Sunday 18 December 2011

शिथिल आसन

शिथिल  आसन  एक प्रकार से आराम करने का आसन है किन्तु यह रक्त चाप को  नियंत्रित करने हेतु  एक  अत्यंत उपयोगी आसन  के रूप में माना जाता है |
विधि :--
१- पेट के बल आसन पर लेट जाएँ और शरीर के सभी अंगों  को पूर्णतयः शिथिल रखें |
२- अपनी श्वासों  को सामान्य कर लें और ध्यान अपने  शरीर पर ही केन्द्रित रखें  |
३- अब गर्दन घूमाकर बाएं कान को आसन पर रखें तथा बाएं हाथ को पीठ के सहारे पीछे सीधा  करके फैला लें |
४-अब दाहिने पैर को मोडकर घुटने को आगे नाभि के सीध में तथा दाहिने हाथ को मोडकर अंगूठे को नाक की सीध में रखें  |
५- इस प्रकार बायाँ पैर और हाथ दोनों सीधा  तथा दाहिना पैर और दाहिना हाथ मुड़ा रहे |
६- इस मुद्रा में शरीर को बिलकुल ढीला रखें तथा अपनी आती जाती  श्वासों पर ध्यान को केन्द्रित रखें  |
७- कुछ देर बाद दोनों हाथ और पैर को सीधा कर लें |
८- अब गर्दन घूमाकर दाहिने कान को आसन पर रखकर बाएं  घुटने और बाएं  हाथ को इस प्रकार मोड़ें कि आपका बायाँ अंगूठा  नाक की सीध में तथा बायाँ घुटना नाभि की सीध में आ जाये | दायाँ हाथ और दायाँ पैर सीधा रखें  /
९- शरीर को शिथिल रखते हुए अपने  श्वास- प्रश्वास पर ध्यान  को केन्द्रित रखें  |
१०- थोड़ी देर बाद दोनों पैरों  और हाथों को सीधा करते हुए पेट के बल आ जाएँ और शवासन में विश्राम करें |
सावधानी :--
इस आसन को खाली पेट ही करना चाहिए अथवा भोजन के कम से कम  ६ घंटे बाद |उच्च रक्त चाप के रोगी दाहिना शिथिल तथा निम्न रक्त चाप के रोगी बायाँ शिथिल आसन न करें |
परिणाम :-
१- इस आसन से अनिद्रा दूर होती है तथा मानसिक तनाव कम हो जाता है |
२- इस आसन का प्रभाव पाचन तंत्र पर भी पड़ता है जिससे कब्जियत दूर करने में सहायता मिलती है |
३- थकान मिटाने का यह सर्वोत्तम आसन है |
४- रक्त संचार में सुधार करके सभी अंगों को शक्ति प्रदान करता है |
५- हृदय रोग और रक्त चाप को संतुलित करता है |

सिद्धासन

सिद्धासन  में पद्मासन के सभी लाभ प्राप्त होते हैं और यह पद्मासन एवं सुखासन से उत्तम आसन माना जाता है क्योंकि इस मुद्रा में मेरुदंड बिलकुल सीधा रहता है | यह आसन प्राणायाम के लिए अधिक उपयुक्त माना जाता है | इसके निरंतर अभ्यास से मूलाधार चक्र से ऊर्जा शक्ति निकलकर सुषुम्ना के माध्यम से आज्ञाचक्र तक समस्त  चक्रों जैसे स्वाधिष्ठान,मणिपुर,अनहत,एवं विशुद्धि चक्रो को स्पर्श करते  हुए आज्ञा चक्र को प्रभावित करता है | इसलिए मन को एकाग्र करने एवं ध्यान के लिए यह सर्वोत्तम  आसन माना गया है |
विधि :----
१- आसन पर दोनों पैर फैलाकर बैठ जाएँ |
२- अपना बायाँ  पैर मोडकर एडी को गुदा एवं अंडकोष के समीप रखें | महिलाएं बच्चेदानी के मूल पर रखें |
३- अब दायाँ पैर मोडकर दायीं एडी को जननेंद्रिय की जड में तथा नाभि के ठीक नीचे रखें |
४- अपने पैरों को इस प्रकार रखें कि दाहिनी एडी बायीं एडी के ठीक ऊपर रहे |
५- मेरुदंड और शरीर भूमि पर सीधे रहें तथा घुटने भूमि से सटे रहें |
६- अब दोनों आँखें बंद कर लें और  यथासम्भव रुकें ,स्थिर रहें तथा अपनी आती- जाती श्वास को मन की आँखों से निरंतर  देखते रहें |
७- इस दौरान ऐसा अनुभव करें कि नाभि से श्वास  लेकर ऊपर पेट ,छाती ,कंठ तक ले जाते हुए दोनों नाकों से श्वास छोड़ते हुए पुनः नाभि से श्वास लेने की अवस्था में प्रवेश कर रहें हैं |
८-  श्वास की इस चक्राकार प्रक्रिया  में ध्यान को अपनी श्वासों पर ही केन्द्रित रखें  |
९- श्वास- प्रश्वास की गति स्थिर होने पर लगभग एक मिनट में आठ बार श्वास लेने और छोड़ने का चक्र पूर्ण होने पर दोनों भौहों के बीच त्रिकुटी [आज्ञाचक्र ] पर मन को केन्द्रित करें और थोड़ी देर स्थिर रहें |
सावधानी :--
 स आसन को कम से कम १० मिनट अथवा जब तक दर्द न महशूस हो सुविधानुसार करते रहें | प्रातः या संध्या काल में एक बार ही इस आसन को करें | जिन रोगियों को घुटने  में दर्द हो वे इसे कदापि न करें | महिलाओं  को भी यह आसन वर्जित है |
परिणाम :--
१- ध्यान के लिए यह सर्वोत्तम आसन है |
२- इस मुद्रा में बैठने का निरंतर अभ्यास यदि कर लिया जाये तो इससे अनेक सिद्धियों की प्राप्ति सम्भव हो जाएगी |
३- नवयुवक ,ब्रह्मचारी एवं अविवाहित  युवक जो ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहते हैं,  के लिए यह आसन बहुत ही लाभकारी  माना गया है |
४- चूंकि इस आसन में एक एडी मूलाधार चक्र पर दबाव डालती है और दूसरी एडी गुर्दे के धरातल [लिंग एवं योनि के मूल ] पर रहे / इसप्रकार  महत्वपूर्ण शक्ति को रोकने के कारण यह आसन विशेष लाभप्रद है |
५- यह आसन आध्यात्मिक चेतना प्रदान करता है तथा पाचन क्रिया में सुधार भी लाता है |
६- सिद्धासन से मानसिक तनाव और अनिद्रा दोनों दूर हो जाती है |
७- यह आसन हृदय रोग और रक्त चाप दोनों को संतुलित करता है |

