Sunday 18 December 2011

शिथिल आसन

शिथिल  आसन  एक प्रकार से आराम करने का आसन है किन्तु यह रक्त चाप को  नियंत्रित करने हेतु  एक  अत्यंत उपयोगी आसन  के रूप में माना जाता है |
विधि :--
१- पेट के बल आसन पर लेट जाएँ और शरीर के सभी अंगों  को पूर्णतयः शिथिल रखें |
२- अपनी श्वासों  को सामान्य कर लें और ध्यान अपने  शरीर पर ही केन्द्रित रखें  |
३- अब गर्दन घूमाकर बाएं कान को आसन पर रखें तथा बाएं हाथ को पीठ के सहारे पीछे सीधा  करके फैला लें |
४-अब दाहिने पैर को मोडकर घुटने को आगे नाभि के सीध में तथा दाहिने हाथ को मोडकर अंगूठे को नाक की सीध में रखें  |
५- इस प्रकार बायाँ पैर और हाथ दोनों सीधा  तथा दाहिना पैर और दाहिना हाथ मुड़ा रहे |
६- इस मुद्रा में शरीर को बिलकुल ढीला रखें तथा अपनी आती जाती  श्वासों पर ध्यान को केन्द्रित रखें  |
७- कुछ देर बाद दोनों हाथ और पैर को सीधा कर लें |
८- अब गर्दन घूमाकर दाहिने कान को आसन पर रखकर बाएं  घुटने और बाएं  हाथ को इस प्रकार मोड़ें कि आपका बायाँ अंगूठा  नाक की सीध में तथा बायाँ घुटना नाभि की सीध में आ जाये | दायाँ हाथ और दायाँ पैर सीधा रखें  /
९- शरीर को शिथिल रखते हुए अपने  श्वास- प्रश्वास पर ध्यान  को केन्द्रित रखें  |
१०- थोड़ी देर बाद दोनों पैरों  और हाथों को सीधा करते हुए पेट के बल आ जाएँ और शवासन में विश्राम करें |
सावधानी :--
इस आसन को खाली पेट ही करना चाहिए अथवा भोजन के कम से कम  ६ घंटे बाद |उच्च रक्त चाप के रोगी दाहिना शिथिल तथा निम्न रक्त चाप के रोगी बायाँ शिथिल आसन न करें |
परिणाम :-
१- इस आसन से अनिद्रा दूर होती है तथा मानसिक तनाव कम हो जाता है |
२- इस आसन का प्रभाव पाचन तंत्र पर भी पड़ता है जिससे कब्जियत दूर करने में सहायता मिलती है |
३- थकान मिटाने का यह सर्वोत्तम आसन है |
४- रक्त संचार में सुधार करके सभी अंगों को शक्ति प्रदान करता है |
५- हृदय रोग और रक्त चाप को संतुलित करता है |

सिद्धासन

सिद्धासन  में पद्मासन के सभी लाभ प्राप्त होते हैं और यह पद्मासन एवं सुखासन से उत्तम आसन माना जाता है क्योंकि इस मुद्रा में मेरुदंड बिलकुल सीधा रहता है | यह आसन प्राणायाम के लिए अधिक उपयुक्त माना जाता है | इसके निरंतर अभ्यास से मूलाधार चक्र से ऊर्जा शक्ति निकलकर सुषुम्ना के माध्यम से आज्ञाचक्र तक समस्त  चक्रों जैसे स्वाधिष्ठान,मणिपुर,अनहत,एवं विशुद्धि चक्रो को स्पर्श करते  हुए आज्ञा चक्र को प्रभावित करता है | इसलिए मन को एकाग्र करने एवं ध्यान के लिए यह सर्वोत्तम  आसन माना गया है |
विधि :----
१- आसन पर दोनों पैर फैलाकर बैठ जाएँ |
२- अपना बायाँ  पैर मोडकर एडी को गुदा एवं अंडकोष के समीप रखें | महिलाएं बच्चेदानी के मूल पर रखें |
३- अब दायाँ पैर मोडकर दायीं एडी को जननेंद्रिय की जड में तथा नाभि के ठीक नीचे रखें |
४- अपने पैरों को इस प्रकार रखें कि दाहिनी एडी बायीं एडी के ठीक ऊपर रहे |
५- मेरुदंड और शरीर भूमि पर सीधे रहें तथा घुटने भूमि से सटे रहें |
६- अब दोनों आँखें बंद कर लें और  यथासम्भव रुकें ,स्थिर रहें तथा अपनी आती- जाती श्वास को मन की आँखों से निरंतर  देखते रहें |
७- इस दौरान ऐसा अनुभव करें कि नाभि से श्वास  लेकर ऊपर पेट ,छाती ,कंठ तक ले जाते हुए दोनों नाकों से श्वास छोड़ते हुए पुनः नाभि से श्वास लेने की अवस्था में प्रवेश कर रहें हैं |
८-  श्वास की इस चक्राकार प्रक्रिया  में ध्यान को अपनी श्वासों पर ही केन्द्रित रखें  |
९- श्वास- प्रश्वास की गति स्थिर होने पर लगभग एक मिनट में आठ बार श्वास लेने और छोड़ने का चक्र पूर्ण होने पर दोनों भौहों के बीच त्रिकुटी [आज्ञाचक्र ] पर मन को केन्द्रित करें और थोड़ी देर स्थिर रहें |
सावधानी :--
 स आसन को कम से कम १० मिनट अथवा जब तक दर्द न महशूस हो सुविधानुसार करते रहें | प्रातः या संध्या काल में एक बार ही इस आसन को करें | जिन रोगियों को घुटने  में दर्द हो वे इसे कदापि न करें | महिलाओं  को भी यह आसन वर्जित है |
परिणाम :--
१- ध्यान के लिए यह सर्वोत्तम आसन है |
२- इस मुद्रा में बैठने का निरंतर अभ्यास यदि कर लिया जाये तो इससे अनेक सिद्धियों की प्राप्ति सम्भव हो जाएगी |
३- नवयुवक ,ब्रह्मचारी एवं अविवाहित  युवक जो ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहते हैं,  के लिए यह आसन बहुत ही लाभकारी  माना गया है |
४- चूंकि इस आसन में एक एडी मूलाधार चक्र पर दबाव डालती है और दूसरी एडी गुर्दे के धरातल [लिंग एवं योनि के मूल ] पर रहे / इसप्रकार  महत्वपूर्ण शक्ति को रोकने के कारण यह आसन विशेष लाभप्रद है |
५- यह आसन आध्यात्मिक चेतना प्रदान करता है तथा पाचन क्रिया में सुधार भी लाता है |
६- सिद्धासन से मानसिक तनाव और अनिद्रा दोनों दूर हो जाती है |
७- यह आसन हृदय रोग और रक्त चाप दोनों को संतुलित करता है |

