Sunday 27 November 2011

उष्ट्रासन

उष्ट्रासन में ऊंट  की आकृति बनाई जाती है | इसी कारण इस उष्ट्रासन कहा जाता है | इसकी गणना कठिन आसनों में की जाती है फिर भी निरंतर अभ्यास से धीरे धीरे यह सहज हो जाता है |
विधि :----
१- अपनी जांघों एवं पैरों को एक साथ कर पैरों की उँगलियों को पीछे की ओर जमीन पर रखते हुए जमीन पर घुटने टेक कर बैठ जाएँ |
२-  अब घुटनों के बल खड़े हो जाएँ अपनी दोनों हाथ कमर पर रखकर दोनों अंगूठों से रीढ़ को दबाते हुए रीढ़ को पीछे की ओर झुकाएं एवं पसलियों को तानें |
३- अब श्वास पूरी तरह से बाहर निकल दें और दाहिनी हथेली दाहिनी एडी पर व बायीं हथेली बायीं एडी पर रखें |
४- अब हथेलियों से पैरों को दबाएँ और सिर को पीठ के पीछे ले जाएँ |
५- स्वाभाविक साँस के साथ इस स्थिति में लगभग आधे मिनट से एक मिनट तक रहें | बिना किसी दबाव के शरीर को स्थिर रखें और धीरे धीरे श्वास लेते रहें और छोड़ते रहें |
६- अब हाथों को एक एक करके हटायें और वज्रासन में बैठ जाएँ एवं थोडा रुककर सुखासन अथवा सामान्य आसन में बैठ कर विश्राम करें |
७- जंघों पर कोई दबाव न दें और यह आसन मंद गति से दो चार बार करें |
परिणाम :---
१- उष्ट्रासन से पेट का सम्पूर्ण व्यायाम होता है और कब्जियत भी दूर होती है |
२- पैनक्रियाज ,यकृत ,गुर्दा ,आँतों की बीमारियाँ इस आसन से दूर हो जाती हैं तथा नासूर एवं बवासीर रोगियों को भी राहत पहुंचाता है |
३- यह आसन अशक्त कंधों और कुबड़े व्यक्तियों के लिए विशेष लाभकारी है |
४- यह पीठ के दर्द में आराम पहुंचाता है और पीठ की रक्त वाहिनी नलिकाओं को क्षमता प्रदान करता है |
५- इस आसन से मांसपेशियों में लचीलापन आता है |
६- महिलाओं के मानसिक एवं जनेन्द्रिय सम्बन्धी समस्त रोगों को दूर करता है |
७- गर्भाशय को सुदृढ़ कर गर्भ धारण की शक्ति को बढ़ाता है और प्रदर रोग दूर करता है |
८- यह आसन मधुमेह रोगियों के लिए विशेष लाभदायक माना गया है तथा मूत्र सम्बन्धी रोगों की रोकथाम करता है |
९- शरीर के सभी ग्रन्थियों और नाड़ियों पर सकारात्मक प्रभाव डालता है |
१०- चूंकि इस आसन में रीढ़ को पीछे की ओर खींचा जाता है अतः बूढ़े यहाँ तक कि जिन व्यक्तियों को रीढ़ सम्बन्धी कोई रोग है वे भी इसे सावधानीपूर्वक कर सकते हैं | 
सावधानी :---
१- -जितनी देर तक बिना किसी दबाव के इस मुद्रा में रह सकें उतनी देर ही इसे करें |
२- यदि इस आसन के दौरान किसी अंग विशेष में दर्द या खिंचाव महशूस हो तो वापस वज्रासन में बैठ जाएँ |
 ३- यह आसन सुबह और शाम किसी भी समय खाली पेट किया जा सकता है |
४- जो महिलाएं तीन मास से अधिक समय से गर्भवती हों वे यह आसन ना करें |
५- हृदय रोग व उच्च रक्त चाप के रोगी भी इसे ना करें |

पश्चिमोत्तान आसन

पश्चिमोत्तान आसन एक सरल व अत्यंत लाभकारी आसन है |
विधि :---
-१- आसन पर बैठ जाएँ और अपने दोनों पैरों को इस प्रकार सीधे फैला दें कि दोनों पैर आपस में मिले रहें |
२- अब अपनी हथेलियों को जांघों पर शिथिलता पूर्वक रखें व शरीर को सीधा कर लें |
३- श्वास लेते हुए दोनों भुजाओं को एक साथ ऊपर उठते हुए माथे तक ले आयें और भुजाओं को कान से सटा दें |
४- अब श्वास को छोड़ते हुए धीरे धीरे कमर से ऊपरी भाग को आगे की ओर झुकाइए |
५- अपने हाथों से दोनों पैरों के अंगूठों को एक साथ पकड़ने का प्रयास कीजिये |
६- कपाल से दोनों घुटनों को स्पर्श करने की कोशिश कीजिये किन्तु यह ध्यान रहे कि दोनों घुटने मुड़ने न पायें |
७- अब बाह्य कुम्भक में ५-१० सेकेण्ड रुकें | इस दौरान पीठ की मांसपेशियों पर ध्यान केन्द्रित करें |
८- अब श्वास लेते हुए पुनः हाथों को ऊपर की ओर  सिर तक उठायें और फिर अगल बगल से हाथों को घुमाते     हुए उन्हें जंघाओं पर लाकर रख दें |  
९-  यथासंभव इस क्रिया को तीन चार बार करें |
परिणाम :----
-  इस आसन के करने से पेट की चर्बी कम होती है तथा मोटापा और कब्जियत दूर होती है |
२- यह नितम्बों की मांसपेशियों को सबल एवं आकर्षक बनाता है | 
३- यह पेट की गैस को बाहर निकालकर बेचैनी को दूर करता है |
४- यह मेरुदंड को लचीला बनाता है तथा पीठ दर्द को दूर करता है |
५- मधुमेह रोगियों के लिए यह रामबाण माना जाता है |
६- यह आसन महिलाओं के प्रजनन अंगों के विभिन्न रोगों की रोकथाम करता है |
७- इस आसन के निरंतर अभ्यास से मस्तिष्क का तनाव सहजता से दूर हो जाता है |

