यह आसन वज्रासन मुद्रा का विस्तार अथवा इसका सहयोगी आसन माना जाता है | सुप्त का अर्थ है लेटा हुआ |यद्यपि यह एक कठिन आसन है जिसके लिए बहुत अभ्यास और सावधानी की आवश्यकता होती है फिर भी नियमित अभ्यास से यह कुछ ही दिनों में यह सरल लगने लगता है |
विधि :---
१- वज्रासन की मुद्रा में आसन पर स्थिर होकर बैठ जाएँ |
२-अपने दोनों पंजों को थोडा फैलाते हुए आसन पर इस प्रकार बैठें कि दोनों एडियाँ नितम्ब को अगल बगल से स्पर्श करती रहें तथा दोनों घुटने आपस में मिले रहें | अब दोनों हाथों से अपने पंजे के पिछले भाग अर्थात एडी को पकड़ लें |
३- अब एक लम्बी गहरी श्वास भरें तत्पश्चात कमर के ऊपरी भाग को श्वास निकालते हुए धीरे धीरे पीछे की ओर धकेलते हुए पीठ और सिर को आसन पर रख दें | यदि इस क्रिया में कोई कठिनाई या दर्द महशूस हो तो क्रमशः पहले दायें और फिर बाएं हाथ की कुहनी को आसन पर टिकाते हुए पीठ के बल लेटने का प्रयास करें |यह ध्यान रहे कि पंजे का निचला भाग अर्थात तलवे नितम्ब के ठीक नीचे आ जाएँ |
४- यथाशक्ति कुछ देर तक इस आसन /मुद्रा में स्थिर रहें तत्पश्चात धीरे धीरे श्वास क्रिया को जारी रखें |
५- इस दौरान दोनों घुटने थोडा फैले हुए होने चाहिए तथा हाथों को अगल बगल में सीधे रखते हुए दोनों पैरों को पकड़े रखें |
६- यथासम्भव रुकने अथवा दो तीन मिनट बाद धीरे धीरे श्वास भरते हुए सिर और पीठ को उठाते हुए वज्रासन की मुद्रा में बैठ जाएँ |
सावधानी :----
सुप्त वज्रासन की मुद्रा में यदि किसी अंग विशेष में दर्द अथवा खिंचाव महशूस हो तो इस आसन को छोडकर आराम की मुद्रा अर्थात श्रमिक आसन में बैठ जाएँ | किसी अंग पर अनावश्यक दबाव न डालें तथा यथाशक्ति ही इस आसन में स्थिरता प्राप्त करें |स्थिरता की अवधि को धीरे धीरे बढ़ाया जा सकता है |
परिणाम :-------
१- स्पेंडलाइटिक्स के रोगी के लिए यह आसन विशेष रूप से लाभदायक माना जाता है |
२- इस आसन से जंघाएँ बलिष्ठ होती हैं तथा अनावश्यक चर्बी भी समाप्त हो जाती है |
३- पीठ कि हड्डियों में लचीलापन आता है तथा कमर दर्द से छुटकारा मिलता है |
४- मूत्राशय से सम्बन्धित विकारों /रोगों की यह आसन रोकथाम करता है |
५- यह आसन पाचन क्रिया को सुदृढ़ करता है तथा भूख भी उत्पन्न करता है |
विधि :---
१- वज्रासन की मुद्रा में आसन पर स्थिर होकर बैठ जाएँ |
२-अपने दोनों पंजों को थोडा फैलाते हुए आसन पर इस प्रकार बैठें कि दोनों एडियाँ नितम्ब को अगल बगल से स्पर्श करती रहें तथा दोनों घुटने आपस में मिले रहें | अब दोनों हाथों से अपने पंजे के पिछले भाग अर्थात एडी को पकड़ लें |
३- अब एक लम्बी गहरी श्वास भरें तत्पश्चात कमर के ऊपरी भाग को श्वास निकालते हुए धीरे धीरे पीछे की ओर धकेलते हुए पीठ और सिर को आसन पर रख दें | यदि इस क्रिया में कोई कठिनाई या दर्द महशूस हो तो क्रमशः पहले दायें और फिर बाएं हाथ की कुहनी को आसन पर टिकाते हुए पीठ के बल लेटने का प्रयास करें |यह ध्यान रहे कि पंजे का निचला भाग अर्थात तलवे नितम्ब के ठीक नीचे आ जाएँ |
४- यथाशक्ति कुछ देर तक इस आसन /मुद्रा में स्थिर रहें तत्पश्चात धीरे धीरे श्वास क्रिया को जारी रखें |
५- इस दौरान दोनों घुटने थोडा फैले हुए होने चाहिए तथा हाथों को अगल बगल में सीधे रखते हुए दोनों पैरों को पकड़े रखें |
६- यथासम्भव रुकने अथवा दो तीन मिनट बाद धीरे धीरे श्वास भरते हुए सिर और पीठ को उठाते हुए वज्रासन की मुद्रा में बैठ जाएँ |
सावधानी :----
सुप्त वज्रासन की मुद्रा में यदि किसी अंग विशेष में दर्द अथवा खिंचाव महशूस हो तो इस आसन को छोडकर आराम की मुद्रा अर्थात श्रमिक आसन में बैठ जाएँ | किसी अंग पर अनावश्यक दबाव न डालें तथा यथाशक्ति ही इस आसन में स्थिरता प्राप्त करें |स्थिरता की अवधि को धीरे धीरे बढ़ाया जा सकता है |
परिणाम :-------
१- स्पेंडलाइटिक्स के रोगी के लिए यह आसन विशेष रूप से लाभदायक माना जाता है |
२- इस आसन से जंघाएँ बलिष्ठ होती हैं तथा अनावश्यक चर्बी भी समाप्त हो जाती है |
३- पीठ कि हड्डियों में लचीलापन आता है तथा कमर दर्द से छुटकारा मिलता है |
४- मूत्राशय से सम्बन्धित विकारों /रोगों की यह आसन रोकथाम करता है |
५- यह आसन पाचन क्रिया को सुदृढ़ करता है तथा भूख भी उत्पन्न करता है |
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