Saturday 17 December 2011

अध्वासन

अध्वासन सरल आसन की श्रृंखला का एक सरल आसन है | अध्व का अर्थ है नीचे | इस आसन में शवासन की   विपरीत  मुद्रा बनाई जाती  है |
विधि :---
१- अपने आसन पर पेट के बल सीधा लेट जाएँ और सांसों को सामान्य कर लें |
२- दोनों हाथों को आगे हथेली नीचे करके फैला लीजिये और दोनों पंजों को आपस में मिला लीजिये  |
३- अपने दोनों पैरों और हाथों की अँगुलियों को पीछे की ओर तानें और शरीर के मध्य भाग से ऊपर और नीचे दोनों ओर शरीर को लम्बवत खींचें | इस दौरान दोनों हथेलियाँ एवं पंजे को थोडा ऊपर की ओर उठा लें |
४- अब गहरी और लम्बी साँस भरें और आराम का अनुभव करें  |
५-  इस दौरान अपनी दोनों आँखों को बंद रखें तथा बिना हिले डुले हुए  स्थिर रहें | इस समय आपका सम्पूर्ण ध्यान शरीर पर केन्द्रित होना चाहिए |
६- यथासम्भव रुकने के बाद हथेली और पंजे को नीचे आसन पर ले आयें और विश्राम करें |
सावधानी :--
 -इस मुद्रा में दो या तीन मिनट अथवा जितनी देर तक रुक सकें उतनी देर तक रुकें और आराम का अनुभव करें | इस आसन को प्रातः या संध्या किसी समय खाली पेट अथवा भोजन के ६ घंटे बाद ही करें |
परिणाम :---
१- यह आसन शरीर को आगे झुकने से रोकता है और रक्त प्रवाह में सुधार लाता है |
२- इस आसन से मेरुदंड और शरीर के शेष भाग में फैलाव  महशूस होता है |
३- घुटने एवं ठेहुने की कटोरी खिसक जाने  और गर्दन में कड़ापन होने पर यह आसन दर्द को दूर कर देता है |
४- यह  स्नायु एवं मांसपेशियों की प्रणाली को आराम पहुंचाता है और उनके कार्यों में सुधार लाता है |
५- पीठ दर्द के निवारण में यह आसन रामबाण की तरह उपयोगी माना गया है |

Sunday 11 December 2011

चक्रासन

चक्रासन  कठिन आसनों की श्रृंखला का एक महत्वपूर्ण आसन है |यह किशोरियों के लिए विशेष लाभकारी आसन माना जाता है | रजस्वला की प्रारम्भिक स्थिति  में मासिक धर्म सम्बन्धी कठिनाइयों को दूर करने में सहायक होता है |
विधि :---
- आसन पर शवासन की मुद्रा में लेट जाएँ |
२- घुटनों को मोड़ते हुए दोनों तलवों को सीधा जमीन पर एक फिट के फासले पर फैलाकर रखें जिससे एडियाँ नितम्ब के पास सटी रहें |
३-  अब अपने दोनों हाथों को सिर के ऊपर उठा लें |
४- दोनों हथेलियों को माथे के पास लाकर भूमि पर मोड़ते हुए इस प्रकार रखें कि अँगुलियों के अग्र भाग कंधों के निकट रहें |
५- अपने शरीर को बहुत धीरे धीरे जमीन से ऊपर इस प्रकार उठायें कि शरीर के ऊपरी भाग का भार सिर के ऊपरी भाग पर रहे |
६- अब घुटनों को थोडा झुकाकर वृत्ताकार  बना लें  |
७- अपने दोनों हाथों को पंजों के थोडा  पास लाते हुए शरीर को अर्ध चक्राकार बना दें |
८- अब शरीर को यथाशक्ति पूर्ण चक्राकार बनाने का प्रयास कीजिये और हाथों को पैरों के समीप ले आइये | 
९- इस मुद्रा में श्वास भरें और यथाशक्ति  उसे रोकें |
१० -अब आरम्भिक मुद्रा में वापस लौटते समय श्वास छोड़ें एवं अपनी केहुनियाँ झुकाते समय शरीर का वजन सिर पर रखें |
११- अंत में आसन पर शवासन की मुद्रा में लेट जाएँ |
१२- यह सम्पूर्ण क्रिया सावधानी पूर्वक अत्यंत धीरे धीरे ही  करें |
सावधानी :----यह अत्यंत कठिन और शक्तिशाली  अभ्यास है |अतः कुछ समय तक पीछे झुकने की मुद्राएँ करने के बाद ही चक्र आसन करने का प्रयास करें |यह अभ्यास करने के बाद पाद हस्त आसन अथवा पश्चिमोत्तान आसन जैसे विपरीत आसन अवश्य करें | इस आसन के दौरान यदि किसी अंग विशेष में दर्द एवं तनाव महशूस हो तो इसे कदापि न करें |
परिणाम :--
१-  यह आसन किशोरियों के मासिक धर्म को नियमित करता है |
२- यह आसन छाती  एवं स्तन दोनों को विकसित करता है |
३- यह आसन गुर्दा के नीचे के समस्त भागों को लचीला बनाता है  |
४- दमा, खांसी और फेफड़ों की बीमारी में तथा पीठ के दर्द में विशेष लाभ पहुंचाता है |
५- यह आसन भुजाओं ,गर्दन ,पेट ,मेरुदंड ,पैर ,पिंड ,एवं घुटनों का फैलाव करता है |
६- यह जिगर, प्लीहा ,पैनक्रियाज ,एड्रिनल ग्रन्थियों ,पीठ कि समस्त मांसपेशियों एवं आँतों को सशक्त  बनाता है |
७- पेट तथा नितम्ब की चर्बी घटाकर कमर को पतला और सुडौल बनाता है |
८- यह आसन महिलाओं के जननेंद्रिय रोगों जैसे अनियमित मासिक धर्म एवं लिकोरिया को ठीक करता है |

