Sunday 20 November 2011

शलभासन

शलभ का अर्थ टिड्डी होता है | टिड्डी जैसी आकृति बनाने के कारण इस आसन को शलभासन कहतें हैं |
विधि :---
१- पेट के बल आसन पर लेट जाएँ ,मुख नीचे की ओर और भुजाएं पीछे की ओर तनी होनी चाहिए |
२- सिर और टुद्दी को जमीन पर रखते हुए विश्राम करें |
३- अब दोनों हथेलियों को जंघाओं के नीचे ले जाएँ और धीरे धीरे श्वास छोड़ते हुए सिर ,सीना एवं टाँगें एक ही साथ जमीन से ऊपर उठायें | हथेलियाँ भी जंघाओं के साथ ऊपर उठनी चाहिए ,शरीर का केवल उदरीय  अग्रभाग ही जमीन पर टिका  होना चाहिए |
४- हाथों पर शरीर का भार न लें बल्कि पीठ की मांसपेशियों के ऊपरी भाग की कसरत के लिए उन्हें पीछे की ओर तानें |
५- स्वाभाविक रूप से साँस लेते हुए जितनी देर तक रुक सकें रुकें ,फिर धीरे धीरे पैर और सिर को नीचे लायें |
६- थोड़ी देर विश्राम करने के बाद अपने बाएं पैर का भार ठुड्डी पर देते हुए ठुड्डी और दोनों हथेलियों के सहारे अपने को संतुलित करें तथा यह स्थिति निर्धारित समय तक बनाये रखें और समय को  धीरे- धीरे बढ़ाये |
७- अब धीरे धीरे बायाँ पैर जमीन पर लायें और नाक से श्वास बाहर निकाल दें |
८ -अब दाहिने पैर से भी  यही क्रिया करें | इस क्रिया को दो- तीन बार दुहरायें |   
सावधानी :----
इस क्रिया के दौरान ध्यान विशुद्धि चक्र पर होना चाहिए |इस  आसन के समय हथेलियों का पृष्ठ भाग और भुजाएं जाघों के समीप रहें |अपने फेफड़ों को हवा से अंशतः भरें ताकि छाती थोड़ी चौड़ी हो जाये | इस आसन की अवधि में पैरों को यथासम्भव सीधा रखें | शलभासन हमेशा भुजंगासन  और गर्दन के व्यायाम के बाद ही किया जाता है |श्वास को अचानक या बहुत तेजी से न निकालें |अपना वजन अपनी बाँहों पर उस समय डालें जब आपके शरीर का निचला हिस्सा ऊपर जाता है |
परिणाम :---
१ - यह आसन पेट ,पैर और भुजा की उपेक्षित मांस पेशियों को सशक्त बनाकर अतिरिक्त शक्ति प्रदान करता है और नितम्बों को सुडौल बनाता है |
२- जांघों एवं नितम्बों का वजन घटाने में सहायक होता है |
३- यह आसन पाचन क्रिया को बढाता है और वायु विकार से छुटकारा दिलाता है |
३- रक्त संचार में सुधार करता है और सभी अंगों को शक्ति प्रदान करता है |
४- यह आसन भूख जगाता है और मधुमेह को नियंत्रित भी करता है |
५- महिलाओं के मासिक धर्म को नियंत्रित करता है तथा पेट के अंगों ,यकृत एवं गुर्दा को शक्ति प्रदान करता है |
६- ऐसे रोगियों जिन्हें पेशाब करने में दर्द हो या पेशाब कम मात्रा में होता हो उन्हें इससे विशेष लाभ मिलता है |
७- मेरुदंड को पीछे खीचने से उसमें लचीलापन आता है और कमर के दर्द दूर हो जाते हैं |
८- इस आसन से उन अंगों का भी विकास होता है जो वर्षों से उपेक्षित रहें हों |
९ -इस आसन से पेट की मांसपेशियां और ग्रन्थियां विशेष रूप से प्रभावित होती हैं |

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