Sunday 30 October 2011

शीर्षासन

सिर पर खड़े होने का आसन अत्यंत महत्वपूर्ण यौगिक आसनों में से एक है |यह मौलिक शारीरिक स्थिति है| शीर्षासन माला में कई प्रकार से इस आसन को किया जाता है जैसे सालम्ब शीर्षासन ,निरालम्ब शीर्षासन ,ऊर्ध्व पद्मासन ,कपाली आसन आदि। यह सभी आसन शीर्षासन के ही विस्तार के रूप में जाने जाते हैं।  शीर्षासन में पारंगत होने के बाद किसी कुशल शिक्षक की देखरेख में ही उक्त आसन करना चाहिए।प्रारम्भिक अवस्था में नये साधक को सावधानीपूर्वक निम्न विधि के अनुसार शीर्षासन  करना चाहिए :----
१- चार तह किया हुआ कम्बल भूमि पर बिछाएं और उसके पास में घुटने टेक कर आगे की ओर झुककर बैठें  |
२- अपनी एडियों के बल बैठकर घुटनों को जमीन पर एक साथ रखिये |
३- हाथों की अँगुलियों को आपस में फंसाकर अपने दोनों हथेलियों के पृष्ठ भाग को सिर के आगे  आसन पर रखें |
४- कम्बल पर केवल सिर का कपाल ही स्थिर करें और अपने सिर का पिछला हिस्सा हथेलियों के समीप ही रखें 
५-अपने पैर की अँगुलियों को सिर के निकट लाते हुए शरीर और घुटनों को जमीन से ऊपर की ओर उठायें |
६- श्वास छोड़ें एवं भूमि पर से हल्की उछाल लेते हुए मुड़े घुटनों को सीधा करते हुए दोनों टाँगें एक साथ ऊपर उठायें ताकि उसका भार आपके सिर और भुजाओं दोनों पर पड़े | इस क्रिया में घुटनों को शरीर के पास ही रखें |
७-अपनी टांगों को तानें और भूमि की सीध में सारे शरीर को रखते हुए सावधानीपूर्वक सिर पर खड़े हो जाएँ |
८- अपनी सामर्थ्य के अनरूप कुछ क्षणों तक इस स्थिति में स्थिर रहें तत्पश्चात अपनें पैरों को बहुत धीरे धीरे जमीन पर लायें | नौसिखिये व्यक्ति को एक मित्र की सहायता आवश्यक है या दीवार के सहारे इसे करें | दीवार  और सिर के बीच दो - तीन इंच का अंतर रखें |यदि अंतर अधिक होगा तो रीढ़ के टेढ़ी होने और पेट बढने की सम्भावना बढ़ सकती है |
९- दीवार के सहारे इसे करते समय नितम्बों को दीवार का सहारा दें और पैर ऊपर ले जाएँ तत्पश्चात पीठ को लम्ब रूप में ऊपर तानना चाहिए और धीरे-धीरे दीवार का सहारा छोडकर  संतुलन पर प्रभुत्व पाना चाहिए |  १०- जब एक बार संतुलन प्राप्त हो जाता है तब टागें सीधी किये बिना और नितम्बों के पीछे ओर की क्रिया के साथ भूमि पर नीचे आना सहज हो जाता है | टांगों को मोड़े बिना ऊपर जाना और नीचे आना प्रारम्भ में सम्भव नहीं है परन्तु उपरोक्तानुसार आत्मविश्वास के साथ यह क्रिया धीरे धीरे सहज हो जाती है |
११- जब एक बार आत्मविश्वास आ जाये तब सिर की स्थिति निश्चित करने के बाद भूमि से घुटने उठाते हुए टांगें सीधी तानें और पीठ सीधी रखते हुए पैर की अंगुलियाँ सिर के पास लायें तथा भूमि पर एडियाँ दबाने की कोशिश करें |रीढ़ के मध्य भाग को तानते हुए समान रूप से श्वास लें और ३० सेकंड या सामर्थ्य के अनुरूप कुछ देर इस स्थिति में रहें |प्रारम्भ में इसे २० सेकंड में करें और प्रतिदिन १० सेकंड उसमें जोडकर आगे आसन करते रहें | इसे प्रातः काल दिन में केवल एक बार ही खाली पेट की स्थिति में करें तथा इसे करते समय मन को सह्स्र्सार चक्र या अपनी साँस पर ध्यान केन्द्रित रखें |