Saturday 10 December 2011

पादोत्तानासन

पादोत्तानासन सरल आसनों की श्रृंखला का एक महत्वपूर्ण आसन है |
विधि :-----
१- आसन पर पीठ के बल लेट जाएँ और अपने दोनों हाथों कोसीधा करते हुए सिर के पीछे की ओर ले जाएँ |
२- सम्पूर्ण शरीर को ऊपर और नीचे की ओर तानें किन्तु यह ध्यान रहे कि हथेलियाँ आकाश की ओर एवं पैर की अंगुलियाँ आगे की ओर खिंची होनी चाहिए |
३- इस दौरान ताड़ासन की मुद्रा बन जाती है |
४- अब दोनों एडियों को तीन इंच ऊपर उठा लें और आसन के अंत तक उठाये रखें |
५- श्वास भरते हुए दायीं टांग और बायाँ हाथ आसमान की ओर नब्बे अंश का कोण बनाते हुए उठायें किन्तु यह ध्यान रहे कि सिर  व् पैर आसन से न उठने पाए और दोनों पैर मिले व् तने रहें  |
६- श्वास छोड़ते हुए हाथ और पांव दोनों को तीन इंच पर वापस ले आयें |एडियाँ आसन पर न जाने पायें |
७- अब बायीं टांग और दायें हाथ को ऊपर उठायें और कुछ देर तक रुकें |
८- अब श्वास छोड़ते हुए पूर्व स्थिति में वापस आ जाएँ किन्तु एडियाँ जमीन से तीन इंच ऊपर अभी भी  उठी रहेंगी   | इस अवधि में ध्यान स्वाधिष्ठान चक्र पर केन्द्रित रहेगा |
९- यह ध्यान रहे कि नीचे वाले हाथ और पांव आसन से थोडा ऊपर उठे  एवं खिंचे रहेंगे |
१० - अब दायीं टांग और बाएं हाथ को ऊपर आकाश की ओर उठायें  और कुछ देर तक रुकें फिर धीरे धीरे वापस ले आयें  |
११- अब यही क्रिया दोनों हाथों एवं पैरों को एक साथ ऊपर उठा कर करें और कुछ देर रुकने के पश्चात धीरे धीरे वापस हो लें |
१२-अब श्वास को छोड़ते हुए पहले दोनों हाथ को पीछे ले जाएँ फिर पांव को वापस कर धीरे से जमीन पर रखें |
१३- अब शरीर को ढीला करके विश्राम करें ||
परिणाम :--
 १- इस आसन से हाथ और पैर की मांसपेशियां  सशक्त एवं बलशाली बनती हैं |
 २-  इस आसन से वायु विकार और कब्जियत का निवारण होता है |
 ३ - यह आसन  पैर की अँगुलियों और अंगूठों को शक्ति  प्रदान करता है |
  ४-  इस आसन से  गठिया साइटिका का दर्द दूर हो जाता है |
  ५- पैरों की नाड़ियों ,स्नायुओं और मांसपेशियों  को यह आसन सशक्त बनाता है |

आकर्ण धनुरासन

आकर्ण धनुरासन कठिन आसन की श्रृंखला का आसन है |इस आसन को करते समय किसी गुरु अथवा मार्गदर्शक की आवश्यकता होती है |
विधि :---
१- आसन पर बैठ जाएँ एवं अपनी दोनों टांगों को सामने  की ओर फैला लें |
२- अब दायें पांव की एडी को बायीं टांग के ऊपर ले जाते हुए जंघा के पास रखें |
३- दायें हाथ के अंगूठे तथा साथ की अंगुली का छल्ला बनाते हुए बाएं पांव के अंगूठे को पकड़ लें |
४- इसी प्रकार बाएं हाथ से दायें पांव के अंगूठे को पकडकर श्वास भरते हुए बाएं कान तक इस प्रकार खींचें जैसे धनुष पर प्रत्यंचा चढाते हैं |
५- इस दौरान कमर और गर्दन दोनों को सीधी रखें | यह ध्यान रहे कि इस क्रिया में पांव को कान के पास ले जाना है न कि कान को पांव के पास |
६- कुछ देर तक आंतरिक कुम्भक की स्थिति में रुकें तत्पश्चात अत्यंत धीरे धीरे वापस हों |
७- इसी प्रकार बाएं पांव के अंगूठे को पकडकर दायें कान के पास ले जाएँ और कुछ देर आंतरिक कुम्भक में स्थिति के पश्चात धीरे धीरे वापस हों |
सावधानी :-----इस क्रिया के दौरान यदि किसी अंग विशेष में दर्द अथवा तनाव महशूस हो तो पूर्व की मुद्रा में वापस हो लें | यदि पांव कान तक नहीं जा पा रहा है तो जितना सम्भव हो सके उतनी  ही कोशिश करें | वापस होते समय पैर को आसन अथवा जमीन पर अचानक न ले आयें |
परिणाम :----
१- इस आसन का प्रभाव सम्पूर्ण शरीर के समस्त अवयवों पर पड़ता है विशेष रूप से जंघाओं एवं भुजाओं पर |
२- यह आसन गठिया अथवा घुटने दर्द दूर करने में सहायक माना जाता है |
३- यह आसन शारीरिक तनाव के साथ मानसिक तनाव भी दूर करता है |

