Sunday 30 October 2011

उज्जायी प्राणायाम

उज्जायी वह प्रक्रिया है जिसमें फुप्फुस पूरी तरह फैलाये जाते हैं और अभिमानी विजेता के समान सीना बाहर निकाला जाता है / इसके लिए उपयुक्त समय प्रातः काल अथवा सायंकाल है |यह कभी भी किसी साफ सुथरे स्थान पर जहाँ प्रदूषण न हो, किया जा सकता है |  |
विधि :---
-१- पद्मासन, सिद्धासन अथवा सुखासन में सुविधानुसार आसन पर बैठ जाएँ |
२- पीठ को सीधा एवं कड़ा रखें | धड की ओर सिर को थोडा नीचा करें और सीने  की हड्डी के ठीक ऊपर हंसुलियों के बीच कटाव पर चिबुक को स्थिर [जालन्धर बंध ] रखें |
३-मुंह और दोनों आँखें बंद रखें तथा दोनों नाक छिद्रों से सामान्य रूप से श्वास लेते हुए दृष्टि को अन्तर्मुखी बनाएं |
४- अब श्वास को पूरी तरह छोड़ें | यहीं से श्वास की उज्जायी प्रणाली आरम्भ होती है |
५- दोनों नाकों से धीमी ,गहरी ,स्थिर साँस लें और अंदर आती हुई हवा के मार्ग का अनुभव तालू के ऊपरी  भाग पर होता है तथा सिसकारी  की ध्वनि  होती है | इस ध्वनि  को ध्यानपूर्वक सुनना चाहिए |
६- ऐसा महशूस करें कि श्वास गले की नली से छोड़ रहें हैं ,नाक के छिद्र से नहीं |
७- पुनः नया श्वास लेने के पहले कुछ सेकंड के लिए ठहरें ,इसे वाह्य कुम्भक कहते हैं |
८- आँखें पूर्णतयः बंद रखते हुए पांच से दस मिनट के लिए इस मालिका को दुहरायें और अंत में शवासन में लेट जाएँ  | निम्न रक्त चाप की स्थिति में इसे न करें |
९ -इस दौरान यह ध्यान रहे कि श्वास सामान्य और अत्यंत धीमा हो जो एक शिशु के श्वास की भांति हो |
परिणाम :----
- यह प्राणायाम कंठ के संक्रामक रोग को दूर करता है और कफ को रोकता है |
२- स्वास्थ्य में गिरावट रोकने के लिए इसे अवश्य करें |
३- यह ह्रदय रोग की बीमारियों को ठीक करता है और नाड़ियों को शांत करता है |
४- यह जठराग्नि तेज करता है और सिर की गर्मी दूर करता है |
५- झुकी हुई स्थिति में बिना कुम्भक के किया गया उज्जायी प्राणायाम उच्च रक्त चाप या कपालवेदना से पीड़ित व्यक्तियों के लिए उत्तम है |
६- यह आक्सीजन की मात्रा  बढ़ाकर स्नायु व्यवस्था में शांति लाता है ,फलतः परम सुख की भावना पैदा होती है |
७- यह अतिरिक्त लार पैदा करता है जिससे गले की खुश्की दूर हो जाती है |
८- यह एक ऐसा प्राणायाम है जिसे रात और दिन कभी भी सुविधानुसार किया जा सकता है |
९ - यदि कोई रोगी उच्च रक्त चाप ,खुजली और अनिद्रा से पीड़ित है तो वह उज्जायी प्राणायाम एक घंटे तक करे | यह क्रिया योग में  अजपाजप के साथ भी की जाती है |
१०- यदि जिह्वा को ऊपर की ओर लपेटकर एवं  तालू से सटाकर किया जाये तो अतिरिक्त लार पैदा होगी और इससे पाचन क्रिया सहज हो जाएगी |

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