सर्वांगासन

सर्वांगासन जैसाकि इसके नाम से ही ध्वनित है शरीर के सम्पूर्ण अंगों का आसन |पृथ्वी की आकर्षण शक्ति का प्रभाव आपके शरीर पर सदैव बनाये रखता है क्योंकि इस आसन के दौरान कई महत्वपूर्ण अंगों और ग्रन्थियों पर भार पड़ने से रक्त का प्रवाह विपरीत दिशा में होने लगता है | सर्वांगासन से शरीर के उन अंगों में रक्त संचार बढ़ जाता है जिनमें सामान्य स्थिति में रक्त संचार कम रहता है |
विधि :---
१- आसन पर पीठ के बल लेट जाएँ और अपने दोनों हाथों को कमर के दोनों तरफ और हथेलियों को नीचे की तरफ करके  आसन पर  उन्हें अगल बगल रखें |
२- दोनों हथेलियों से जमीन को दबाएँ और दोनों पैर एक साथ धीरे धीरे ऊपर की ओर उठायें ,घुटनों पर उन्हें मोड़ें और पीछे की ओर इस प्रकार झुकाएं कि ठुड्डी  छाती को स्पर्श करने लगे |
३- अपनी दोनों कुहनियों को जमीन पर टिकाकर हाथों से पीठ को ऊपर उठने में  सहारा दें |
४- अब धीरे धीरे एवं सावधानी से अपने शरीर को उल्टा खड़ा करें और उसे सीधा रखें |
५- इस दौरान  दोनों पंजे आपस में मिले हुए एवं पैरों की उंगलिया आसमान की ओर तनी रहें |
६- अपनी शरीर को इस प्रकार ऊपर की ओर उठायें कि सम्पूर्ण शरीर सिर के पिछले भाग ,गर्दन ,कंधों और कुहनियों पर आधारित हो जाएँ |
७ -अपने पृष्ठ भाग को सीधा करें ताकि ठुड्डी छाती को स्पर्श करने लगे |
८- यथासम्भव रुकने के बाद शरीर को जमीन पर लाने के पहले  सर्वप्रथम पैरों को घुटने से मोड़ें एवं घुटने नीचे करें और उन्हें यथासम्भव सिर के निकट ले आयें |
९- अंततः अपने दोनों हाथों को जमीन पर रखें और उन पर अपने को इस प्रकार आधारित करें कि सिर पर शरीर का पिछला भाग अर्थात पीठ जमीन पर आ जाये |
१०- जब आपकी पीठ का निचला भाग जमीन पर हो तब पैरों को आकाश की ओर कीजिये और धीरे धीरे उन्हें जमीन पर ले आइये |
११-अब आप मानसिक दृष्टि से शरीर की मांसपेशियों को तनावरहित और ढीली कर दें एवं दो- तीन मिनट तक शवासन में लेट जाएँ |
सावधानी :---
१- उक्त रक्त चाप ,हृदयरोग एवं गर्दन कि पीड़ा में यह आसन कदापि न करें |
२- इस आसन में पैर उठने के पूर्व सिर और कुहनियों कि स्थिति को भलीभांति ठीक कर लें |
३- पैरों को सदैव धीरे धीरे ही उठायें व नीचे लायें | इससे पेट की मांसपेशियों को ठीक रखने में मदद मिलती है |
४- सम्पूर्ण गतिविधियाँ नियंत्रण,गम्भीरता और संतुलन के साथ पूरी की जाएँ तथा ध्यान विशुद्धि चक्र पर रहे|
परिणाम :------
१- योग का अतिउत्तम सिद्धांत है कि विपरीतिकरन द्व्रारा शरीर को विश्राम दिया जाये एवं रक्त संचार अच्छी प्रकार से हो |
२- यह आसन गले की ग्रन्थियों को प्रभावित कर वजन नियंत्रित करने में सहायक होता है तथा आँखों एवं मस्तिष्क की शक्ति विकसित करता है |
३- यह दमा ,धडकन ,श्वस्नोदाह एवं सिर दर्द में राहत देता है और स्वर को मुखरित करता है |
४- यह आसन पाचन क्रिया शुद्ध करता है तथा श्वास और यौन ग्रन्थियों को सक्रिय और विकसित करता है |
५- हर्निया की रोकथाम करके पैरों और अन्य तनाव पूर्ण अंगों को आराम देता है |
६- यह आसन मेरुदंड एवं स्नायुओं की जड़ों में पर्याप्त रक्त का संचालन करता है तथा मानसिक शक्ति प्रज्ज्वलित कर कुंडलिनी शक्ति जागृत करने में सहायक होता है |
७- यह मेरुदंड को अत्यधिक लचीला बना देता है और यकृत की कार्य प्रणाली में सुधार लाता है |
८- यह आसन स्वप्नदोष -निरोधक एवं ब्रह्मचर्य पालन में सहायक माना जाता है |
९- शरीर में रक्त की वृद्धि कर यह रक्त शोधक का कार्य भी करता है 
१०- यह आसन अनेक महत्वपूर्ण अंगों और ग्रन्थियों को उनकी पूर्व स्थिति में लाने में सहायक होता है |
११-इस आसन से सुस्ती दूर हो जाती है और यह हारमोंस को संतुलित भी करता है |

