Sunday 18 March 2012

लोम अनुलोम

लोम अनुलोम प्राणायाम अत्यंत प्रभावकारी एवं सरल प्राणायाम है । प्रातःकाल सूर्योदय के पूर्व एवं सायंकाल सूर्योदय के पश्चात प्रदूषण रहित स्थान पर एकांत में इस प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए ।
विधि :----
१- पद्मासन अथवा सुखासन जिसमें भी सुविधाजनक लगे बैठ जाएँ ।
२- कमर और गर्दन को सीधा रखते हुए दोनों आँखें बंद कर लें ।
३- अब दाहिने हाथ के अंगूठे को दाहिनी नासिका पर और छोटी अंगुली को बायीं नासिका पर रखें ।
४- अपनी सांसों को सामान्य कर लें और अपने  ध्यान को दोनों भौहों के बीच केन्द्रित करें  ।
५- अब बायीं नासिका से धीरे धीरे श्वास भरें और आतंरिक कुम्भक लगा कर कुछ देर तक श्वास को रोकें ।
६- अब अगूठे को ढीला करते हुए दाहिनी नासिका से धीरे धीरे श्वास को बाहर निकालें ।
७- बाह्य कुम्भक लगाते  हुए श्वास को यथाशक्ति रोकें ।
८- अब दाहिनी नासिका से श्वास भरें और बायीं नासिका से धीरे धीरे बाहर निकालें ।
९-  इस प्रकार से लोम अनुलोम का एक चक्र पूर्ण हो गया । 
१० -अब इसी क्रिया को उपरोक्त विधि से ५ से १० बार तक दुहरायें  । 
सावधानी :---
लोम अनुलोम करते समय मन को शांत एवं स्थिर रखें तथा श्वास भरने की क्रिया अत्यंत धीरे धीरे करें । लोम अनुलोम में श्वास को अंदर एवं बाहर रोकने में अत्यंत सावधानी रखें ।सामर्थ्य के अनुरूप ही आतंरिक एवं बाह्य कुम्भक लगायें । किसी अंग विशेष में दर्द की स्थिति में इसे कदापि न करें ।
परिणाम :---
१- लोम अनुलोम का नियमित अभ्यास करते रहने से श्वास सम्बन्धी बीमारी से मुक्ति मिल जाती है ।
२- इस प्राणायाम से चित्त शांत एवं मन स्थिर रहता है ।
३- जुकाम की समस्या सदैव के लिए दूर हो जाती है ।
४- इससे ब्लड प्रेशर सामान्य रहता है तथा सर दर्द दूर करने में भी सहायक होता है ।
५- यह प्राणायाम मोटापा दूर करने भी सहायक माना गया है  ।

Saturday 10 March 2012

कपालभाति

कपाल का अर्थ खोपड़ी तथा भाति का तात्पर्य चमक अथवा प्रकाश  होता है । कपालभाति में श्वसन मंद होता है, परन्तु उच्छ्वसन प्रबल होता है ।प्रत्येक उच्छ्वसन के बाद कुम्भक के सूक्ष्म कण होते हैं ।
विधि ;----
१- पद्मासन अथवा सुखासन में सुबिधानुसार आसन पर  बैठ जाएँ ।
२- इस दौरान अपनी पीठ को सीधा  एवं कड़ा रखें ,धड की ओर सिर थोड़ा झुकाए रखें ।जालन्धर बंध लगा लें ।
३- अब दाहिने हाथ को नासिका पर ले जाएँ और अंगूठे को दाहिने नासिका पर एवं अंगुली को बाएं नासिका पर रखते हुए दबाव बनाएं ।
४- बायीं नासिका को पूरी तरह  बंद करें परन्तु दाहिनी नासिका को थोडा खुला रखें ।
५- दाहिनी नासिका से तीव्रता से श्वास भरें और उसी तरह छोड़ें ।यह क्रिया  १०-१२ बार करते रहें ।
६- अब दाहिनी नासिका बंद करें और बायीं नासिका को थोडा खोलें और भस्त्रिका के उतने ही चक्र दुहरायें ।
७- अब नासिका से अँगुलियों को हटा लें ।
८- इस क्रिया को सामर्थ्य के अनरूप ४-५ बार करें ।
९-   गहरी और लम्बी श्वास लें ।
१० -अब अपनी सासों  को सामान्य कर लें एवं श्वसन में लेट जाएँ ।
परिणाम :---
१- इस प्राणायाम से यकृत ,प्लीहा ,पाचनग्रन्थि तथा उदर की मांसपेशियां  अधिक क्रियाशील और शक्तिशाली बन जाती हैं ।
२- पाचनशक्ति बढ़ जाती है तथा भूख अधिक लगने लगती है ।
३- इस प्राणायाम से नासूर बिलकुल सूख जाता है ।
४- आँखों को ठंडक  महशूस होती है और चित्त को प्रसन्नता का अनुभव होने लगता है ।
५- इस प्राणायाम  को नियमित रूप से करने से सर्दी जुकाम की समस्या उत्पन्न नहीं होती है ।  
सावधानी :-- 
१- दुर्बल शरीर अथवा कमजोर व्यक्ति को यह प्राणायाम वर्जित है ।
२- जो कान एवं आँख  की किसी भी प्रकार की समस्या से ग्रस्त हों ,उन्हें भी यह प्राणायाम नहीं करना चाहिए ३- उच्च रक्त चाप अथवा निम्न रक्त चाप के रोगी को भी यह वर्जित है ।
४- यदि नासिका से रक्तश्राव अथवा कान में दर्द का अनुभव होता हो तो इस प्राणायाम को तुरंत रोक दें ।
५- इस प्राणायाम को साफ सुथरे स्थान पर जहाँ शुद्ध वायु मिलती हो करना चाहिए ।

