Monday 20 February 2012

नाड़ी शोधन प्राणायाम

नाड़ी -प्राण अथवा ऊर्जा के मार्ग के लिए नस या धमनी के समान शरीर का नलिका रूप अवयव है ।शरीर में सबसे अंदर की तह को शिरा कहते हैं और बीच की तह को धमनी तथा  शरीर के बाहरी तह को नाड़ी कहते हैं । शोधन का तात्पर्य पवित्र अथवा स्वच्छ करना होता है ।इस प्रकार नाड़ी शोधन प्राणायाम का मुख्य उद्देश्य नाड़ी को शुद्ध करना होता है ।
विधि ----
१ -आसन पर पद्मासन अथवा सिद्धासन में सुविधानुसार बैठ जाएँ ।
२- अपनी पीठ को सीधा और कड़ा रखें तथा सिर को धड की ओर नीचे ले  लायें ।सीने की हड्डी के ठीक ऊपर हंसुलिओं के मध्य कटाव में चिबुक को  स्थिर करें एवं  तत्पश्चात  जालन्धर बंध लगायें ।
३- अब बायीं बांह को फैला  दें और बाएं घुटने पर बायीं कलाई का पिछला भाग टिका दें । ज्ञानमुद्रा की स्थिति बनाएं और आँखों को पूर्णतया  बंद रखें  ।
४- दाहिने  अंगूठे से नाक का दाहिना छिद्र बंद करें और अनामिका से बायाँ छिद्र बंद करें ।
५- अब दाहिने अंगूठे से दबाते हुए अपना दाहिना नाक छिद्र बंद करें और बाएं नाक छिद्र से अपने फेफड़े की सारी हवा निकाल दें ।
६- अब बाएं नाक छिद्र से धीरे धीरे श्वास खींचे और ११ सेकेण्ड तक गिनती गिनते हुए फेफड़े में हवा भरें ।
७- बायाँ नाक छिद्र दाहिने  हाथ की अनामिका से बंद करें ताकि दोनों नाक छिद्र बंद हो जाएँ ।
८- लगभग ११ सेकेण्ड तक हवा को फेफड़े में रोके रखें  अर्थात अन्तरंग कुम्भक करते रहें ।
९- अब धीरे धीरे  दाहिने अंगूठे को उठाकर दाहिने नाक छिद्र को खोलें और ११ सेकेण्ड में उससे पूरी हवा बाहर निकाल दें ।
१०- अब अपने अंगूठे से दाहिना  नाक छिद्र बंद कर दें ताकि दोनों नाक छिद्र बंद हो जाएँ ।
११- बहिरंग कुम्भक में ११ सेकेण्ड तक दोनों नाक छिद्र बंद रखें ।
१२- अब अपना अंगूठा धीरे से उठाकर दाहिना नाक छिद्र खोलें और दाहिने नाक छिद्र से ११ सेकेण्ड गिनते हुए श्वास खींचें । [पूरक क्रिया ]
१३- अब अंगूठे से दाहिना नाक छिद्र दबाएँ ताकि दोनों नाक छिद्र बंद हो जाएँ ।
१४- ११ सेकेण्ड तक हवा फेफड़ों में रोकें [अन्तरंग कुम्भक ]।११ सेकेण्ड की गिनती मन ही मन गिनें ।
१५- अब अनामिका अंगुली को उठाते हुए बायाँ नाक छिद्र खोलें और २२ सेकेण्ड तक अपने बाएं नाक छिद्र से श्वास को बाहर  निकालें ।
१६- अब बिना रुके बाएं नाक छिद्र को अनामिका से बंद करें और हवा को ११ सेकेण्ड तक बाहर रोकें [बहिरंग कुम्भक ]
१७- जब यह चक्र समाप्त हो जाये ,तब आप प्रारम्भिक स्थिति में आ जाएँ ।
१८- इस प्रकार नाड़ी शोधन प्राणायाम का एक चक्र समाप्त होता है ।
१९- बिना रुके हुए दूसरी बार यही क्रिया  शुरू करें ।
स्मरणीय बिंदु ---
१- -नाड़ी शोधन प्राणायाम का अभ्यास यथासम्भव शांतिपूर्ण और हवादार स्थान में ही करें ।बहुत अधिक सर्दी में इसे न करें। 
    २- इस अभ्यास के दौरान मेरुदंड को सीधा करके एवं तनकर बैठना चाहिए तथा अत्यंत सावधानी से ११ से २२ सेकेण्ड की गिनती करें ।
३- श्वास को यथासम्भव  नियंत्रण में रखें ।उसे तेजी के साथ नाक छिद्रों में ना जाने दें और न ही तेजी से बाहर निकालें ।
४- चिन्मयी मुद्रा में अपना बायाँ हाथ शिथिलतापूर्वक बाएं ठेहुने पर रखें और दाहिने हाथ का अंगूठा दाहिने छिद्र पर और अनामिका बाएं छिद्र पर रखें एवं इस दौरान आँखों को पूरी तरह से बंद रखें ।
५- यदि पद्मासन में कोई कठिनाई महशूस हो तो आप वज्रासन या सुखासन में बैठकर इसे कर सकते हैं ।
६- जो व्यक्ति उच्च रक्त चाप या ह्रदय रोग से पीड़ित हैं उन्हें श्वास रोकने की कोशिश नहीं करनी चाहिए तथा जो मंद रक्त चाप से पीड़ित हैं वे श्वसन के बाद अवरोध [अंतर्कुम्भक ] के साथ  इसे कर सकते हैं ।बुखार की दशा में भी यह वर्जित है। 
परिणाम ---
१- स्वाभाविक श्वास क्रिया की अपेक्षा नाड़ी शोधन में रक्त को प्राण वायु की पूर्ति अधिक होती है जिससे नाड़ियाँ  शुद्ध एवं शांत हो जाती हैं ।मन स्थिर और निर्मल हो जाता है ।
२- रासायनिक प्रतिक्रिया की पद्धति में तेजी एवं वृद्धि लाता है ।
३- विषाक्त तत्व यथा कार्बन आक्साइड एवं अन्य अशुद्धियों को दूर कर शरीर को शुद्ध बनाता है ।
४- इसे नियमित रूप से करने पर सिर दर्द पूरी तरह से समाप्त हो जाता है ।
५- घबराहट ,चिन्ता  और अनिद्रा पर काबू पाने में यह सहायक माना जाता है ।