Saturday 26 November 2011

पवनमुक्त आसन

पवनमुक्त आसन सामान्य आसनों की श्रृंखला में एक महत्वपूर्ण आसन है | यह आसन पेट के अंदर की गैस को बाहर निकालने में बहुत प्रभावशाली  है | कब्जियत एवं अपच की शिकायत को तत्काल दूर कर मन और शरीर को हल्का बना देता है | इस आसन को करने के पूर्व शवासन अवश्य कर लेना चाहिए क्योंकि इससे शरीर और मन दोनों शांत एवं शिथिल हो जाते हैं | इसे गैस मुक्त आसन भी कहा जाता है |
विधि :----
१- आसन पर पीठ के बल लेट जाएँ और दोनों पैरों को सीधे फैलाते हुए आपस में मिला लें | अपने  दोनों हथेंलियों को नितम्ब के आस पास रखें |
२- अब बाएं पैर को मोड़ें तथा दोनों हाथों से घुटने को पकडकर श्वास छोड़ते हुए अपनी ओर इस प्रकार  खींचें कि पेट पर दबाव के साथ घुटना नासिका को स्पर्श करे |
३- यथाशक्ति पेट और फेफड़े में भरी हवा को बाहर निकाल दें तथा श्वास को बाहर  रोक कर कुछ देर तक रुकें |एक गहरी श्वास भरें /
४- अब धीरे धीरे घुटने को छोड़ते हुए श्वास छोड़ें और  बाएं पैर को आसन पर सीधा  फैला लें |
५- थोडा विश्राम करने के पश्चात अब दायें पैर को मोड़ें और श्वास छोड़ते हुए घुटने से पेट को दबाएँ एवं घुटने  को  नासिका से  स्पर्श कराएँ /
६ - यथाशक्ति पेट और फेफड़े में भरी हवा को बाहर निकाल दें तथा श्वास को बाहर  रोक कर कुछ देर तक रुकें फिर एक गहरी श्वास भरें /
७- अब धीरे धीरे घुटने को छोड़ते हुए श्वास छोड़ें  और दाएं पैर को आसन पर सीधा  फैला लें |
८ -- अब दोनों पैरों को एक साथ मोड़ें और घुटनों को दोनों हाथों  से पकडकर श्वास छोड़ते हुए  अपनी ओर खींचते हुए पेट को दबाएँ तथा नासिका को दोनों घुटनों के बीच में ले जाएँ  | श्वास को बाहर रोककर यथाशक्ति कुछ देर तक रुकें | फिर श्वास छोड़ते  हुए दोनों पैर एक साथ फैला कर शवासन में विश्राम करें |
९ -- दो चार बार श्वास लेकर श्वास की गति को सामान्य रूप में स्थिर करें और इस क्रिया को दुहरायें | 
सावधानी :-----हृदय रोग से पीड़ित व्यक्ति को यह आसन नहीं करना चाहिए | इस आसन को करते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है :-
१- आसन के दौरान अचानक एवं तेजी से किसी अंग को न तो मोड़ें और न ही फैलाएं क्योंकि इससे जोड़ों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है |
२- इस आसन को करते समय अपनी दोनों आँखों को बंद रखें तथा मन की  आँखों से द्रष्टा बन कर इसे देखते अवश्य रहें |
३- आसन करते समय प्रसन्नचित्त होकर अन्तर्मुखी स्थिति में  अतिशय आनन्द का अनुभव करें |
परिणाम :----
१- पवनमुक्त आसन से आँतों की  भलीभांति मालिश  हो जाती है |
२- इसके नियमित अभ्यास से  वायु विकार और कब्जियत का निवारण होता है |
३- इसको करने से  पेट की  मांसपेशियां शक्तिशाली बन जाती हैं |
४- इस आसन से  दूषित गैस  बाहर निकल जाती है और  मन को शांति प्राप्त होती है  |
५-  यह आसन जोड़ों के दर्द एवं गठिया रोग को भी दूर कर  देता है |

Friday 25 November 2011

सुप्त वज्रासन

यह आसन वज्रासन मुद्रा  का  विस्तार अथवा  इसका सहयोगी आसन माना जाता है | सुप्त का अर्थ है लेटा हुआ |यद्यपि  यह एक कठिन आसन है जिसके लिए बहुत अभ्यास और सावधानी की आवश्यकता होती है फिर भी नियमित अभ्यास से यह कुछ ही दिनों में यह सरल लगने लगता है  |
विधि :---
१- वज्रासन की मुद्रा में आसन पर स्थिर होकर बैठ जाएँ |
२-अपने दोनों पंजों को थोडा फैलाते हुए आसन पर इस प्रकार बैठें कि दोनों एडियाँ नितम्ब को अगल बगल से स्पर्श करती रहें तथा दोनों घुटने आपस में मिले रहें  | अब  दोनों हाथों से अपने पंजे के पिछले  भाग  अर्थात  एडी को पकड़ लें | 
३- अब एक लम्बी गहरी श्वास भरें तत्पश्चात कमर के ऊपरी भाग को श्वास निकालते हुए धीरे धीरे पीछे की ओर धकेलते हुए पीठ और सिर को आसन पर रख दें | यदि इस क्रिया में कोई कठिनाई या दर्द महशूस हो तो क्रमशः पहले  दायें और फिर  बाएं हाथ की कुहनी को आसन पर टिकाते हुए पीठ के बल लेटने का प्रयास करें |यह ध्यान रहे कि पंजे का निचला भाग अर्थात तलवे नितम्ब  के ठीक नीचे आ जाएँ |
४- यथाशक्ति कुछ देर तक इस आसन /मुद्रा में स्थिर रहें तत्पश्चात धीरे धीरे श्वास क्रिया को जारी रखें |
५- इस दौरान दोनों घुटने थोडा फैले हुए होने चाहिए तथा  हाथों को अगल बगल में सीधे रखते हुए दोनों पैरों को पकड़े रखें |
६- यथासम्भव रुकने अथवा दो तीन मिनट बाद  धीरे धीरे श्वास भरते हुए सिर और पीठ को उठाते हुए वज्रासन की मुद्रा में बैठ जाएँ |
सावधानी :----
सुप्त वज्रासन की  मुद्रा में यदि किसी अंग विशेष में दर्द अथवा खिंचाव महशूस हो तो इस आसन को छोडकर आराम की मुद्रा अर्थात श्रमिक आसन में बैठ जाएँ | किसी अंग पर अनावश्यक दबाव न डालें तथा यथाशक्ति ही इस आसन में स्थिरता प्राप्त करें |स्थिरता की अवधि को धीरे धीरे बढ़ाया जा सकता है |
परिणाम :-------
१- स्पेंडलाइटिक्स के रोगी  के लिए यह आसन विशेष रूप से लाभदायक  माना जाता है |
२- इस आसन से जंघाएँ बलिष्ठ होती हैं तथा अनावश्यक चर्बी भी समाप्त हो जाती है |
३- पीठ कि हड्डियों में लचीलापन आता है तथा कमर दर्द से छुटकारा मिलता है |
४- मूत्राशय से सम्बन्धित विकारों /रोगों की यह आसन रोकथाम करता है |
५- यह आसन पाचन क्रिया को सुदृढ़ करता है तथा भूख  भी उत्पन्न करता है |