मकरासन

मकरासन सरल आसनों की श्रृंखला का एक विशेष लाभकारी आसन है जिसे खाली पेट अर्थात भोजन के ६ घंटे पश्चात किया जा सकता है |
विधि :---
१- आसन पर पीठ के बल लेट जाएँ और शरीर के सभी अंगों की शिथिल कर दें |
२- अपने दोनों पैरो को मोड़ें ,एडियों को जंघाओं से मिलाते हुए पंजे को आसन पर स्थिर करें  |
३- दोनों हाथों को कंधे की सीध में इस प्रकार  फैला लें क़ि हथेलियाँ ऊपर आकाश क़ी ओर अधखुली  रहें |
४- अब सम्पूर्ण शरीर को तानें तथा  श्वास भरते हुए दोनों घुटने एक साथ मिले हुए दायीं ओर और गर्दन बायीं ओर आसन को स्पर्श करे |
५- यथासम्भव रुकने के बाद श्वास छोड़ते हुए वापस आ जाएँ |
६- अब श्वास भरते हुए दोनों घुटनों को बायीं ओर और गर्दन  को दायीं ओर आसन से स्पर्श कराएँ तथा कुछ देर रुकने के पश्चात श्वास छोड़ते हुए घुटने एवं गर्दन को  यथास्थान वापस ले आयें |
७- इस क्रिया को दो चार बार करें और फिर विश्राम करें |
८- इस आसन के दौरान सम्पूर्ण ध्यान स्वाधिष्ठान चक्र पर केन्द्रित होना चाहिए |
मकरासन क़ी दूसरी विधि इस प्रकार है :-----
१- अपने दोनों हाथों को कंधों के समानांतर इस प्रकार फैला दें क़ि हथेलियाँ आकाश की ओर रहें |
२- अपने दोनों पैरों को मिलाएं और बाहर क़ी ओर खींचते हुए उन्हें ६० अंश के कोण तक ऊपर उठायें ,दोनों हाथों को दोनों ओर खींचे तथा पंजे को बाहर क़ी ओर रखते हुए दायीं ओर ले जाएँ और श्वास भरते हुए गर्दन को बायीं ओर मोड़ दें |
३- अब पंजों को वापस लाते हुए श्वास को धीरे धीरे बाहर निकाल दें  और गर्दन को भी पूर्व स्थिति में वापस ले आयें
४- पुनः श्वास भरते हुए पैरों को विपरीत दिशा में बायीं ओर ले जाएँ और गर्दन को दायीं ओर मोड़ दें |
५- इस क्रिया को दो चार बार दायें एवं दो चार बार बाएं करें  और शिथिल आसन में विश्राम करें |
सावधानी :---इस आसन को खाली पेट ही करना चाहिए | इस आसन के दौरान किसी मुद्रा में जाते समय श्वास भरना होता है और वापस आते समय श्वास निकालना होता है |
परिणाम  :-----
१- घुटना अथवा उसकी कटोरी यदि खिसक गयी हो तो इस आसन के अभ्यास से कटोरी यथास्थान स्थित हो जाती है तथा घुटने के दर्द दूर हो जाते हैं |
२- साइटिका और गर्दन के दर्द में भी इस आसन से राहत मिलती है |
३- फेफड़ों की बीमारी एवं दमा रोग से ग्रस्त व्यक्ति  को इस आसन से लाभ मिलता है |
४- यह आसन पेट की चर्बी को कम करता है तथा कब्ज भी दूर करता है |
५- इस आसन से आँतों की विधिवत  मालिश  हो जाती है |

योगमुद्रा

योगमुद्रा  सरल आसनों की श्रृंखला का एक बहुपयोगी आसन है |आध्यात्मिक दृष्टि से इस आसन का विशेष महत्व माना गया है |
विधि :--
१- आसन पर पद्मासन की मुद्रा में बैठ जाएँ  तथा दोनों आँखें बंद  कर लें |
२- अपनी दोनों एडियों को नाभि के नीचे मिलाकर रखें तथा घुटने आसन को स्पर्श करते रहें   |
३- अब अपने दोनों हाथों को पीठ के पीछे ले जाएँ और बायीं कलाई को दाहिने हाथ से पकड़ लें |
४- बाएं हाथ की मुट्ठी  को बंद कर लें और शरीर को सीधा  रखें |
५- श्वास भरते हुए सीने को तानें किन्तु यह ध्यान रहे क़ि हाथों का दबाव नीचे क़ी ओर ही रहे |
६- अब धीरे धीरे श्वास छोड़ते हुए शरीर को सामने क़ी ऑर कमर से इस प्रकार आगे  झुकाते जाएँ कि सम्पूर्ण    मेरुदंड सीधा बना रहे किन्तु टखनों ,पिंडों और पीठ पर कोई दबाव न पड़े  |
७- इस दौरान गर्दन झुकनी नहीं चाहिए किन्तु यह प्रयास अवश्य हो क़ि आपका माथा जमीन को स्पर्श कर ले |
८- थोड़ी देर इस स्थिति में बाहय कुम्भक लगाकर रुकें तत्पश्चात श्वास लेते हुए अत्यंत धीरे धीरे वापस आ जाएँ | अभ्यास दुहराते समय केवल कलाई बदलें और दायीं हथेली से बायीं कलाई को पकडकर धीरे धीरे आगे  की ओर श्वास निकालते हुए झुकें |
९ -इस दौरान ध्यान मणिपुर चक्र पर केन्द्रित होना चाहिए |
सावधानी :----जिनके पेट में नासूर [अल्सर ] हो गया हो वे कृपया इस आसन को न करें | जितनी देर बिना किसी दर्द के सम्भव हो सके उतनी देर तक ही इस आसन को करें | प्रातः काल अथवा सायंकाल कभी भी खाली पेट ही इस आसन को करना चाहिए |
परिणाम :----
१- यह आसन पेट की मांसपेशियों ,आंत एवं शरीर के अन्य अंगों की विधिवत मालिश करता है |
२- कोष्ठबद्धता ,अपच एवं पेट की अन्य बीमारियाँ दूर करने में यह आसन अत्यंत लाभकारी है |
३- मणिपुर चक्र को जाग्रत करने के लिए यह आसन अत्यधिक प्रभावकारी मुद्रा है |
४- इस आसन से भूख जाग्रत होती है |



