यौगिक दृष्टि से शरीर और मन के साथ साथ भावना एक दूसरे से इस प्रकार अविभक्त होती हैं कि वे कोशिश करने के बावजूद भी अलग नहीं की जा सकती हैं |मन केवल मष्तिष्क को सोचने का प्रेरक ही नहीं अपितु वह बुद्धिपुंज भी है जो शरीर के अंग प्रत्यंग और सूक्ष्मतम भागों को भी संचालित करता है |शरीर को प्रभावित करने वाली प्रत्येक वस्तु या प्रक्रिया का प्रभाव मन पर अवश्य पड़ता है और मन का शरीर पर |चूंकि मन सम्पूर्ण शरीर में अंतर्व्याप्त है और उसके प्रत्येक अणु में प्रविष्टि है ,इसलिए यौगिक क्रियाओं का जिन्हें हम योगासन कहते हैं ,मन और भावनाओं पर भी उतना ही प्रभाव डालती हैं |यह निर्विवाद रूप से सत्य है कि स्वाभाविक शान्ति एवं विश्राम तथा मन और भावनाओं की स्थिरता प्रदान करने में साधारण योग और सामान्यतः ध्यान जितना प्रभावी है उतना कोई अन्य नहीं | इस पद्धति की यह विशेषता है कि कुछ ही मिनटों में किये गये आसनों व प्राणायामों के अभ्यास के पश्चात स्वयमेव आनंद की अनुभूति होने लगती है |
अनिद्रा एक ऐसी सामान्य बीमारी है जिससे अनेकों व्यक्ति पीड़ित हैं |जब किन्हीं कारणों से नींद नहीं आती है तब अनिद्रा के विषय में चिंतन करना स्वाभाविक हो जाता है क्योंकि अनिद्रा के दुष्प्रभाव से हम भलीभांति परिचित हैं |अनिद्रा के सम्बन्ध में ज्यों ज्यों हम चिन्ता करते हैं त्यों त्यों उसकी गम्भीरता भी बढती जाती है |जो लोग रात में नींद की गोलियों का सेवन करते हैं उन्हें मालुम है कि यह उनके स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक है फिर भी तात्कालिक लाभ को वे नजरंदाज नहीं कर पाते हैं |
तनाव मन की वह स्थिति है जिसमें मनुष्य एक प्रकार के मानसिक बोझ से दबाव महशूस करता है और निरंतर अन्तर्द्वन्द में रहता है |विज्ञानं भी इस तथ्य को मानने लगा है कि तनाव से शारीरिक एवं मानसिक दोनों प्रकार की बीमारियाँ पैदा होती हैं |तनाव के लक्षण मनुष्य के कार्य व्यवहार से स्पष्ट होने लगते हैं जब वह बात बात पर भडक उठता है और उसके चेहरे की मुस्कराहट गायब हो जाती है |
योग से तनाव का उपचार सम्भव है | प्राणायाम में लम्बी गहरी साँस ,शीतली प्राणायाम ,लोम अनुलोम ,कपालभाति,उज्जायी ,भ्रामरी आदि प्राणायाम मन के तनाव को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं |इसी प्रकार ध्यान जो मन का स्नान माना जाता है ,भी तनाव मुक्ति का अचूक साधन है | प्रातःकाल १५-३० मिनट ध्यान करने से तनाव स्वतः दूर हो जाता है | योगनिद्रा द्वारा लम्बे समय से तनावग्रस्त व्यक्तियों का सहज उपचार सम्भव हो जाता है क्योंकि उनके अवचेतन मन की ग्रन्थियों को योगनिद्रा द्वारा खोल दिया जाता है | कुछ तनाव से ग्रस्त महिलाओं पर शशांक आसन और ॐ की सस्वर ध्वनि का जादुई असर भी देखा गया है | शवासन भी तनाव दूर करने में प्रभावी माना गया है |
योग की अनेकों ऐसी क्रियाएं हैं जैसे -ताडासन,भुजंगासन व गर्दन के अन्य आसन ,भ्रश्त्रिका व नाड़ीशोधन प्राणायाम जो विश्रामपूर्ण नींद लाने में सहायक होते हैं |ये सभी अंगों के फैलाव की सहज व सरल क्रियाएं मात्र हैं जिससे तनाव स्वतः दूर हो जाता है |अतः शरीर के उन प्रमुख अंगों जहाँ तनाव ,कड़ापन, जकडन महशूस होता हो उन्हें रात में विश्राम के पूर्व फैलाव के आसन अवश्य करना चाहिए |यह हमेशा याद रखना चाहिए कि तनाव और विषाद की घनीभूत पीड़ा को झेलकर अथवा उस पीड़ा से गुजरकर जब उस पार जाते हैं तो एक दिव्य विश्रांति हमारा इंतजार कर रही होती है | इसलिए विषाद भी योग का ही एक घटक है और आनन्द का यह प्रारम्भिक सोपान है |यह सदैव ध्यान रखें कि तनाव जीवन को आगे बढ़ाने या ऊपर उठने में सहायक है लेकिन अनियंत्रित तनाव केवल समस्याएं पैदा करता है | तनाव से बचने के लिए उठाये गये गलत कदम जैसे कि दवाइंया लेना ,नशा करना ,अधिक खाना आदि तनाव को और अधिक बढ़ाते हैं,कम नहीं करते हैं |