Sunday 20 November 2011

पद्मासन

पदम् का अर्थ कमल है | यह अत्यंत महत्वपूर्ण तथा उपयोगी आसनों में से एक ऐसा आसन है जिसमें कमल के समान शारीरिक स्थिति बनाई जाती है | यह आसन ध्यान के लिए विशेष रूप से प्रयुक्त होता है |
हठयोग प्रदीपिका के प्रथम अध्याय के ४८ वें श्लोक में कहा गया है "पद्मासन में बैठकर हथेलियों को एक दूसरे पर रखकर सीने पर चिबुक को मजबूती से स्थिर करें और ब्रह्म का चिंतन करते हुए गुदा को बार बार सिकोड़ें और अपान को ऊपर उठायें ;इसी प्रकार गले का संकुचन करते हुए प्राण को नीचे की ओर दबाएँ | इससे कुंडलिनी के द्वारा असामान्य ज्ञान प्राप्त होता है |"
विधि :-----कम्बल को चार पर्त करके  बिछा लें और उस पर अपनी टाँगें सीधी करके बैठ जाएँ |
१- घुटने  के पास दाहिनी टांग मोड़ें ,हाथों से दाहिना पैर पकड़ें और इसे बायीं जांघ के मूल में इस प्रकार स्पर्श कराएँ कि दाहिनी एडी नाभि के समीप आ जाये 
२- अब बाएं पैर को मोड़ें और हाथों से बायाँ पैर पकडकर दाहिनी जांघ के मूल में  इस प्रकार रखें कि बायीं एडी नाभि के समीप हो | पैरों की एडियाँ ऊपर की ओर मुड़ी होनी चाहिए |
३- बाएं हाथ को चिन्मय मुद्रा में बाएं पैर के घुटने पर रखें और दाहिने  हाथ को दाहिने घुटने पर रखें |
४- हाथों को घुटनों पर इस प्रकार रखें कि हथेलियाँ ऊपर रहें ,बीच की अंगुलियाँ जंघे के ऊपरी भाग को स्पर्श करें और अन्य तीन अंगुलियाँ आपस में मिली हुई सीधी रहें |
५- अब ध्यान की मुद्रा में आँखें बन्द करें और मेरुदंड को सीधा रखें | घुटनों एवं जंघाओं पर दबाव दिए बिना शरीर को यथासम्भव दृढ रखें | दोनों पैरों के ऊपर हथेलियों को एक दूसरे के ऊपर रखें |
६- अपनी नाभि पर श्वास प्रक्रिया का मानसिक निरीक्षण अथवा अवलोकन करते रहें |श्वास लेते समय 'सो 'एवं छोड़ते समय ' हं'का जप  करें |
७- इस मुद्रा में निर्विचार होकर दस मिनट तक स्थिर रहें और मेरुदंड को सीधा रखें |
८- दायीं जांघ पर बायाँ पैर और बायीं जांघ पर दाहिना पैर रखकर टांगों की स्थिति को आपस में बदल लें ताकि टांगों को समान रूप से शक्ति प्राप्त हो सके |
परिणाम :--१- पद्मासन में ध्यान और जप सुगमता से किया जाता है |मनन ,चितन और ध्यान के लिए यह सर्वाधिक उपयुक्त मुद्रा मानी जाती है |
२-इस आसन को एकांत में यदि विधिपूर्वक किया जाये तो इस मुद्रा में शरीर काफी देर तक स्थिर रह सकता है| 
३- केवल शारीरिक दृष्टिकोण से भी यह आसन घुटनों और नालियों की कठोरता दूर करने के लिए सर्वथा उपयुक्त है | यह आसन भूख जगाने में भी सहायक होता है |
४- इस आसन से जीवन शक्ति मूलाधार चक्र से सहस्रार चक्र में प्रविष्ट होती है |
५- पद्मासन से गुर्दा क्षेत्र में अधिक रक्त प्रवाहित होता है क्योंकि उस समय पैरों में रक्त संचार कम रहता है |
६- रक्तचाप एवं हृदयरोग में यह आसन बहुत लाभदायक माना जाता है |
७- इस आसन के निरंतर अभ्यास से आध्यात्मिक  विकास होता है |
सावधानियां :-- यह आसन सुबह अथवा शाम कभी भी खाली पेट अर्थात भोजन के ६ घंटे बाद करना चाहिए | यौगिक अभ्यास तथा प्राणायाम के बाद इसे करना चाहिए | भोजनोपरांत  तत्काल इस आसन को  न करें |चितन ,मनन और प्राणायाम के लिए यह आसन अत्यंत लाभदायक समझा जाता है | महिलाएं भी इस आसन में बैठ सकती हैं |कमजोर शरीर के व्यक्ति के लिए यह आसन सर्वथा अनुकूल है | धीरे धीरे समयावधि को बढ़ाते रहें |