जानुशिरासन

जानुशिरासन को महामुद्रा  भी कहते  हैं | यह सरल आसनों  की श्रृंखला का एक महत्वपूर्ण आसन है |
विधि :----
१- सर्वप्रथम आसन पर बैठ जाएँ और अपने दोनों पैर को आगे की ओर इस प्रकार फैला दें कि पंजा बाहर की ओर तना हुआ हो और दोनों हथेलियाँ नितम्ब के अगल बगल आसन पर रहें  |
२- अब दायीं टांग को मोडकर बायीं जांघ से इस प्रकार मिलाएं कि एडी गुदा के साथ सट जाये और दायाँ घुटना जमीन को स्पर्श करता रहे |
३   -धीरे- धीरे श्वास भरते हुए अपने दोनों हाथों को ऊपर उठायें तथा भुजाओं सहित शरीर को ऊपर क़ी ओर बलपूर्वक  खींचे |
४- अब श्वास छोड़ते हुए सामने क़ी ओर कानों के साथ बाज़ू को सटाते हुए आगे क़ी ओर धीरे -धीरे  झुकते जाएँ किन्तु इतना ध्यान रहे क़ि दोनों बाजू पंजे से आगे निकल जाये /अब  माथा घुटने से लगाकर एडी को दोनों हाथों से पकड़ लें |
५-दोनों कोहनियों को जमीन से स्पर्श कराते हुए कुछ देर  तक बाह्य कुम्भक क़ी स्थिति में रुकें |
६- अधिक देर तक रुकने के लिए श्वासों को सामान्य करना  पड़ेगा |
७- अब यथास्थिति में वापस आने के लिए अपने हाथों को पैरों के आगे ले जाएँ और श्वास भरते हुए बाजुओं को दोनों कानों से सटाकर ऊपर क़ी ओर तानें किन्तु  इतना ध्यान रहे क़ि दोनों घुटने यथास्थान ही रहने चाहिए अर्थात वे आसन से ऊपर नहीं उठने चाहिए |  
८- अब श्वास छोड़ते हुए हाथों को दायें बाएं से वापस ले आयें |
९- अब क्रमशः उपरोक्त क्रिया को बायीं टांग से करते हुए दूसरे चरण को पूर्ण करें |
१०  -उपरोक्त क्रियाओं   के दौरान ध्यान स्वाधिष्ठान चक्र पर केन्द्रित होना चाहिए |
परिणाम :- 
१- इस आसन से कमर की मांसपेशियों को अतिरिक्त शक्ति प्राप्त होती है |
 २- यह आसन  यौन रोग दूर करने में सहायक माना जाता है |
३- जांघों और पैरों की मांसपेशियों को सशक्त एवं बलशाली बनाता है |
४- पेट की चर्बी घटाकर कमर को पतली करने में यह आसन सहायक होता है |
५- रीढ़ ,कंधे और गर्दन के दर्द एवं तनाव को दूर करता है और उसे लचीला भी बनाता है |
सावधानियां :-
  १- इस आसन को करते समय यदि शरीर की मांसपेशियों में अनावश्यक तनाव या खिंचाव महशूस हो तो इसे न करें /
 २- आगे झुकते समय यह ध्यान रहे कि  माथे को घुटने से स्पर्श करना है न कि घुटने को माथे से अर्थात 
घुटना उठाकर माथे से स्पर्श न कराएं /
३-स्पेंडलाएटिक्स  के मरीज इस आसन को कदापि न करें /

Sunday 4 December 2011

हलासन

हलासन कठिन आसनों की श्रृंखला में अत्यंत लाभकारी आसन माना जाता है | यह आसन भी खाली पेट करने की सलाह  दी जाती है | इस आसन में हल जैसी आकृति बनाई जाती है ,इसीलिए इसे हलासन की संज्ञा दी गयी है | हलासन शरीर के फैलाव की एक विकसित मुद्रा है जिसे अभ्यास से आसानी से किया जा सकता है |
विधि :---
१-   आसन पर पीठ के बल लेट जाएँ तथा दोनों हाथों को अगल बगल हथेली नीचे करते हुए रख लें |
२- दोनों आँखें बंद कर लें और सामान्य रूप से श्वास लेते रहें |
३- अपनी हथेलियों से आसन पर थोडा  दबाव दें |
४-  अब अपने दोनों पैरों को एक साथ मिलाते हुए धीरे धीरे उन्हें ऊपर की ओर उठायें और सिर तक ले आयें ताकि  नब्बे अंश का कोण बन सके |
५- अपने घुटनों को कड़ा रखें ,हथेलियों से जमीन को दबाते हुए अपने दोनों पैरों को सिर के पीछे ले जाएँ और उन्हें जमीन से स्पर्श कराएँ |
६- यथासम्भव इस स्थिति में रुके रहें  और सामान्य श्वास लेते रहें  |
७- अपने दोनों हाथों को इस प्रकार रखें कि उनसे पीठ को सहारा मिलता रहे |
८- -हाथों की  स्थिति इस प्रकार  रहे कि वे अंगूठों को स्पर्श करते रहें |
९- इस मुद्रा के समापन में अपने पैरों को घुटनों पर झुका दें और घुटनों को यथासम्भव सिर के पास ले आयें |
१०-अब गर्दन को थोडा टेढ़ी कर लें ताकि सिर का पिछला भाग और पीठ का ऊपरी हिस्सा जमीन पर रख सकें | 
११- धीरे धीरे पैरों को आसन पर वापस ले आयें और पूर्ण विश्राम करें |
१२- सभी मांसपेशियों को ढीला कर दें और शवासन में आराम करें |
सावधानी :---
 १- हलासन में ध्यान मणिपुर चक्र पर केन्द्रित होना चाहिए |
२- इस आसन में सामर्थ्य के अनुकूल ही दबाव दें |
३- यथासम्भव  ही पैरों को पीछे की ओर  ले जाएँ और चरम स्थिति में उतनी ही देर रहें जितना सम्भव हो सके |
४- पीछे जाते समय अपने पैरों को बिलकुल सीधा रखें और घुटनों को झुकाएं नहीं |
५- इस आसन की प्रत्येक क्रिया को अत्यंत धीरे धीरे और सावधानीपूर्वक करें |
६- यदि जोड़ों की कटोरी खिसक गयी हो अथवा कमर व गर्दन में दर्द हो ,तो इस आसन को ना करें |
परिणाम :-----
१- हलासन से मधुमेह पर पूर्ण नियंत्रण किया जा सकता है |
२- यह आसन पाचन  रस की थैली को शक्ति प्रदान करता है |
३- शरीर से अकडन व तनाव को दूर करता है |
४- पेट ,पीठ और गर्दन की मालिश कर उनमें शक्ति का संचार करता है |
५- यह आसन पैरों ,जांघों,नितम्बों एवं पेट का वजन घटाता है |  
 ६- हलासन  से मेरुदंड  काफी लचीला बन जाता है |


 

