पदम् का अर्थ कमल है | यह अत्यंत महत्वपूर्ण तथा उपयोगी आसनों में से एक ऐसा आसन है जिसमें कमल के समान शारीरिक स्थिति बनाई जाती है | यह आसन ध्यान के लिए विशेष रूप से प्रयुक्त होता है |
हठयोग प्रदीपिका के प्रथम अध्याय के ४८ वें श्लोक में कहा गया है "पद्मासन में बैठकर हथेलियों को एक दूसरे पर रखकर सीने पर चिबुक को मजबूती से स्थिर करें और ब्रह्म का चिंतन करते हुए गुदा को बार बार सिकोड़ें और अपान को ऊपर उठायें ;इसी प्रकार गले का संकुचन करते हुए प्राण को नीचे की ओर दबाएँ | इससे कुंडलिनी के द्वारा असामान्य ज्ञान प्राप्त होता है |"
विधि :-----कम्बल को चार पर्त करके बिछा लें और उस पर अपनी टाँगें सीधी करके बैठ जाएँ |
१- घुटने के पास दाहिनी टांग मोड़ें ,हाथों से दाहिना पैर पकड़ें और इसे बायीं जांघ के मूल में इस प्रकार स्पर्श कराएँ कि दाहिनी एडी नाभि के समीप आ जाये
२- अब बाएं पैर को मोड़ें और हाथों से बायाँ पैर पकडकर दाहिनी जांघ के मूल में इस प्रकार रखें कि बायीं एडी नाभि के समीप हो | पैरों की एडियाँ ऊपर की ओर मुड़ी होनी चाहिए |
३- बाएं हाथ को चिन्मय मुद्रा में बाएं पैर के घुटने पर रखें और दाहिने हाथ को दाहिने घुटने पर रखें |
४- हाथों को घुटनों पर इस प्रकार रखें कि हथेलियाँ ऊपर रहें ,बीच की अंगुलियाँ जंघे के ऊपरी भाग को स्पर्श करें और अन्य तीन अंगुलियाँ आपस में मिली हुई सीधी रहें |
५- अब ध्यान की मुद्रा में आँखें बन्द करें और मेरुदंड को सीधा रखें | घुटनों एवं जंघाओं पर दबाव दिए बिना शरीर को यथासम्भव दृढ रखें | दोनों पैरों के ऊपर हथेलियों को एक दूसरे के ऊपर रखें |
६- अपनी नाभि पर श्वास प्रक्रिया का मानसिक निरीक्षण अथवा अवलोकन करते रहें |श्वास लेते समय 'सो 'एवं छोड़ते समय ' हं'का जप करें |
७- इस मुद्रा में निर्विचार होकर दस मिनट तक स्थिर रहें और मेरुदंड को सीधा रखें |
८- दायीं जांघ पर बायाँ पैर और बायीं जांघ पर दाहिना पैर रखकर टांगों की स्थिति को आपस में बदल लें ताकि टांगों को समान रूप से शक्ति प्राप्त हो सके |
परिणाम :--१- पद्मासन में ध्यान और जप सुगमता से किया जाता है |मनन ,चितन और ध्यान के लिए यह सर्वाधिक उपयुक्त मुद्रा मानी जाती है |
२-इस आसन को एकांत में यदि विधिपूर्वक किया जाये तो इस मुद्रा में शरीर काफी देर तक स्थिर रह सकता है|
३- केवल शारीरिक दृष्टिकोण से भी यह आसन घुटनों और नालियों की कठोरता दूर करने के लिए सर्वथा उपयुक्त है | यह आसन भूख जगाने में भी सहायक होता है |
४- इस आसन से जीवन शक्ति मूलाधार चक्र से सहस्रार चक्र में प्रविष्ट होती है |
५- पद्मासन से गुर्दा क्षेत्र में अधिक रक्त प्रवाहित होता है क्योंकि उस समय पैरों में रक्त संचार कम रहता है |
६- रक्तचाप एवं हृदयरोग में यह आसन बहुत लाभदायक माना जाता है |
७- इस आसन के निरंतर अभ्यास से आध्यात्मिक विकास होता है |
सावधानियां :-- यह आसन सुबह अथवा शाम कभी भी खाली पेट अर्थात भोजन के ६ घंटे बाद करना चाहिए | यौगिक अभ्यास तथा प्राणायाम के बाद इसे करना चाहिए | भोजनोपरांत तत्काल इस आसन को न करें |चितन ,मनन और प्राणायाम के लिए यह आसन अत्यंत लाभदायक समझा जाता है | महिलाएं भी इस आसन में बैठ सकती हैं |कमजोर शरीर के व्यक्ति के लिए यह आसन सर्वथा अनुकूल है | धीरे धीरे समयावधि को बढ़ाते रहें |
