Wednesday 9 November 2011

सूर्य नमस्कार

आसनों की श्रृंखला में सूर्य नमस्कार एक महत्वपूर्ण आसन है | इस आसन में १२ प्रकार के आसन एवं आकृतियों को सम्मिलित किया गया है | पहले और बारहवें आसन से मानसिक शांति ,स्फूर्ति और चित्त की एकाग्रता प्राप्त होती है और साधक इस आसन से  अध्यात्म की ओर अग्रसर होता है | दूसरे और ग्यारहवें आसन से भुजाओं  और पीठ की रीढ़ का व्यायाम होता है तथा आंत और पेट की मांसपेशियों में फैलाव एवं रीढ़ और गर्दन के दर्द भी दूर हो जाते हैं |तीसरे एवं दसवें आसन से पेट की समग्र बीमारियाँ दूर होती हैं |पेट व उसके आस पास की चर्बी में कमी आती है तथा पाचन क्रिया ठीक हो जाती है |इससे पीठ की रीढ़ में लचीलापन आता है तथा यह  आसन कमर दर्द दूर करने में विशेष सहायक माना जाता है |  चतुर्थ एवं नवम आकृति से मानसिक तनाव में कमी आती है तथा तथा सम्पूर्ण पेट और पीठ की कठोरता भी समाप्त हो जाती है | दोनों जंघाओं एवं पैरों की मांसपेशियों में मजबूती आती है | पांचवें और आठवें आसन से पीठ की रीढ़ एवं पेट की मांसपेशियों की मालिश एवं रीढ़ की स्नायु को स्वच्छ रक्त प्रवाह सुलभ हो जाता है |गर्दन से रीढ़ तक के भागों को स्फूर्ति व शक्ति मिलती है |छठें एवं सातवें आसन से वक्षस्थल का विकास होता है और भुजाओं ,पीठ एवं नितम्ब की मांसपेशियों को अतिरिक्त शक्ति मिल जाती है जो मधुमेह की बीमारी दूर करने में सहायक होता है |
     सूर्य नमस्कार में इन बारह आकृतियों से गुजरने के पश्चात शरीर के समस्त अंगों ,मांसपेशियों ,ग्रन्थियों ,एवं प्रमुख भीतरी अंगों पर सीधा प्रभाव पड़ता है जिससे उन्हें अतिरिक्त शक्ति व स्फूर्ति प्राप्त होती है |यह आसन सामान्य रोगों का कुचालक माना जाता है |इन बारह आसनों को समन्वित रूप में  करते समय श्वास का आवागमन तेजी से होता है, फलतः कार्बन आक्साइड गैस बाहर निकलती है और फेफड़ों के कीटाणु भी बाहर निकल जाते हैं |चूंकि इस आसन के दौरान आक्सीजनयुक्त स्वच्छ हवा मिलती रहती है फलस्वरूप मष्तिष्क को विशेष स्फूर्ति व ताजगी महशूस होती है |
कोई भी आसन अथवा उसकी मुद्रा श्रेष्ठ नहीं होती बल्कि आसन करने की भावना ही उसे श्रेष्ठ बनाती है। मात्र शरीर को हिलाना डुलाना ही योगासन नहीं कहलाता वरन योग का वास्तविक स्वरूप मनुष्य का भावनात्मक सन्तुलन है। यदि  मनुष्य अपने कर्म संस्कारों का क्षय करते हुए भावनात्मक संतुलन प्राप्त कर लेता है तो वह स्वतः योगी के परमपद का अधिकारी हो जाता है। सूर्यनमस्कार मात्र शारीरिक आसन नहीं है बल्कि यह साधक को भावनात्मक एवम मानसिक स्वास्थ्य भी प्रदान करता है। देव संस्कृति विश्वविद्यालय हरिद्वार के मानवीय चेतना एवम योग विज्ञान विभाग की शोधकर्त्री सुश्री इंदु शर्मा द्वारा डॉ प्रणव पंड्या के संरक्षण में अस्सी साधकों को नब्बे दिन तक ३० मिनट