Sunday 4 March 2012

भ्रामरी प्राणायाम

भ्रामरी का अर्थ बड़ी काली मधुमक्खी होता है ।इस प्राणायाम के दौरान भंवरे की तरह गुनगुनाने की ध्वनि  निकलने के कारण इसे भ्रामरी प्राणायाम की संज्ञा दी गयी है ।यह प्राणायाम सूर्योदय के पूर्व अथवा सूर्यास्त के पश्चात किया जा सकता है ।
विधि --
१ --पद्मासन अथवा सुखासन में आराम से बैठ जाएँ और आँखों को पूर्णतयः बंद रखें  तथा मन और चित्त को शांत रखें ।
२- इस दौरान मेरुदंड को बिलकुल सीधा रखें।अंगूठा और अनामिका को क्रमशः नाक के दायें एवं बाएं छिद्र पर रखें ।
३- नासिका के दोनों छिद्रों से पूरी साँस भरें और पांच सेकेण्ड तक जालन्धर और मूल बंध में श्वास को रोकें ।
४- अब बंध छोड़ दें एवं दोनों कानों को अँगुलियों से बंद करें ।
५- अपने दांतों को खुले रखें  किन्तु होठ बंद रहें  ।
६- अब दोनों नाक छिद्रों से पूरी श्वास छोड़ दें किन्तु धीरे धीरे मधुमक्खी की तरह गुनगुनाते हुए ।
७- इस दौरान अपनी चेतना को गुनगुनाहट के कम्पन के साथ सुदृढ़ करें ।
८- उक्त क्रिया से एक चक्र पूर्ण हो जाता है ।
९- इस अभ्यास को ५ से १० बार करें ।
१०- श्वास के लिए कोई अनुपात नहीं निर्धारित है बल्कि अपने सामर्थ्य के अनुसार भर सकते हैं ।
परिणाम ---
१- मस्तिष्क में रक्त जमाव की स्थिति में आराम पहुंचाता  है एवं इसे प्रभावकारी ढंग से दूर करता है ।
२- यह अनिद्रा और क्रोध को दूर करता है ।
३- यह उक्त रक्त चाप को जो मानसिक अशांति के कारण उत्पन्न हुआ हो ,को घटाता है ।
४- क्रोध एवं चिंता के कारण हुए मस्तिष्क तनाव को घटाने में यह सहायक होता है ।
५- किसी भी प्रकार के सिर दर्द को दूर कर अच्छी नींद लाने  में अत्यधिक सहायक होता है ।