Sunday 5 February 2012

सर्पासन

सर्पासन जैसाकि नाम से ही ध्वनित होता है कि इस आसन में सर्प जैसी आकृति बनायीं जाती है । यह सरल आसनों की श्रृंखला का एक अत्यंत लाभदायक आसन है /
विधि :-
१- सर्वप्रथम आसन पर पेट के बल सीधे लेट जाएँ और अपनी सांसों को क्रमशः सामान्य कर लें  ।
२- अपने दोनों पैरों को आपस में मिला लें और पैरों को नीचे की ओर यथाशक्ति तानें ।
३- अब अपने दोनों हाथों को पीठ पर ले जाते हुए हाथों की अंगुलिओं को आपस में फंसाकर मिला लें ।
४- एक लम्बी गहरी सांस भरें और उसे अंदर की ओर रोकते हुए भरी हुई साँस की स्थिति में अपने सिर और दोनों पैरों को आसन से थोडा ऊपर उठाकर सर्प की तरह दायें बाएं लोटपोट करें ।
५-लोटपोट करते समय दोनों पैर एक दूसरे से मिले और तने  रहें एवं दोनों हाथों की अंगुलियाँ भी आपस में मिली रहें ।
६-यदि  सांस लेने की आवश्यकता महशूस हो तो लोटपोट की क्रिया को दाहिने करवट में  रोक दें ।
७- कुछ देर तक सांसों को सामान्य कर लें और फिर से श्वास भरते हुए इसी क्रिया को एक बार करें ।
८- अब दाहिने हाथ को ऊपर करते हुए दाहिनी करवट लेकर पीठ के बल लेट जाएँ और शवासन में थोड़ी देर    तक विश्राम करें ।
९- शवासन में विश्राम के पश्चात आसन पर पुनः उठकर बैठ जाएँ ।
सावधानी :---सर्पासन की क्रिया उतनी देर तक ही करें जितनी देर तक आप सांस को आसानी से रोक सकें । इस क्रिया के दौरान आपके हाथ और पैर दोनों तने रहेंगे और इस दौरान सिर को आसन से थोडा ऊपर उठाये रखेंगे । इस क्रिया के कारण यदि किसी अंग विशेष में दर्द महशूस हो तो इस क्रिया को तुरंत रोक दें और शवासन में विश्राम करें ।
परिणाम :---
१- इस आसन से रीढ़ की हड्डियाँ मजबूत होती हैं तथा उनमें लोच पैदा होती है ।
२- आँतों में चिपके हुए मल स्वयमेव बाहर निकल जाते हैं ।
३- इस आसन को नियमित रूप से करने पर कब्ज की समस्या सदैव के लिए दूर हो जाती है ।
४- इस आसन के करने से शरीर सुडौल व आकर्षक बनता है ।
५- इस आसन से शरीर में स्फूर्ति पैदा होती है और आलस्य भी दूर हो जाता है ।