प्रतिदिन सूर्य नमस्कार कराने के पश्चात उनके शारीरिक,मानसिक एवम भावनात्मक स्थितियों में आये हुए अभूतपूर्व परिवर्तन से इस तथ्य की पुष्टि की  है। योगाचार्यों का अभिमत है कि सूर्य नमस्कार स्वयं में एक पूर्ण यौगिक अभ्यास है। केवल इसी आसन के नियमित अभ्यास से व्यक्ति सम्पूर्ण स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर सकता है तथा अपनी मानसिक समस्याओं यथा चिंता,तनाव,क्रोध,अनिद्रा,ईर्ष्या,द्वेष आदि को दूर कर सकता है। 
सूर्य नमस्कार के अंतर्गत तीन विभिन्न प्रणालियों का अनुसरण करना पड़ता है। प्रथम आसन ,द्वितीय प्राणायाम {श्वसन }और तृतीय मन्त्रोच्चारण।सूर्य नमस्कार में बारह विभिन्न आसनों से गुजरना पड़ता है। इन बारह आसनों का सम्बन्ध सूर्य के गमन मार्ग  पड़ने वाली बारह राशियों से जोड़कर देखा जाता है। ये बारह आसन क्रमशः प्रणमासन,हस्तोत्तानासन,पादहस्तासन,अश्वसंचालनासन,पर्वतासन,अष्टांगासन,भुजंगासन,पर्वतासन,अश्वसंचालनासन,  पादहस्तानासन,हस्तोत्थानासन, एवम प्रणमासन हैं। वास्तव में प्रथम छह आसन ही प्रधान आसन हैं और सातवें आसन से क्रमशः उनकी पुनरावृत्ति की जाती है। सूर्य नमस्कार  समस्त गतिविधियां श्वसन प्रक्रिया के नियंत्रण के साथ सम्पन्न की जाती हैं और प्रत्येक आसन का सम्बन्ध पूरक,रेचक और कुम्भक में से किसी  साथ निर्धारित किया जाता है। सूर्य नमस्कार के बारह आसनों अथवा मुद्राओं में प्रत्येक के साथ बीजाक्षरयुक्त मन्त्र सम्बद्ध किये गए हैं  आसनों की स्थितियों के अनुरूप ही अभ्यासकर्ता को  आत्मसात करना पड़ता है। 
इस प्रकार सूर्य नमस्कार योग की तीन विशिष्ट प्रक्रियाओं का सम्मिलित योगाभ्यास है जो सम्पूर्ण व्यक्तित्व पर सकारात्मक प्रभाव डालता है। अतः यह एक यौगिक अभ्यास है जो शरीर ही  बल्कि मन और उसके मनोभावों से सम्बद्ध क्षमताओं पर सकारात्मक प्रभाव डालता है। इसके साथ ही साथ व्यक्तित्व को अनेक प्रकार की मनोशारीरिक एवम भावनात्मक व्याधियों को भी नष्ट कर देता है।
विधि :----
सूर्य नमस्कार हेतु सर्वप्रथम आसन पर प्रार्थना की मुद्रा में सीधे खड़े हों जाएँ ,दोनों एडियाँ   आपस में जुड़े रहें तथा पंजे खुले रहें, जुडी हुई हथेली छाती  के ठीक सामने रहे | आँखें पूर्णतयः बंद होनी चाहिए एवं ध्यान सम्पूर्ण शरीर पर केन्द्रित रहे | ऐसी  स्थिति में आने से पूर्व श्वास को पूरी तरह बाहर निकालते हुए  मध्यम स्वर में ॐ सूर्याय नमः का उच्चारण कर सूर्य देव का आह्वान करें |
उपरोक्त क्रिया के पश्चात दूसरी स्थिति के लिए अपने दोनों हाथों को सिर से ऊपर की ओर तानते हुए पीछे की ओर ले जाएँ किन्तु यह ध्यान रहे कि दोनों हाथों के मध्य कंधे के बराबर की दूरी रहे  तथा हाथों की अंगुलियाँ आपस में मिली हों |अब अपने सिर एवं भुजाओं को पीछे की ओर धकेलें |इस स्थिति  में ध्यान विशुद्धि चक्र पर केन्द्रित होना चाहिए |