भस्त्रिका प्राणायाम

भस्त्रिका  का अर्थ भट्टी के लिए प्रयोग में लायी जाने वाली धौकनी है । लुहार की धौकनी की तरह यहाँ बल पूर्वक  हवा को भीतर से  बाहर की  ओर निकाली  जाती है ।
विधि :---
१- सिद्धासन अथवा पद्मासन में बैठकर मेरुदंड को सीधा रखें ।
२-दाहिने  अंगूठे को बायीं  नासिका पर रखें ।
३बायाँ  हाथ बाएं घुटने पर चिन्मयी मुद्रा में रखिये ।
४- नासिका का दाहिना छिद्र दाहिने  अंगूठे से बंद कीजिये और अनामिका से नाक  का बायाँ छिद्र बंद कीजिये ।
५_-दाहिने अंगूठे से दबाते हुए नाक का दाहिना छिद्र बंद कीजिये ।
६- बाएं नाक छिद्र से २० बार तेजी से श्वास लीजिये और छोडिये ।अंत में बाएं   छिद्र से पूरा श्वास लेकर दोनों छिद्रों को बंद करते हुए जालन्धर बंध में ११ सेकेण्ड तक अंतर कुम्भक कीजिये ।
७- अब बाएं छिद्र से धीरे धीरे २२ सेकेण्ड में श्वास को छोडिये ।
८- यही अभ्यास दायें छिद्र से भी कीजिये ।
९- अब दोनों छिद्रों से भी जल्दी जल्दी श्वास को भरें और छोड़ें ।
१० --अंत में दोनों छिद्रों से श्वास लेकर दोनों छिद्रों को बंद कीजिये और जालन्धर बंध में ११ सेकेण्ड तक  श्वास को अंतर कुम्भक में रोकिये ।
११ -अब जालन्धर बंध हटाते हुए २२ सेकेण्ड में श्वास को धीरे धीरे एक लय में छोडिये ।
१२- भस्त्रिका प्राणायाम का यह एक चक्र पूरा हुआ ।
१३- इस क्रिया को कम से कम ५ बार कीजिये ।
सावधानी :--
१- प्रारम्भ में यह क्रिया धीरे धीरे शुरू करें और बाद में नियंत्रण के साथ गति और समय में वृद्धि करें ।
२- इसे करते समय चेहरे पर अनावश्यक दबाव न दें बल्कि शरीर को कड़ा रखें और शिथिलता का अनुभव करें
३- श्वास की प्रक्रिया के समय और उसे रोकने के समय ध्यान मूलाधार चक्र पर केन्द्रित होना  चाहिए ।
४- जो व्यक्ति हृदय रोग  या उच्च रक्त चाप से पीड़ित हों वे कृपया  यह अभ्यास न करें बल्कि निम्न रक्त चाप से पीड़ित को यह अवश्य करना चाहिए ।
५- प्रातः या सायंकाल कभी भी ख़ाली पेट इसे किया जा सकता है  ।
परिणाम _--
१- इस अभ्यास से शरीर में गर्मी का अनुभव होता है एवं जाड़े में सर्दी कम लगती है ।
२- यह प्राणायाम शरीर की चर्बी कम करने में सहायक होता है ।
३- गले की सूजन में आराम पहुचता है और जठराग्नि तेज होती है ।
४- यह कार्बन आक्साइड समाप्त कर फेफड़ों को शुद्ध करता है ।
५- रक्त चाप को नीचे से ऊपर की ओर बढ़ाता है ।
६- दमा और सर्दी जुकाम ठीक करने में सहायक माना गया है ।
७- मोटापा घटाने में मदद करता है ।
८- सिर-दर्द और अनिद्रा दूर करता है ।
९- इससे पेट की गैस कम होती है तथा कब्जियत भी दूर होती है ।

Saturday 3 March 2012

शीतली प्राणायाम

शीतल शब्द का अर्थ है ठंडा । यह प्राणायाम शरीर के समस्त अवयवों को शीतलता प्रदान करता है इसीलिए इसका नाम शीतली प्राणायाम रखा गया है । प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व अथवा सायं सूर्योदय के पश्चात इस आसन को खुले वातावरण में करना चाहिए /
विधि :------
१;---पद्मासन अथवा सुखासन जिसमें भी सुबिधा हो , स्थिरतापूर्वक बैठ जाएँ ।
२:----सिर के समानांतर अपने पीठ को सीधा रखें और दोनों हाथों की हथेलियों को उल्टा करके ज्ञान मुद्रा में अपने  घुटने पर रखें    ।
३-अब अपने मुहं को इस प्रकार से खोलें कि दोनों होंठों के मध्य गोल  आकृति बन जाये ।
४:--अपनी जीभ को ऊपर की ओर मोड़ते हुए इस प्रकार उठायें कि जीभ तालू  के ऊपरी भाग को स्पर्श करे तथा जीभ के किनारे और अग्र भाग दांतों को छूते रहें ।
५:--अब मुड़ी हुई जीभ को होठों के बाहर निकालें और फुफुफ्सों को पूरी तरह भरने के लिए सिसकार  की ध्वनि  के साथ मुड़ी हुई जीभ से हवा को अंदर की ओर खींचें ।ऐसा करते समय ऐसा अनुभव  होना चाहिए कि हवा किसी नली के सहारे अंदर की ओर खींची जा रही है । पूर्ण श्वसन के पश्चात जीभ को अंदर कर  लें ।
६:--पूर्ण श्वसन के बाद सिर को गर्दन के पिछले भाग से धड की ओर झुकाएं और अपने चिबुक को हंसुली और सीने की हड्डी के थोडा ऊपर मध्य भाग में  इस प्रकार स्थिर करें कि जालन्धर बंध की मुद्रा बन जाये ।
७:--अब मूल बंध का अभ्यास करते हुए ५ सेकेण्ड  तक श्वास को रोकें रखें  ।
८:--उज्जायी प्राणायाम की तरह नासिका से वायु को छोड़ने की ध्वनि  के साथ धीरे धीरे श्वास को छोड़ें ।
९:--इस प्रकार शीतली प्राणायाम का एक चक्र पूरा हो जाता है ।
१० :--अब सिर को उठा लें और ५ से १० मिनट तक इस माला की पुनरावृत्ति करें ।
परिणाम :-- 
इस प्राणायाम से सम्पूर्ण शरीर यंत्र को ठंडक प्राप्त होती है और कान एवं नेत्र को शक्ति मिलती  है । यह मंद ज्वर और पित्त की  अवस्था में विशेष लाभदायक है ।यह यकृत एवं प्लीहा को क्रियाशील बनाता है  तथा प्यास बुझाकर पाचनशक्ति को बढ़ाता है ।
सावधानी :-
-उच्च रक्त चाप के व्यक्तियों को अंतर र्कुम्भ्क नहीं करना चाहिए और हृदय रोग  से पीड़ित साधक को भी यह प्राणायाम नहीं करना चाहिए ।