शलभासन

शलभ का अर्थ टिड्डी होता है | टिड्डी जैसी आकृति बनाने के कारण इस आसन को शलभासन कहतें हैं |
विधि :---
१- पेट के बल आसन पर लेट जाएँ ,मुख नीचे की ओर और भुजाएं पीछे की ओर तनी होनी चाहिए |
२- सिर और टुद्दी को जमीन पर रखते हुए विश्राम करें |
३- अब दोनों हथेलियों को जंघाओं के नीचे ले जाएँ और धीरे धीरे श्वास छोड़ते हुए सिर ,सीना एवं टाँगें एक ही साथ जमीन से ऊपर उठायें | हथेलियाँ भी जंघाओं के साथ ऊपर उठनी चाहिए ,शरीर का केवल उदरीय  अग्रभाग ही जमीन पर टिका  होना चाहिए |
४- हाथों पर शरीर का भार न लें बल्कि पीठ की मांसपेशियों के ऊपरी भाग की कसरत के लिए उन्हें पीछे की ओर तानें |
५- स्वाभाविक रूप से साँस लेते हुए जितनी देर तक रुक सकें रुकें ,फिर धीरे धीरे पैर और सिर को नीचे लायें |
६- थोड़ी देर विश्राम करने के बाद अपने बाएं पैर का भार ठुड्डी पर देते हुए ठुड्डी और दोनों हथेलियों के सहारे अपने को संतुलित करें तथा यह स्थिति निर्धारित समय तक बनाये रखें और समय को  धीरे- धीरे बढ़ाये |
७- अब धीरे धीरे बायाँ पैर जमीन पर लायें और नाक से श्वास बाहर निकाल दें |
८ -अब दाहिने पैर से भी  यही क्रिया करें | इस क्रिया को दो- तीन बार दुहरायें |   
सावधानी :----
इस क्रिया के दौरान ध्यान विशुद्धि चक्र पर होना चाहिए |इस  आसन के समय हथेलियों का पृष्ठ भाग और भुजाएं जाघों के समीप रहें |अपने फेफड़ों को हवा से अंशतः भरें ताकि छाती थोड़ी चौड़ी हो जाये | इस आसन की अवधि में पैरों को यथासम्भव सीधा रखें | शलभासन हमेशा भुजंगासन  और गर्दन के व्यायाम के बाद ही किया जाता है |श्वास को अचानक या बहुत तेजी से न निकालें |अपना वजन अपनी बाँहों पर उस समय डालें जब आपके शरीर का निचला हिस्सा ऊपर जाता है |
परिणाम :---
१ - यह आसन पेट ,पैर और भुजा की उपेक्षित मांस पेशियों को सशक्त बनाकर अतिरिक्त शक्ति प्रदान करता है और नितम्बों को सुडौल बनाता है |
२- जांघों एवं नितम्बों का वजन घटाने में सहायक होता है |
३- यह आसन पाचन क्रिया को बढाता है और वायु विकार से छुटकारा दिलाता है |
३- रक्त संचार में सुधार करता है और सभी अंगों को शक्ति प्रदान करता है |
४- यह आसन भूख जगाता है और मधुमेह को नियंत्रित भी करता है |
५- महिलाओं के मासिक धर्म को नियंत्रित करता है तथा पेट के अंगों ,यकृत एवं गुर्दा को शक्ति प्रदान करता है |
६- ऐसे रोगियों जिन्हें पेशाब करने में दर्द हो या पेशाब कम मात्रा में होता हो उन्हें इससे विशेष लाभ मिलता है |
७- मेरुदंड को पीछे खीचने से उसमें लचीलापन आता है और कमर के दर्द दूर हो जाते हैं |
८- इस आसन से उन अंगों का भी विकास होता है जो वर्षों से उपेक्षित रहें हों |
९ -इस आसन से पेट की मांसपेशियां और ग्रन्थियां विशेष रूप से प्रभावित होती हैं |

Sunday 13 November 2011

ताड़ासन

ताड़ का अर्थ पर्वत एवं सम का अर्थ सरल ,सीधा एवं स्थिर होता है | अतः पहाड़ की तरह  निश्चल एवं सीधे  खड़े रहने की स्थिति को ताड़ासन कहतें हैं | यह शीर्षासन का विपरीत आसन है तथा शंख प्रक्षालन की प्राथमिक मुद्रा है |

विधि :--
१- आसन पर दोनों एडियों में ६ इंच की दूरी रखते हुए एडियों एवं अंगूठों को मिलाकर सीधे खड़े हो जाएँ | तलवों के अग्र भाग को जमीन पर टिकाकर समस्त अँगुलियों को तानें |
२- एडियों को उठाते हुए दोनों हाथों को सिर के ऊपर उठायें |
३- अपने दोनों हाथों को ऊपर उठाकर उँगलियों को आपस में फंसा दें और पेट को अंदर करके गर्दन सीधी करते हुए रीढ़ को ऊपर की ओर तानें |
४- अब पैरों की अँगुलियों के बल खड़े होकर अपनी हथेलियों के अग्र भाग को देखें और शरीर के ऊपरी भाग को ऊपर की ओर पूरी शक्ति से तानें तथा श्वास भी खींचें |
५- ५ से १० सेकेण्ड तक श्वास को रोकें फिर श्वास छोड़ते हुए धीरे धीरे पांव के तलवे के बल खड़े हो जाएँ और भुजाओं  को सिर के ऊपर झुका दें |
६- यह क्रिया ८-१० बार करें | यथासम्भव शीर्षासन के पश्चात इसे करें तथा शीर्षासन में लगने वाले समय के आधे समय तक इसे करें | फैलाव को स्थिति को ५-१० सेकेण्ड तक श्वास को रोकें तथा यथास्थिति बनाये रखें |
७- तिर्यक ताड़ासन के लिए चार बार कमर के बाएं एवं चार बार दाहिने झुकें |बाएं चरम स्थिति में श्वास छोड़ें ,बीच में श्वास खींचें और फिर दाहिने श्वास  छोड़ें |
 ताड़ासन की दूसरी सरल  विधि पीठ के बल आसन पर सीधे लेट जाएँ और दोनों हाथों को सिर के पीछे की ओर ले जाएँ | अब दोनों हाथों को ऊपर की ओर तथा दोनों पैरों को आगे की ओर  अधिक से अधिक तानें | पैरों की उँगलियाँ आपस में मिली हुई एवं शरीर को  मध्य भाग से ऊपर और नीचे दोनों ओर बलपूर्वक  खींचें | इस क्रिया को कई बार दुहरायें | यह विधि उन लोगों के लिए है जो खड़े होकर ताड़ासन करने में असमर्थ हों |  यह क्रिया दो चार बार करें |
शंख प्रक्षालन के दौरान ताड़ासन खड़े होकर ही करें /
परिणाम :---
१- ताड़ासन में हमें शरीर को समान रूप से ऊपर उठाने का अवसर मिलता है | प्रायः हम कभी एडियों के बल अथवा एक पैर के बल खड़े होते हैं जिससे शरीर का पूरा भार पंजों पर नही आ पाता है | अतः पंजों पर समान भार न होने के कारण हम एक ओर झुक कर चलते हैं जिसका उदाहरण हमारे जूतों के घिसे हुए भाग प्रस्तुत करते हैं |
२- यह आसन  शरीर को सुडौल व आकर्षक बनाता है तथा रीढ़ को शक्तिशाली |
३- यह पुरुषों एवं स्त्रियों के भरी और थुलथुली  छाती को हल्की करने में सहायक होता है |
४- योग्य शिक्षक के मार्गदर्शन में यदि गर्भवती स्त्रियाँ इस आसन को प्रथम ५ माह तक करती हैं तो बच्चा आसानी से पैदा होगा अर्थात आपरेशन की आवश्यकता नहीं पड़ेगी |
५- इस आसन को करने से मेरुदंड और शरीर के सभी अंग फैलते हैं जिससे लम्बाई बढ़ाने में यह आसन सहायक होता है |
६ -इस  आसन  के करने से गठिया का दर्द दूर हो जाता है |
७ -कोष्ठबद्धता से छुटकारा पाने के लिए प्रतिदिन सुबह ३-४ गिलास गुनगुना  पानी पियें और ताड़ासन में १०० कदम आगे पीछे चलें |   

