Sunday 16 October 2011

शवासन

शव का अभिप्राय है मृत अथवा मुर्दा | इस आसन में शव की यथास्थिति का अनुकरण करते हुए इसकी मूल भावना में प्रवेश करना होता है | प्राण निकलने के पश्चात जैसे शरीर निष्क्रिय हो जाता है और तब उसमें किसी प्रकार की गति या हलचल  सम्भव नहीं हो पाती है,ठीक यही स्थिति बनाने के लिए कुछ समय के लिए शरीर को निष्क्रिय रखकर मन को अविचल रखना होता है |यह एक प्रकार से पूर्ण आराम की स्थिति है |यह सचेत विश्राम मन और शरीर दोनों  को सशक्त और प्रफुल्लित करता है | इसमें शरीर की अपेक्षा मन को अधिक  स्थिर रखना होता है | इसलिए आसान सा  दिखने वाला यह आसन वास्तव में बहुत ही कठिन आसन है जिसकी निरंतर साधना करते हुए साधक अपनी शरीर को पूर्ण विश्राम दे पाता है |प्रत्येक  आसन के बाद शवासन  अवश्य करना चाहिए | जब कभी आप काम करते थक जाएँ ,बाहर से थके हुए आयें ,मन किसी भी समस्या से अशांत हो तो पांच मिनट तक शवासन करने से अपूर्व  शांति मिल जाएगी |
विधि :--
१- शव के समान पीठ के बल पूरी लम्बाई में लेट जाएँ और अपनी हथेलियाँ अपने दोनों हाथ जंघाओं से कुछ दूर ऊपर की ओर  अधखुली रखकर आसन पर  रखें |अपने को दैनिक जीवन की समस्याओं से पूर्णतयः अलग करें  और मंद गति से आती जाती अपनी श्वास पर ध्यान केन्द्रित करें |
२- शवासन के समय अपनी दोनों आँखें पूर्णतयः बंद रखें तथा  एडियों पर पंजे को दायें व बाएं गिरा दें तथा शरीर के सभी अंगों को बिलकुल शिथिल कर दें और मानसिक रूप से अपने शरीर को हल्का मह्शूश करें |
३- आरम्भ में गहरी और लम्बी सांसे लें  और मेरुदंड को बिना हिलाए- डुलाये हल्की और धीमी साँस लेते रहें  | इस दौरान ध्यान अपने शरीर पर केन्द्रित रखें |श्वास प्रक्रिया को मानसिक दृष्टि से सावधानीपूर्वक देखें अथवा महशूस करें  |
४- गहरी और धीमी सांसे लेते समय अपना ध्यान उन पर ही केन्द्रित रखें तथा सांसो में क्रमशः सहजता लायें और थोड़ी देर बाद अपनी श्वासों से ध्यान हटाकर शरीर के अंगों पर ध्यान केन्द्रित करें |
५- अपने जबड़े को ढीला रखें तथा शरीर के प्रत्येक अंग प्रत्यंग को शिथिल छोड़ दें |पूर्ण विश्राम की स्थिति में धीरे धीरे श्वसन क्रिया को जारी रखें | यदि शरीर के किसी अंग में तनाव या  खिंचाव मह्शूश हो तो उस अंग को दायें बाएं हिलाकर शिथिल कर लें | इस दौरान अपने आप  को अशरीरी मह्शूश करें |
६- यदि मन में किसी प्रकार के अन्य भाव आ रहें हैं तो उन्हें आने दें लेकिन उनमें ठहराव न आने पाए |
७- इस स्थिति में कम से कम १५-२० मिनट तक रहें |
८- शवासन के आरम्भ में नींद आने की सम्भावना रहती है किन्तु प्रयास करके ऐसी स्थिति न आने दें |
९-शवासन के दौरान आनन्द  की अनुभूति करें एवं शरीर को निष्क्रिय मह्शूश करें |पूर्ण विश्राम की स्थिति में मष्तिष्क के पृष्ठ भाग से एडी की ओर शक्ति के प्रवाह का अनुभव किया जा सकता है |
१० - शवासन मुख्यतः शरीर के समस्त अंगों के शिथिलीकरण का आसन है किन्तु यह मानसिक शांति भी प्रदान करता है /
परिणाम :--
 हठयोग प्रदीपिका के प्रथम अध्याय के ३२ वे श्लोक में कहा गया है कि--पीठ के बल जमीन पर शव की तरह पूरी लम्बाई में लेटना ही शवासन कहलाता है |यह आसन अन्य आसनों के पश्चात शरीर को आराम देने के लिए भी किया जा सकता है क्योंकि यह शरीर की थकावट को दूर करने में सहायक होता है और मन को अपूर्व शान्ति प्रदान करता है | यह स्नायु व्यवस्था को नियंत्रित करता है | हठयोग प्रदीपिका के अध्याय ४, श्लोक २९ तथा ३० में कहा गया है कि मन इन्द्रियों का राजा है ;प्राण मन का राजा है |जब मन विलीन होता है तो वह मोक्ष कहलाता है ;जब प्राण और मनस [मन ]विलीन होते हैं तब अनिर्वचनीय आनद उद्भूत होता है |शवासन रक्तचाप और ह्रदय रोग को दूर  करने में काफी सहायक होता है | जब कभी चिंता,दबाव अथवा अनिद्रा से पीड़ित हों तब इसका अभ्यास अवश्य करना चाहिए |
हमारे शरीर में प्राण- पोषण पूर्णतयः नाड़ियों पर निर्भर है | जब शरीर अस्थिर होता है तब मंद तथा गहरी श्वास क्रिया नाड़ियों की  थकान को कम करती हैं तथा मन को शांति प्रदान करती हैं |आजकल की दौड़धूप की जिन्दगी में नाड़ियों पर अनावश्यक भार बना रहता है जिसके लिए शवासन सर्वोत्तम औषधि के रूप में हमें राहत प्रदान कर सकता है | शवासन द्वारा ही योगनिद्रा क्रिया सम्पन्न की जाती है |योगनिद्रा द्वारा शरीर को पूर्ण आराम प्राप्त होता है | इस आसन को नियमित रूप से करने से उच्च रक्त चाप नियंत्रित रहता है /

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