सिंहासन

सिंहासन का तात्पर्य सिंह की तरह दहाड़ लगाने से है |यह आसन सरल आसनों की श्रृंखला में माना जाता है |
विधि :----
१- वज्रासन की मुद्रा में आसन पर बैठ जाएँ |
२- अपने दोनों हाथों को दोनों घुटनों के बीच में करते हुए हथेलियों को अगल बगल आसन पर  इस प्रकार रख लें कि पृष्ठ भाग आगे एवं अंगुलियाँ अपनी ओर रहें |
३- अपने शरीर को थोडा आगे की ओर झुका लें |
४- दोनों आँखें खोले  रखें तथा भूमध्य भाग को देखें और सिर को थोडा पीछे की ओर झुकाएं |
५- अपने मुहं को खोलकर यथाशक्ति जीभ को बाहर निकाल लें |
६ - अपनी अँगुलियों को फैलाकर रखें ताकि चेहरे की मांसपेशियों पर पर्याप्त तनाव पड़े   |
७- अब गले  से दहाड़ने की आवाज निकालें |
८- अपने चेहरे  को शेर की आकृति के रूप में देखें |
९- इस स्थिति में १० -१५ सेकेण्ड तक आवाज निकालते रहें |
१०- तत्पश्चात जीभ को अंदर लेते हुए मुंह को बंद कर लें और  नेत्रों को विश्राम दें |
११- वज्रासन की मुद्रा में पुनः बैठकर आराम करें और इस क्रिया को चार पांच बार दुहरायें |
परिणाम :----
१- इस आसन से गला ,गर्दन और चेहरे की मांसपेशियों से अनावश्यक तनाव दूर हो जाता है |
२- चेहरे पर फुंसी या झुर्री की रोकथाम करता है |
३- हकलापन और तुतलाहट जैसे रोगों को दूर करता है |
४- मुंह ,कान ,गला और नाक की बीमारियों को दूर करता है |
५- यह आसन चेहरे को आकर्षक व सुंदर बनाता है |

कमर चक्र आसन

कमर चक्र आसन सरल आसनों की श्रृंखला का एक महत्वपूर्ण आसन है |प्रातः काल अथवा शाम को कभी भी खाली पेट अथवा भोजन  के ६ घंटे बाद इसे किया जा सकता है |
विधि :--
१- आसन पर बैठ जाएँ एवं दोनों पैरों  को आगे अधिक से अधिक दूरी बनाते हुए फैला लें अर्थात दोनों एडियों में अधिक से अधिक दूरी बनी रहे  |
२-एक लम्बी गहरी श्वास लें और दाहिने हाथ को पीछे से घुमाकर श्वास निकालते हुए आगे  बायीं ओर झुकें और  बाएं पैर के अंगूठे को पकड़ने का प्रयास करते हुए  नाक माथा घुटने से लगा दें | इस दौरान  पैर बिलकुल सीधा रहना चाहिए तथा आसन से चिपका होना चाहिए |
३- श्वास को बाहर रोकते हुए कुछ देर तक रुकें और फिर श्वास लेते हुए वापस हो लें |
४- अब बाएं हाथ को पीछे से घुमाकर  श्वास निकालते हुए आगे दाहिनी ओर झुकें और दाहिने अंगूठे को पकड़ने का प्रयास करते हुए नाक माथा घुटने से लगा दें |
५- श्वास को यथाशक्ति बाहर रोकें ,तत्पश्चात श्वास भरते हुए वापस हो लें |
६- इस दौरान दोनों पैरों की एडियाँ यथास्थान ही रहेंगी और पैर आसन से चिपके रहेंगे |
७- इस क्रिया को क्रमशः चार पांच बार दुहराए |
सावधानी :---
इस आसन को करते समय यदि किसी अंग विशेष में दर्द अथवा तनाव महशूस हो तो इसे कदापि ना करें | इस आसन के दौरान आँखें बंद रखें |यदि आगे झुकते समय नाक माथा घुटने तक न पहुंचे तो जहां तक आसानी से पहुँच सके वहीं तक ले जाएँ ,अनावश्यक दबाव न दें | इस क्रिया के दौरान हाथ और पैर दोनों मुड़ने नहीं चाहिए | गर्भवती महिलाएं इस आसन को  कदापि न करें | इस आसन के दौरान विशेष ध्यान इस बात पर देना है कि आगे झुकते समय श्वास क्रमशः निकालते रहना और उठते समय श्वास भरते हुए उठना चाहिए / 
परिणाम :-----
१- कमर चक्र आसन से कमर और रीढ़ दोनों की मालिश हो जाती है |
२- पेट की अनावश्यक चर्बी को समाप्त करने में यह आसन विशेष रूप से लाभकारी माना जाता है |
३- यह आसन आँतों की कार्य- प्रणाली में सुधार लाता है |
४- इस आसन के करने से कमर एवं रीढ़ का दर्द स्वमेव दूर हो जाता है |
५- यह आसन शरीर को सुडौल एवं आकर्षक भी बनाता है |