Saturday 12 November 2011

धनुरासन

धनु का अर्थ धनुष होता है | इस  आसन में धनुषाकार आकृति बनाई जाती है |इसमें हाथों का उपयोग सिर,धड और टांगों को  ऊपर खींचने के लिए प्रत्यंचा की तरह किया जाता है | शरीर को धनुष के समान टेढा  करके फ़ैलाने और शरीर को सशक्त बनाने की इस क्रिया से तरुणाई की प्राप्ति होती है |
विधि :---
१-आसन पर नीचे मुहं किये हुए पेट के बल लम्बवत लेट जाएँ |
२- श्वास को छोड़ते हुए दोनों घुटनों को एक साथ मोड़ें,  एडियों को पीठ की ओर बढ़ाएं और अपनी बाँहों को पीछे की ओर तानें फिर बाएं हाथ से बाएं टखने को एवं दायें हाथ से दायें टखने को पकड़ लें | अब श्वास भरकर यथासम्भव उसे रोके रखें |
३- अब सांसों को पूरी तरह निकाल दें और जमीन से घुटनों को उठाते हुए दोनों टाँगें ऊपर की ओर खींचें और उसी समय जमीन  से सीने को भी उठायें | बांह और हाथ झुके हुए धनुष के समान शरीर को तानने में प्रत्यंचा के समान कार्य करते हैं |
४-अब अपने सिर को ऊपर की ओर उठायें एवं यथासम्भव पीछे की ओर ले जाएँ |जमीन पर केवल उदर ही सम्पूर्ण शरीर के भार का वहन करे|
५- टाँगें ऊपर उठाते समय घुटनों के पास उन्हें सरकने  न दें अन्यथा काफी ऊँचाई तक टाँगें उठ नहीं सकेंगी | अब टांगों घुटनों और टखनों को सटा लें |
६-इस दौरान श्वास की गति तेज होगी लेकिन इसकी चिंता न  करते हुए यथाशक्ति १५ सेकंड से १ मिनट तक रुकें और आगे- पीछे, दायें -बाएं शरीर को हिला डुला सकते हैं |
७ -अब  श्वास छोड़ते हुए धीरे धीरे टखनों को भी छोड़ दें और दोनों टांगों को सीधी कर लें,किन्तु यह ध्यान रहे क़ि पहले घुटनों को जमीन पर रखें फिर तुड्डी को जमीन स्पर्श कराएँ और इसके बाद पैरों को छोड़ते हुए उन्हें जमीन तक धीरे धीरे आने दें | अपने कपोल को जमीन पर रखकर विश्राम करें | 
यह अभ्यास ५ सेकेण्ड से आरम्भ करें और प्रतिदिन समय को तब तक बढ़ाते रहें जब तक बिना किसी दबाव के १५ से ३० सेकेण्ड तक न हो जाये | इसे प्रातःकाल खाली पेट करें और अधिक से अधिक ३ बार कर सकते हैं | इस आसन के दौरान ध्यान विशुद्धि चक्र पर केन्द्रित होना चाहिए | जो व्यक्ति यक्ष्मा ,आंत उतरने की बीमारी या पेप्टिक अल्सर एवं उच्च रक्त चाप से ग्रस्त हों, वे इसे  कदापि न करें |
स्मरणीय बिन्दु :---- इस आसन को अत्यधिक सावधानी से धीरे धीरे करें क्योंकि फैलाव का यह अत्यंत शक्तिशाली आसन है | पैर ऊपर करते समय सिर को पीछे रखना आवश्यक है | इस दौरान श्वास को सामान्य रूप से भरें और चरम स्थिति में श्वास को रोकें |जांघ एवं घुटने उठाते समय प्रारम्भ में घुटने अलग कर सकते हैं किन्तु शक्ति प्राप्त करने के बाद घुटने एक साथ कर लें |धनुषाकार  से अत्यंत धीरे धीरे सामान्य स्थिति में लौटें | जब कभी आपकी पीठ में कड़ापन महशूस हो अथवा दर्द हो तो इसे कदापि न करें | प्रारम्भ में दोनों पैरों को एक साथ पकड़ने में कठिनाई अथवा दर्द महशूस हो तो तो पहले एक पैर को पकड़ें फिर दूसरे को |
परिणाम :---
१- धनुरासन में मेरुदंड पीछे की ओर तना होता है अतः सम्पूर्ण पीठ पर काफी दबाव पड़ता है और मेरुदंड में लचीलापन आता है |इस आसन के करने से उदर के अवयव सक्रिय हो जाते हैं |
२-महिलाओं  के वक्षस्थल का विकास होता है और मेरुदंड की मांसपेशियों  को सशक्त बनाता है |
३ --पेट ,नितम्ब और जांघों का वजन घटाता है |बवासीर ,वायुविकार को दूर करता है एवं भिजन के प्रति रूचि पैदा करता है |
-साइटिका के दर्द एवं खिसकी कटोरी ठीक करने में सहायक माना जाता है तथा गुर्दा और थैली में पथरी के निर्माण को रोकता है |
५- पेशाब की कमी ,दर्द एवं जलन में राहत पहुंचाता है एवं पुराणी कब्जियत ,मन्दाग्नि और यकृत की सुस्ती दूर करने में सहायक होता है |
६- यह आसन यकृत ,गुर्दा ,पित्त की थैली ,जननेन्द्रियों की कार्य प्रणाली में सुधार लाता है |
७- मध्यम आयु के साधक को इसके नियमित अभ्यास से उनकी शिशन की गिल्टियों पर सकरात्मक प्रभाव पड़ता है और ये ग्रन्थियां बढने नहीं पाती |
  