तीसरे क्रम में आगे की ओर झुकें ,श्वास बाहर निकालें ,एवं हाथों की पांचों अँगुलियों के अग्र भाग को आसन पर रख दें | अब घुटनों को सीधा रखते हुए अपने सिर को दोनों भुजाओं के बीच में स्थित करें तथा यथासम्भव घुटनों को ललाट से स्पर्श कराने का प्रयास करें | इस दौरान घुटने मुड़ने नहीं चाहिए | इस स्थिति में ध्यान मणिपुर चक्र [नाभि  के पीछे रीढ़ पर ] पर केन्द्रित रखें |  
चौथी स्थिति में बायाँ पैर पीछे की ओर ले जाएँ और बाएं घुटने को आसन से स्पर्श कराएँ |अब दाहिने पैर को मोडकर आगे की ओर झुकाएं किन्तु दाहिना पैर और हाथ एक सीध में होने चाहिए |अपने शरीर का भार दोनों हाथो  ,दाहिने पैर ,बाएं घुटने और बाएं पैर के अंगूठों पर होना चाहिए |सिर को थोडा पीछे की ओर तानें ताकि पीठ हल्की सी दबी रहे और ऊपर की ओर देखने का प्रयास करें |इस मुद्रा में श्वास भीतर और ध्यान स्वाधिष्ठान चक्र पर रहे |
पांचवी स्थिति पर्वत आसन की है जिसमें दाहिना पैर बाएं पैर के पास ,पेट और बाएं घुटने को थोडा ऊपर उठायें और शरीर को पर्वताकार त्रिकोण  स्थिति में रखें |छाती को तुड्डी से स्पर्श करते हुए सिर को नीचे की ओर झुकाएं | इस मुद्रा में श्वास पूरी तरह बाहर निकली हो एवं ध्यान सह्श्रार चक्र पर केन्द्रित हो |
छठी स्थिति में अष्टांग नमस्कार की मुद्रा बनाएं जिसमें शरीर के पांच अंग जैसे अंगूठे ,घुटने ,छाती ,तुड्डी और हाथ जमीन अथवा आसन को स्पर्श करें | पैर और नितम्ब आसन से थोडा ऊपर रहें और ध्यान सम्पूर्ण शरीर पर केन्द्रित रहे |
सातवीं स्थिति में भुजंगासन  अर्थात कमर से ऊपरी भाग को श्वास लेते हुए ऊपर की ओर उठायें |यह ध्यान रहे कि भुजाएं सीधी रहें और सिर को  पीछे की ओर तानें | इस स्थिति में ध्यान स्वाधिष्ठान चक्र पर केन्द्रित होना चाहिए |
आठवीं स्थिति में श्वास छोड़ते हुए पांचवी स्थिति में वापस आ जाएँ |
नौवीं स्थिति में श्वास खींचते हुए दाहिना पैर आगे करें और बायाँ घुटना नीचे  करके आकृति चार में स्थित हो जाएँ |
दसवीं स्थिति में श्वास छोड़ते हुए बायाँ पैर दाहिने पैर के पास लायें और अपने दोनों पैरों को फैलाएं और आकृति  तीन में स्थित हो जाएँ |
ग्यारहवीं स्थिति के लिए श्वास भरते हुए दोनों हाथ ऊपर करके आकृति संख्या दो बनाएं |
बारहवीं और अंतिम स्थिति के लिए श्वास छोड़ते हुए आकृति एक में वापस आ जाएँ |
सूर्य नमस्कार की चरम स्थिति बनाये रखने के लिए प्रत्येक मुद्रा में उतनी ही देर तक रहें जितनी देर तक श्वास को नियंत्रण में रख सकें | प्रातः काल सूर्योदय के समय इस आसन को करना लाभकारी होगा |सूर्य नमस्कार का अभ्यास सावधानीपूर्वक करने से सम्पूर्ण शरीर में ताजगी आती है ,कार्य क्षमता बढती है तथा पीठ और मेरुदंड  को विशेष लाभ मिलता है |

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