Saturday 3 December 2011

शशांक आसन

शशांक आसन जैसाकि इसके नाम से ही ध्वनित होता है जिसका तात्पर्य खरगोश की  तरह आकृति बनाकर अपने  शरीर को समेटने से है | यह आसन सरल आसनों की श्रृंखला में माना जाता है | इस आसन को प्रातः अथवा सायंकाल कभी भी खाली पेट करना चाहिए |
विधि :-----
१- सर्वप्रथम आसन पर वज्रासन की मुद्रा में बैठ जाएँ |
२- अपनी दोनों हथेलिओं को घुटनों पर रखिये |
३- गहरी श्वास लेते हुए दोनों भुजाओं को माथा के ऊपर उठाइए | दोनों हाथ समानांतर और हाथों की अंगुलिया आपस में मिली होनी चाहिए |
४- अब श्वास निकालते हुए धीरे धीरे आगे की ओर झुकें किन्तु यह ध्यान रहे कि हाथ दोनों कान से सटे हुए एक साथ  ही आगे झुकेंगे |
५- माथा को आसन पर रखें और हथेलियों को जांघों के अगल बगल आसन पर  रखते हुए अपनी  सांसों को सामान्य कीजिये |
६- इस दौरान आँखों को बंद रखें और श्वास के आवागमन के स्पंदन को नाभि पर केन्द्रित करते हुए १ मिनट से ५ मिनट तक स्थिर रहें |
७- अब ऊपर उठते हुए लयबद्ध श्वास लें और भुजाओं को माथा के ऊपर ले जाएँ  और वज्रासन की मुद्रा में वापस आ जाएँ ||
८- सामान्य  श्वास लेते हुए हथेलियों  को दोनों घुटनों पर रखकर विश्राम करें और आँखों को खोल दें |
परिणाम :----
१- कब्ज को  दूर करने में यह आसन सहायक माना जाता है |
२- एड्रिनल ग्रन्थि के कार्य को सरल एवं सक्रिय करता है |
३- क्रोध एवं मोह के अवसाद से छुटकारा दिलाता है |
४- इस आसन के नियमित  अभ्यास से शिशुओं का विस्तर पर पेशाब करना बंद हो जाता है |
५- इस आसन को नियमित रूप से  करने से चेहरे पर कान्ति बढ़ जाती है और झुर्री एवं सिकुडन    बिलकुल  खत्म हो जाती है |
६- यह आसन साईटिका दर्द को कम कर देता है  |
७- इस आसन से काम विकार  धीरे धीरे समाप्त हो जाते हैं |
८- यह आसन गुदा द्वार और कूल्हे  के बीच की मांसपेशियों को सशक्त बना देता है |
९- दमा एवं सर्दी को दूर करने में यह आसन सहायक होता है |
१० - मूलाधार चक्र को जागृत करने में इस आसन का विशेष  योगदान होता है |

भुजंगासन

भुजंगासन में भुजंग की तरह आकृति बनाई जाती है ;इसीलिए इस आसन को भुजंगासन  की संज्ञा दी जाती है |
यह आसन प्रातः काल खाली पेट अथवा शाम को भोजन के पूर्व कर सकतें हैं | 
विधि :-----
१- पेट के बल आसन पर लेट जाएँ किन्तु यह ध्यान रखें कि पैरों की उंगलिया फैली रहें और आपस में सटी हों और हाथ जमीन पर दोनों कंधों के अगल बगल रहें |
२- अब अपने सिर को धीरे धीरे ऊपर की ओर उठायें और ठुड्डी को जमीन पर विश्राम करने दें |
३- दोनों हथेलियों को  आसन पर इस प्रकार रखें क़ि उनका पृष्ठ भाग जमीन को स्पर्श करे |  
४- श्वास को खींचते हुए अपने सिर और छाती को ऊपर की ओर  इस प्रकार उठायें क़ि नाभि आसन को स्पर्श करती रहे और नाभि से ऊपर का भाग ऊपर उठ जाये |
५- अब अपनी गर्दन और पीठ को टेढ़ी कीजिये | दोनों भुजाओं को शरीर के दोनों ओर फैला दें किन्तु यह ध्यान रहे क़ि कुहनियाँ  कम से कम झुकें |
६- अपने शरीर का सम्पूर्ण भार अपनी भुजाओं पर डालें |
७- अपने शरीर का संतुलन दोनों हथेलिओं ,जांघों और पैरों की अंगुलिओं पर करें |
८- पूरी श्वास को निर्धारित  समय तक रोकें और क्रमशः इसे बढ़ाएं |
९- नासिका से श्वास छोड़ते हुए धीरे धीरे पूर्व स्थिति को प्राप्त करें |
१०- अपने गालोँ को जमीन /आसन पर रखें और शरीर को विश्राम दें |
११- थोड़ी देर बाद इस क्रिया को दो तीन बार करें |
स्मरणीय बिदु :----
राज यक्ष्मा ,तनाव ,हार्निया और पेप्टिक अल्सर से पीड़ित व्यक्ति इस आसन को ना करें | पेट पाचन सम्बन्धी थैली ,गुर्दा एवं तिल्ली को विकसित करने  के लिए यह सर्वोत्तम आसन है | इस आसन के दौरान ध्यान विशुद्धि चक्र पर रखें  और ऊपर उठते समय श्वास खींचें और नीचे आते समय श्वास छोड़ें | नीचे आते समय शरीर को अचानक न गिराएँ बल्कि धीरे धीरे गिराएँ | इस आसन के दौरान ठुड्डी जमीन को  स्पर्श करे और हथेलियों का पिछला भाग जमीन को स्पर्श करे तथा भुजाएं जांघों के पास आ जाएँ |
परिणाम :----
१- यह आसन भूख जगाता है और पेट के  मोटापा या चर्बी को कम करता है |
२- यह आसन महिलाओं के गर्भाशय को शक्ति प्रदान करता है तथा मासिक धर्म को नियमित करता है  |
३- महिलाओं के श्वेत प्रदर के निवारण में यह  सहायक माना जाता है |
४- गुर्दा और पाचन रस की थैली को शक्ति प्रदान करता है |
५- यह आसन मधुमेह रोगियों के लिए विशेष लाभकारी है |
६- यह मांस पेशिओं  के कड़ापन को दूर करता है और गर्दन के  दर्द को भी दूर  करता है |
७- भुजंगासन मेरुदंड को लचीला बनाता है तथा स्नायुओं और मेरुदंड के रक्त कोष को सक्रिय करता है |
८- अधिक कार्य करने के बाद अभ्यास करने से पुट्ठा ,गर्दन, पीठ और कमर की थकान कम हो जाती है |
९-यह  गर्दन और रीढ़ की हड्डियों का दर्द और तनाव दूर करता है |