Wednesday 9 November 2011

सूर्य नमस्कार

आसनों की श्रृंखला में सूर्य नमस्कार एक महत्वपूर्ण आसन है | इस आसन में १२ प्रकार के आसन एवं आकृतियों को सम्मिलित किया गया है | पहले और बारहवें आसन से मानसिक शांति ,स्फूर्ति और चित्त की एकाग्रता प्राप्त होती है और साधक इस आसन से  अध्यात्म की ओर अग्रसर होता है | दूसरे और ग्यारहवें आसन से भुजाओं  और पीठ की रीढ़ का व्यायाम होता है तथा आंत और पेट की मांसपेशियों में फैलाव एवं रीढ़ और गर्दन के दर्द भी दूर हो जाते हैं |तीसरे एवं दसवें आसन से पेट की समग्र बीमारियाँ दूर होती हैं |पेट व उसके आस पास की चर्बी में कमी आती है तथा पाचन क्रिया ठीक हो जाती है |इससे पीठ की रीढ़ में लचीलापन आता है तथा यह  आसन कमर दर्द दूर करने में विशेष सहायक माना जाता है |  चतुर्थ एवं नवम आकृति से मानसिक तनाव में कमी आती है तथा तथा सम्पूर्ण पेट और पीठ की कठोरता भी समाप्त हो जाती है | दोनों जंघाओं एवं पैरों की मांसपेशियों में मजबूती आती है | पांचवें और आठवें आसन से पीठ की रीढ़ एवं पेट की मांसपेशियों की मालिश एवं रीढ़ की स्नायु को स्वच्छ रक्त प्रवाह सुलभ हो जाता है |गर्दन से रीढ़ तक के भागों को स्फूर्ति व शक्ति मिलती है |छठें एवं सातवें आसन से वक्षस्थल का विकास होता है और भुजाओं ,पीठ एवं नितम्ब की मांसपेशियों को अतिरिक्त शक्ति मिल जाती है जो मधुमेह की बीमारी दूर करने में सहायक होता है |
     सूर्य नमस्कार में इन बारह आकृतियों से गुजरने के पश्चात शरीर के समस्त अंगों ,मांसपेशियों ,ग्रन्थियों ,एवं प्रमुख भीतरी अंगों पर सीधा प्रभाव पड़ता है जिससे उन्हें अतिरिक्त शक्ति व स्फूर्ति प्राप्त होती है |यह आसन सामान्य रोगों का कुचालक माना जाता है |इन बारह आसनों को समन्वित रूप में  करते समय श्वास का आवागमन तेजी से होता है, फलतः कार्बन आक्साइड गैस बाहर निकलती है और फेफड़ों के कीटाणु भी बाहर निकल जाते हैं |चूंकि इस आसन के दौरान आक्सीजनयुक्त स्वच्छ हवा मिलती रहती है फलस्वरूप मष्तिष्क को विशेष स्फूर्ति व ताजगी महशूस होती है |
कोई भी आसन अथवा उसकी मुद्रा श्रेष्ठ नहीं होती बल्कि आसन करने की भावना ही उसे श्रेष्ठ बनाती है। मात्र शरीर को हिलाना डुलाना ही योगासन नहीं कहलाता वरन योग का वास्तविक स्वरूप मनुष्य का भावनात्मक सन्तुलन है। यदि  मनुष्य अपने कर्म संस्कारों का क्षय करते हुए भावनात्मक संतुलन प्राप्त कर लेता है तो वह स्वतः योगी के परमपद का अधिकारी हो जाता है। सूर्यनमस्कार मात्र शारीरिक आसन नहीं है बल्कि यह साधक को भावनात्मक एवम मानसिक स्वास्थ्य भी प्रदान करता है। देव संस्कृति विश्वविद्यालय हरिद्वार के मानवीय चेतना एवम योग विज्ञान विभाग की शोधकर्त्री सुश्री इंदु शर्मा द्वारा डॉ प्रणव पंड्या के संरक्षण में अस्सी साधकों को नब्बे दिन तक ३० मिनट प्रतिदिन सूर्य नमस्कार कराने के पश्चात उनके शारीरिक,मानसिक एवम भावनात्मक स्थितियों में आये हुए अभूतपूर्व परिवर्तन से इस तथ्य की पुष्टि की  है। योगाचार्यों का अभिमत है कि सूर्य नमस्कार स्वयं में एक पूर्ण यौगिक अभ्यास है। केवल इसी आसन के नियमित अभ्यास से व्यक्ति सम्पूर्ण स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर सकता है तथा अपनी मानसिक समस्याओं यथा चिंता,तनाव,क्रोध,अनिद्रा,ईर्ष्या,द्वेष आदि को दूर कर सकता है। 
सूर्य नमस्कार के अंतर्गत तीन विभिन्न प्रणालियों का अनुसरण करना पड़ता है। प्रथम आसन ,द्वितीय प्राणायाम {श्वसन }और तृतीय मन्त्रोच्चारण।सूर्य नमस्कार में बारह विभिन्न आसनों से गुजरना पड़ता है। इन बारह आसनों का सम्बन्ध सूर्य के गमन मार्ग  पड़ने वाली बारह राशियों से जोड़कर देखा जाता है। ये बारह आसन क्रमशः प्रणमासन,हस्तोत्तानासन,पादहस्तासन,अश्वसंचालनासन,पर्वतासन,अष्टांगासन,भुजंगासन,पर्वतासन,अश्वसंचालनासन,  पादहस्तानासन,हस्तोत्थानासन, एवम प्रणमासन हैं। वास्तव में प्रथम छह आसन ही प्रधान आसन हैं और सातवें आसन से क्रमशः उनकी पुनरावृत्ति की जाती है। सूर्य नमस्कार  समस्त गतिविधियां श्वसन प्रक्रिया के नियंत्रण के साथ सम्पन्न की जाती हैं और प्रत्येक आसन का सम्बन्ध पूरक,रेचक और कुम्भक में से किसी  साथ निर्धारित किया जाता है। सूर्य नमस्कार के बारह आसनों अथवा मुद्राओं में प्रत्येक के साथ बीजाक्षरयुक्त मन्त्र सम्बद्ध किये गए हैं  आसनों की स्थितियों के अनुरूप ही अभ्यासकर्ता को  आत्मसात करना पड़ता है। 