शीर्षासन की स्थिति में ऊर्ध्व पद्मासन लगाने हेतु सांसों को सामान्य करते हुए अपनी दाहिनी टांग को मोडते हुए बायीं जंघा पर रखें तथा बायीं टांग को मोड़ते हुए दायीं जंघा पर रखकर पद्मासन लगा लें और कुछ देर तक इसी स्थिति में स्थिर रहें। 
शीर्षासन सम्बन्धी सावधानी :--
-शीर्षासन में संतुलन मात्र महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि साधक को क्षण प्रतिक्षण निगरानी रखनी है और बारीक़ से बारीक़ स्थिति की जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए | जब हम पैरों पर खड़े होते हैं तब हमें अतिरिक्त प्रयास ,शक्ति एवं ध्यान की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि यह प्राकृतिक स्थिति है |
अतः इस आसन को ताड़ासन की स्थिति में करना उचित होगा |शरीर का सारा भार केवल सिर पर ही उठाना चाहिए न की हथेलियों और हाथों पर |हाथ और हथेली किसी प्रकार के असंतुलन को रोकने के लिए ही उपयोग में लाये जाएँ |सिर का पृष्ठ भाग धड ,जांघों के पृष्ठ भाग और एडियाँ भूमि की सीध में होनी चाहिए ना कि एक ओर झुकी हुई |गला, चिबुक और सीने की  हड्डी एक पंक्ति में होनी चाहिए अन्यथा सिर एक ओर झुकेगा |सिर के पीछे परस्पर गुथे हाथ इस प्रकार होने चाहिए कि हथेलियाँ सिर से सटने न पायें |हथेलियों के ऊपरी और निचले हिस्से एक सीध में होने चाहिए अन्यथा सिर का कपाल ठीक तरह से भूमि पर स्थिर नहीं होगा |जब व्यक्ति उच्च या निम्न रक्त चाप से पीड़ित हो तो उसे यह आसन नहीं करना चाहिए |
शीर्षासन का परिणाम :----शीर्षासन मस्तिष्क को ताजा बनाने के लिए अत्यंत प्रभावकारी विधि है |इसे आसनों का राजा भी कहा जाता है |जन्म के समय हम प्रायःपहले सिर बाहर निकालते हुए दुनिया में आते हैं तत्पश्चात अन्य अवयव बाहर लाते हैं | खोपड़ी के अंदर मस्तिष्क बंद रहता है जो नाड़ी मंडल और ज्ञानेन्द्रियों को नियंत्रित करता है | इस आसन से निम्न  लाभ होते हैं :---
१- यह मस्तिष्क के स्नायु केंद्र में शक्ति प्रदान करता है और उसे सक्रिय भी बनाता है |
२- मस्तिष्क की शक्तियों में सुधार लाता है और मन को सतर्क बनाये रखता है |
३- सिर के बालों को झड़ने से रोकता है तथा देखने और सुनने की क्षमता बढाता है |
४- आत्मिक आवेगों, भय,क्रोध, और श्वास सम्बन्धी विसंगतियों को उचित समय पर समाप्त कर देता है |
५-मस्तिष्क में रक्त की आपूर्ति के फलस्वरूप सेल और टिस्यू को शक्ति प्रदान करता है |तेजी से रक्त संचार होने एवं रक्त में आक्सीजन की आपूर्ति से ह्रदय और अंतड़ियों को राहत मिलती है |
६- महिलाओं के गर्भाशय की मांसपेशियों को सशक्त बनाता है |
७- हार्निया और बन्ध्यता में राहत देने ,उसे रोकने एवं उसे समाप्त करने में सहायक होता है |
८- सिफलिस ,गुनोरिया एवं अन्य जननेद्रिय तथा अंडाशय रोगों को ठीक करने में सहायक होता है |
९- इससे अनिद्रा ,गुर्दा रोग ,कब्जियत एवं स्वप्नदोष रोकने में सहायता मिलती है तथा आँख ,कान, गला, नाक  के रोगों को  ठीक करता है |
१०-निद्रा ,स्मृति एवं जीवनशक्ति की कमी से ग्रस्त व्यक्तियों ने इस आसन के नियमित एवम उचित अभ्यास से उसकी पुनर्प्राप्ति की है |इसका नियमित अभ्यास मन को अनुशासित करता है एवं स्फूर्ति और उत्साह की वृद्धि करता है |

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