उत्तानपाद आसन

उत्तानपाद आसन बहुत ही लाभकारी आसन है | उत्तान का अर्थ तना हुआ एवं पाद का अर्थ पैर होता है |इस आसन में  पैरो को ऊपर की और उठाया जाता है |
विधि :-------
१- आसन पर बैठकर दोनों पैरो को आगे फैला दें एवं घुटनों  को  आगे की और तानें |
२- दो चार बार गहरी साँस लें और फिर  पीठ के बल आसन पर लेट जाएँ |
३- अब श्वास छोड़ें ,जमीन से पीठ को ऊपर उठायें और  गर्दन को तानें |
४- अब जमीन पर कपाल छूने तक सिर को पीछे ले जाएँ | यदि जमीन पर कपाल टिकाने में कठिनाई हो तो हाथों को सिर के बगल ले आयें ,गर्दन उठायें और पृष्ठ प्रदेश तथा कटि प्रदेश  के पिछले भाग को जमीन से ऊपर उठाते हुए सिर को यथासम्भव पीछे खींचें | 
५- अब बाँहों को बगल में टिका लें और दो चार बार गहरी साँसे लें |
६- पीठ को तानें तथा एक उच्छ्वसन के साथ जमीन से ४५ से ५० अंश ऊपर तक टाँगें उठायें | भुजाओं को भी थोडा ऊपर उठायें ,हथेलिओं को मिलाएं और उन्हें टांगों के समानांतर रखें |
७- इस दौरान भुजाएं और टाँगें कड़ी रखी जानी चाहिए तथा कुहनी या घुटनों पर झुकें नहीं | जांघें ,घुटने ,टखने और पैर एक साथ सटे होने चाहिए |
८-पसलियों को पूरी तरह फैलाएं और आधे मिनट तक इस स्थिति में स्वाभाविक श्वास क्रिया के साथ रहें | शरीर का संतुलन सिर के कपाल एवं नितम्ब पर होना चाहिए |
९- अब श्वास को छोड़ें ,जमीन की ओर टांगों और बाँहों को नीचे करें ,गर्दन को सीधा रखें ,सिर की पकड़ छोड़ दें ,धड को नीचा करें और जमीन पर पीठ के बल लेट कर आराम करें |
परिणाम :__
१- यह आसन वक्षस्थल  का पूर्ण विकास करता है और मेरुदंड के पृष्ठ भाग को लचीला और स्वस्थ रखता है |
२- गर्दन और पीठ के दर्द को दूर करता है और शुद्ध एवं स्वस्थ रक्त की पूर्ति सुनिश्चित करता है |
३- यह आसन कंठ ग्रन्थियों  के कार्य को नियमित करता है |
४- इस आसन से उदर की मांसपेशियां फैलती हैं और मजबूत भी होती हैं |
५- इस आसन से जठराग्नि  तेज होती है और भूख अधिक लगती है | 

अर्ध मत्स्येन्द्र आसन

अर्ध मत्स्येन्द्र आसन कठिन आसनों की श्रृंखला  का एक महत्वपूर्ण आसन है | यह आसन खाली पेट करना चाहिए क्योंकि इस आसन से पेट की समस्त मांसपेशियों की मालिश हो जाती है |
विधि :------
१- आसन पर अपने दोनों पैरों को फैलाकर बैठ जाएँ |
२- दाहिने पैर को घुटने से मोड़ते हुए दाहिनी एडी को गुदा के पास रखें और इसे उस स्थान से हटने न दें |
३- अब बाएं पैर को मोडकर दाहिने घुटने के बाहर पंजे को आसन पर रखें | दोनों हाथों से बाएं घुटने को अपनी ओर खींचें एवं नासिका को घुटने से स्पर्श कराने का प्रयास  करें | इस दौरान शरीर को बिलकुल ढीला रखें |
४- दाहिने हाथ से बाएं पैर के घुटने को दबाते हुए बाएं पैर के अंगूठे  या पंजे को पकड़ें तथा अपनी गर्दन को बायीं और मोड़ते हुए ठुड्डी को बाएं कंधे से  स्पर्श कराएँ | इस दौरान अपना मुहं और गर्दन को बायीं ऑर ही रखें  तथा अंगूठे को पकड़ लें |
५- शरीर बाये घुमाएँ बायीं भुजा पीछे करें और बाएं कंधे को देखने का प्रयास करें |
६- इस मुद्रा में ५ से १५ सेकेण्ड तक रहें ,श्वास की गति को सामान्य करें |
७- इस दौरान पीठ बिलकुल सीधी रहनी चाहिए और दायें बाएं और झुके नहीं |
८- अब अंगूठे को छोड़ते हुए दोनों पैर फैलाकर अपनी स्वाभाविक स्थिति में आ जाएँ |
९- थोडा विश्राम करने के बाद बाएं पैर को मोड़ते हुए बायीं एडी गुदा के पास रखें और उपरोक्त  समस्त क्रियाए क्रमशः पुनः  करते हुए बाएं पैर के अंगूठे को पकडकर गर्दन बायीं ऑर झुकाएं  एवं बाएं कंधे को देखने का प्रयास करें |
सावधानी :---
 इस आसन की चरम स्थिति के समय ५ सेकेण्ड से शुरू करें और प्रतिदिन १-२ सेकेण्ड जोड़ते हुए इस अवधि को बढ़ाते रहें | हलासन और पश्चिमोत्तान आसन में मेरुदंड को आगे झुकाते हैं तथा भुजंग ,शलभ और धनुरासन में मेरुदंड पीछे झुकता है | इस आसन में मेरुदंड को क्रमशः दोनों ऑर मोड़ा जाता है और झुकाया भी जाता है | इस क्रिया से मेरुदंड में लचीलापन अधिक आता है | इस आसन की चरम स्थिति पर ध्यान आज्ञा चक्र पर केन्द्रित करना चाहिए |
परिणाम :------
१- सम्पूर्ण मेरुदंड के तनाव में अविलम्ब राहत पहुँचाता है क्योंकि यह रीढ़ को दोनों ऑर ऐंठता है |
२- रीढ़ स्नायुओं को शक्ति प्रदान करता है और महिलाओं को ल्यूकोरिया की बीमारी से बचाता है |
३- यह मेरुदंड को लचीला बनाता है ,कमजोर गुर्दों को शक्ति प्रदान करता है एवं पेशाब की थैली की मांसपेशियों को ढीला करता है |
४- इससे पेट की आँतों की स्वाभाविक रूप से मालिश हो जाती है |
५- इस आसन से हारमोंस भी नियंत्रित हो जाते हैं |
६- कब्जियत को ठीक करता है तथा पैरों और भुजाओं की मांसपेशियों  का फैलाव करता है एवं उनके दर्द में राहत पहुँचाता है |
७- यह जठराग्नि तेज करता है ,भूख को जगाता है और पेट के समस्त कीड़ों को नष्ट कर देता है |
८- यह आसन पीठ एवं गर्दन के दर्द दूर करने में सहायक होता है |
९- यह आसन मधुमेह के रोगियों के लिए लाभकारी माना जाता है |