सामान्यतः तनाव को नकारात्मक रूप में नहीं लेना चाहिए क्योंकि प्रायः तनाव जीवन में आगे बढने में मदद करता है| अतःतनाव दूर करने के लिए नियमित और क्रमबद्ध तरीके से किये गये योगासन जैसे अर्धचन्द्रासन ,ताड़ासन ,वज्रासन ,शशांकासन ,भुजंगासन ,शलभासन ,पोदोत्तानासन, पवनमुक्तासन एवं ,मकरासन के पश्चात किये गये प्राणायाम जिसमें गहरे लम्बे सांस ,अनुलोम विलोम ,भ्रामरी एवं शिथिलीकरण की क्रियाएं करनी चाहिए |योगनिद्रा तथा ध्यान भी तनाव दूर करने में सहायक होते हैं| तनाव दूर करने के लिए हंसी रामबाण सिद्ध हो सकती है क्योंकि शरीर से तनाव व नकारात्मक सोच बढ़ाने वाले तत्व कोर्टीसाल की मात्रा इससे क्रमशः कम होती है |सकारात्मक ऊर्जा पैदा करने वाले तत्व सेरोटीन का स्तर भी बढ़ता है जिससे शरीर को आंतरिक व रोग प्रतिरोधक क्षमता में अतिशय वृद्धि होती है |तनाव से होने वाले रोगों में मनोरोग ,हाईब्लडप्रेशर, हाइपरटेंशन, ह्रदयरोग ,अस्थमा ,मधुमेह ,पेप्टिक अल्सर एवं अनिद्रा आदि मुख्य हैं |तनाव से मुक्ति के लिए कुछ बातें जो निम्नवत हैं ,का ध्यान में रखना आवश्यक है ---
१-शरीर के भार व वजन को क्रमशः कम करें और मेहनत करके पसीना बहायें |
२ -धूम्रपान अथवा नशीली वस्तुओं का परित्याग करें और आशावादी दृष्टिकोण रखें |
३ -नमक व काफी का प्रयोग कम करें तथा पानी अधिक से अधिक पियें और अजवाइन का भोजन में सेवन करें |शिथिलीकरण व लम्बे गहरे साँसों का अभ्यास करें |
४ -समय समय पर अपने व्यावसायिक कार्य से छुट्टी रखें तथा सद्साहित्य पढ़ें व मनोरंजन हेतु कोई भी कार्य करें |आसन प्राणायाम व ध्यान निरंतर करते रहें तथा प्रत्येक कार्य ईश्वर के निमित्त करें |
५ -जीवन में नियमित योग साधना अपनाकर योगमय जीवन व्यतीत करें तथा कोई रचनात्मक कार्य करते रहें तथा अपने मनोबल को हमेशा बढ़ाएं | |
५ -जीवन में नियमित योग साधना अपनाकर योगमय जीवन व्यतीत करें तथा कोई रचनात्मक कार्य करते रहें तथा अपने मनोबल को हमेशा बढ़ाएं | |
६ -अहंकारी व्यक्ति दुखी होता है और दूसरों को भी दुखी करता है |ऐसे व्यक्ति के जीवन में तनाव स्थायी रूप ले लेता है |अहंकार से क्रोध व अशांति पैदा होती है ,क्रोध से विवेक नष्ट हो जाता है और वह पाप कर्मों की ओर प्रवृत्त होता है |अतः रोजाना सोने के पूर्व आत्म निरीक्षण अवश्य करें |
७-जो आपके वश में नहीं है उसके बारे में सोचकर समय नष्ट न करें बल्कि जो वश में है उसे करने में लग जाएँ
८ -जब तक सफलता नहीं मिल जाती तब तक पूर्ण आत्म विश्वास और धैर्य के साथ निरंतर कार्य करते रहें |
इस प्रकार जीवन में सहजता अपनाकर भी हम तनाव की अपेक्षा प्रसन्नता प्रदान करने वाले क्षणों को सदैव खोजते रहें और आनदमय जीवन व्यतीत करें |
७-जो आपके वश में नहीं है उसके बारे में सोचकर समय नष्ट न करें बल्कि जो वश में है उसे करने में लग जाएँ
८ -जब तक सफलता नहीं मिल जाती तब तक पूर्ण आत्म विश्वास और धैर्य के साथ निरंतर कार्य करते रहें |
इस प्रकार जीवन में सहजता अपनाकर भी हम तनाव की अपेक्षा प्रसन्नता प्रदान करने वाले क्षणों को सदैव खोजते रहें और आनदमय जीवन व्यतीत करें |
No comments:
Post a Comment