इस प्रकार सूर्य नमस्कार योग की तीन विशिष्ट प्रक्रियाओं का सम्मिलित योगाभ्यास है जो सम्पूर्ण व्यक्तित्व पर सकारात्मक प्रभाव डालता है। अतः यह एक यौगिक अभ्यास है जो शरीर ही  बल्कि मन और उसके मनोभावों से सम्बद्ध क्षमताओं पर सकारात्मक प्रभाव डालता है। इसके साथ ही साथ व्यक्तित्व को अनेक प्रकार की मनोशारीरिक एवम भावनात्मक व्याधियों को भी नष्ट कर देता है।
विधि :----
सूर्य नमस्कार हेतु सर्वप्रथम आसन पर प्रार्थना की मुद्रा में सीधे खड़े हों जाएँ ,दोनों एडियाँ   आपस में जुड़े रहें तथा पंजे खुले रहें, जुडी हुई हथेली छाती  के ठीक सामने रहे | आँखें पूर्णतयः बंद होनी चाहिए एवं ध्यान सम्पूर्ण शरीर पर केन्द्रित रहे | ऐसी  स्थिति में आने से पूर्व श्वास को पूरी तरह बाहर निकालते हुए  मध्यम स्वर में ॐ सूर्याय नमः का उच्चारण कर सूर्य देव का आह्वान करें |
उपरोक्त क्रिया के पश्चात दूसरी स्थिति के लिए अपने दोनों हाथों को सिर से ऊपर की ओर तानते हुए पीछे की ओर ले जाएँ किन्तु यह ध्यान रहे कि दोनों हाथों के मध्य कंधे के बराबर की दूरी रहे  तथा हाथों की अंगुलियाँ आपस में मिली हों |अब अपने सिर एवं भुजाओं को पीछे की ओर धकेलें |इस स्थिति  में ध्यान विशुद्धि चक्र पर केन्द्रित होना चाहिए |
तीसरे क्रम में आगे की ओर झुकें ,श्वास बाहर निकालें ,एवं हाथों की पांचों अँगुलियों के अग्र भाग को आसन पर रख दें | अब घुटनों को सीधा रखते हुए अपने सिर को दोनों भुजाओं के बीच में स्थित करें तथा यथासम्भव घुटनों को ललाट से स्पर्श कराने का प्रयास करें | इस दौरान घुटने मुड़ने नहीं चाहिए | इस स्थिति में ध्यान मणिपुर चक्र [नाभि  के पीछे रीढ़ पर ] पर केन्द्रित रखें |  
चौथी स्थिति में बायाँ पैर पीछे की ओर ले जाएँ और बाएं घुटने को आसन से स्पर्श कराएँ |अब दाहिने पैर को मोडकर आगे की ओर झुकाएं किन्तु दाहिना पैर और हाथ एक सीध में होने चाहिए |अपने शरीर का भार दोनों हाथो  ,दाहिने पैर ,बाएं घुटने और बाएं पैर के अंगूठों पर होना चाहिए |सिर को थोडा पीछे की ओर तानें ताकि पीठ हल्की सी दबी रहे और ऊपर की ओर देखने का प्रयास करें |इस मुद्रा में श्वास भीतर और ध्यान स्वाधिष्ठान चक्र पर रहे |
पांचवी स्थिति पर्वत आसन की है जिसमें दाहिना पैर बाएं पैर के पास ,पेट और बाएं घुटने को थोडा ऊपर उठायें और शरीर को पर्वताकार त्रिकोण  स्थिति में रखें |छाती को तुड्डी से स्पर्श करते हुए सिर को नीचे की ओर झुकाएं | इस मुद्रा में श्वास पूरी तरह बाहर निकली हो एवं ध्यान सह्श्रार चक्र पर केन्द्रित हो |
छठी स्थिति में अष्टांग नमस्कार की मुद्रा बनाएं जिसमें शरीर के पांच अंग जैसे अंगूठे ,घुटने ,छाती ,तुड्डी और हाथ जमीन अथवा आसन को स्पर्श करें | पैर और नितम्ब आसन से थोडा ऊपर रहें और ध्यान सम्पूर्ण शरीर पर केन्द्रित रहे |
सातवीं स्थिति में भुजंगासन  अर्थात कमर से ऊपरी भाग को श्वास लेते हुए ऊपर की ओर उठायें |यह ध्यान रहे कि भुजाएं सीधी रहें और सिर को  पीछे की ओर तानें | इस स्थिति में ध्यान स्वाधिष्ठान चक्र पर केन्द्रित होना चाहिए |
आठवीं स्थिति में श्वास छोड़ते हुए पांचवी स्थिति में वापस आ जाएँ |
नौवीं स्थिति में श्वास खींचते हुए दाहिना पैर आगे करें और बायाँ घुटना नीचे  करके आकृति चार में स्थित हो जाएँ |
दसवीं स्थिति में श्वास छोड़ते हुए बायाँ पैर दाहिने पैर के पास लायें और अपने दोनों पैरों को फैलाएं और आकृति  तीन में स्थित हो जाएँ |
ग्यारहवीं स्थिति के लिए श्वास भरते हुए दोनों हाथ ऊपर करके आकृति संख्या दो बनाएं |
बारहवीं और अंतिम स्थिति के लिए श्वास छोड़ते हुए आकृति एक में वापस आ जाएँ |
सूर्य नमस्कार की चरम स्थिति बनाये रखने के लिए प्रत्येक मुद्रा में उतनी ही देर तक रहें जितनी देर तक श्वास को नियंत्रण में रख सकें | प्रातः काल सूर्योदय के समय इस आसन को करना लाभकारी होगा |सूर्य नमस्कार का अभ्यास सावधानीपूर्वक करने से सम्पूर्ण शरीर में ताजगी आती है ,कार्य क्षमता बढती है तथा पीठ और मेरुदंड  को विशेष लाभ मिलता है |