हठयोग प्रदीपिका के प्रथम अध्याय के ४८ वें श्लोक में कहा गया है "पद्मासन में बैठकर हथेलियों को एक दूसरे पर रखकर सीने पर चिबुक को मजबूती से स्थिर करें और ब्रह्म का चिंतन करते हुए गुदा को बार बार सिकोड़ें और अपान को ऊपर उठायें ;इसी प्रकार गले का संकुचन करते हुए प्राण को नीचे की ओर दबाएँ | इससे कुंडलिनी के द्वारा असामान्य ज्ञान प्राप्त होता है |"
विधि :-----कम्बल को चार पर्त करके बिछा लें और उस पर अपनी टाँगें सीधी करके बैठ जाएँ |
१- घुटने के पास दाहिनी टांग मोड़ें ,हाथों से दाहिना पैर पकड़ें और इसे बायीं जांघ के मूल में इस प्रकार स्पर्श कराएँ कि दाहिनी एडी नाभि के समीप आ जाये
२- अब बाएं पैर को मोड़ें और हाथों से बायाँ पैर पकडकर दाहिनी जांघ के मूल में इस प्रकार रखें कि बायीं एडी नाभि के समीप हो | पैरों की एडियाँ ऊपर की ओर मुड़ी होनी चाहिए |
३- बाएं हाथ को चिन्मय मुद्रा में बाएं पैर के घुटने पर रखें और दाहिने हाथ को दाहिने घुटने पर रखें |
४- हाथों को घुटनों पर इस प्रकार रखें कि हथेलियाँ ऊपर रहें ,बीच की अंगुलियाँ जंघे के ऊपरी भाग को स्पर्श करें और अन्य तीन अंगुलियाँ आपस में मिली हुई सीधी रहें |
५- अब ध्यान की मुद्रा में आँखें बन्द करें और मेरुदंड को सीधा रखें | घुटनों एवं जंघाओं पर दबाव दिए बिना शरीर को यथासम्भव दृढ रखें | दोनों पैरों के ऊपर हथेलियों को एक दूसरे के ऊपर रखें |
६- अपनी नाभि पर श्वास प्रक्रिया का मानसिक निरीक्षण अथवा अवलोकन करते रहें |श्वास लेते समय 'सो 'एवं छोड़ते समय ' हं'का जप करें |
७- इस मुद्रा में निर्विचार होकर दस मिनट तक स्थिर रहें और मेरुदंड को सीधा रखें |
८- दायीं जांघ पर बायाँ पैर और बायीं जांघ पर दाहिना पैर रखकर टांगों की स्थिति को आपस में बदल लें ताकि टांगों को समान रूप से शक्ति प्राप्त हो सके |
परिणाम :--१- पद्मासन में ध्यान और जप सुगमता से किया जाता है |मनन ,चितन और ध्यान के लिए यह सर्वाधिक उपयुक्त मुद्रा मानी जाती है |
२-इस आसन को एकांत में यदि विधिपूर्वक किया जाये तो इस मुद्रा में शरीर काफी देर तक स्थिर रह सकता है|
३- केवल शारीरिक दृष्टिकोण से भी यह आसन घुटनों और नालियों की कठोरता दूर करने के लिए सर्वथा उपयुक्त है | यह आसन भूख जगाने में भी सहायक होता है |
४- इस आसन से जीवन शक्ति मूलाधार चक्र से सहस्रार चक्र में प्रविष्ट होती है |
५- पद्मासन से गुर्दा क्षेत्र में अधिक रक्त प्रवाहित होता है क्योंकि उस समय पैरों में रक्त संचार कम रहता है |
६- रक्तचाप एवं हृदयरोग में यह आसन बहुत लाभदायक माना जाता है |
७- इस आसन के निरंतर अभ्यास से आध्यात्मिक विकास होता है |
सावधानियां :-- यह आसन सुबह अथवा शाम कभी भी खाली पेट अर्थात भोजन के ६ घंटे बाद करना चाहिए | यौगिक अभ्यास तथा प्राणायाम के बाद इसे करना चाहिए | भोजनोपरांत तत्काल इस आसन को न करें |चितन ,मनन और प्राणायाम के लिए यह आसन अत्यंत लाभदायक समझा जाता है | महिलाएं भी इस आसन में बैठ सकती हैं |कमजोर शरीर के व्यक्ति के लिए यह आसन सर्वथा अनुकूल है | धीरे धीरे समयावधि को बढ़ाते रहें |
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