियाँ खोलकर भी प्राणायाम कर सकते हैं किन्तु यह ध्यान रहे कि कमरा शीलनरहित,स्वच्छ एवं साफ़ होना चाहिए /
            

Wednesday 4 September 2013

मंडूक आसन

मंडूक आसन  से यह ध्वनित होता है कि इस आसन में मेढक की तरह आकृति बनायी जाती है। यह सामान्य आसन की  श्रृंखला का एक महत्वपूर्ण आसन है।  प्रातः अथवा सायंकाल कभी भी खाली पेट इस आसन को किया जा सकता है।
विधि :-
 १--किसी पार्क अथवा खुले हुए वातावरण में कम्बल अथवा चटाई पर वज्रासन में बैठ जाएँ। 
२-अपनी सांसों को सामान्य करते हुए कमर और गर्दन सीधी रखते हुए सामने की ओर किसी बिंदु को  देखें।
३-दोनों हाथों की चारों अँगुलियों को मोड़ते हुए मुट्ठी को बंद कर उसे नाभि के अगल बगल इस प्रकार से रखें कि अंगुलियाँ पेट से लगी रहें और दोनों मुट्ठियाँ एक दुसरे को स्पर्श करती रहें ।
४-  अब एक लम्बी साँस भरें और धीरे धीरे साँस निकालते हुए आगे की ओर इस प्रकार  झुकें कि मस्तक आसन को स्पर्श कर ले  किन्तु यह ध्यान रहे कि इस दौरान आपका नितम्ब एडियों से चिपका रहे। यदि ऐसा सम्भव न हो तो उसी सीमा तक झुके जहाँ तक एडी और नितम्ब एक दूसरे को स्पर्श करते रहें।  
५- अपनी सांसों को बाहर की ओर रोकते हुए अर्थात बाह्य कुम्भक लगाते हुए थोड़ी देर तक  रुकें और पुनः साँस भरते हुए धीरे धीरे ही  उठें। 
६-इस क्रिया को कम से कम पांच  बार दुहरायें।  
सावधानी :-
इस आसन को भोजन के आठ घंटे बाद ही करें।  आगे झुकते समय उसी क्रम में साँस को बाहर निकालते जाएँ तथा उठते समय उसी क्रम में साँस भरते जाएँ। आगे झुकने के बाद जितनी देर तक आप रुके रहें उतना ही लाभकारी होगा। यदि आगे झुकते समय शरीर के किसी अंग में दर्द अथवा तनाव महशूस हो तो इस आसन को कदापि न करें और वज्रासन में ही बैठे रहें । 
परिणाम :-
१- इस आसन को करने से रीढ़ में लोच पैदा होती है तथा रक्त प्रवाह संतुलित रहता है। 
२-मंडूक आसन को  करने  से पेट की चर्बी निरंतर  कम होती जाती है./
३-शरीर को सुडौल एवं आकर्षक बनाने में इस आसन का विशेष योगदान होता है।