Saturday 17 December 2011

अध्वासन

अध्वासन सरल आसन की श्रृंखला का एक सरल आसन है | अध्व का अर्थ है नीचे | इस आसन में शवासन की   विपरीत  मुद्रा बनाई जाती  है |
विधि :---
१- अपने आसन पर पेट के बल सीधा लेट जाएँ और सांसों को सामान्य कर लें |
२- दोनों हाथों को आगे हथेली नीचे करके फैला लीजिये और दोनों पंजों को आपस में मिला लीजिये  |
३- अपने दोनों पैरों और हाथों की अँगुलियों को पीछे की ओर तानें और शरीर के मध्य भाग से ऊपर और नीचे दोनों ओर शरीर को लम्बवत खींचें | इस दौरान दोनों हथेलियाँ एवं पंजे को थोडा ऊपर की ओर उठा लें |
४- अब गहरी और लम्बी साँस भरें और आराम का अनुभव करें  |
५-  इस दौरान अपनी दोनों आँखों को बंद रखें तथा बिना हिले डुले हुए  स्थिर रहें | इस समय आपका सम्पूर्ण ध्यान शरीर पर केन्द्रित होना चाहिए |
६- यथासम्भव रुकने के बाद हथेली और पंजे को नीचे आसन पर ले आयें और विश्राम करें |
सावधानी :--
 -इस मुद्रा में दो या तीन मिनट अथवा जितनी देर तक रुक सकें उतनी देर तक रुकें और आराम का अनुभव करें | इस आसन को प्रातः या संध्या किसी समय खाली पेट अथवा भोजन के ६ घंटे बाद ही करें |
परिणाम :---
१- यह आसन शरीर को आगे झुकने से रोकता है और रक्त प्रवाह में सुधार लाता है |
२- इस आसन से मेरुदंड और शरीर के शेष भाग में फैलाव  महशूस होता है |
३- घुटने एवं ठेहुने की कटोरी खिसक जाने  और गर्दन में कड़ापन होने पर यह आसन दर्द को दूर कर देता है |
४- यह  स्नायु एवं मांसपेशियों की प्रणाली को आराम पहुंचाता है और उनके कार्यों में सुधार लाता है |
५- पीठ दर्द के निवारण में यह आसन रामबाण की तरह उपयोगी माना गया है |

Sunday 11 December 2011

चक्रासन

चक्रासन  कठिन आसनों की श्रृंखला का एक महत्वपूर्ण आसन है |यह किशोरियों के लिए विशेष लाभकारी आसन माना जाता है | रजस्वला की प्रारम्भिक स्थिति  में मासिक धर्म सम्बन्धी कठिनाइयों को दूर करने में सहायक होता है |
विधि :---
- आसन पर शवासन की मुद्रा में लेट जाएँ |
२- घुटनों को मोड़ते हुए दोनों तलवों को सीधा जमीन पर एक फिट के फासले पर फैलाकर रखें जिससे एडियाँ नितम्ब के पास सटी रहें |
३-  अब अपने दोनों हाथों को सिर के ऊपर उठा लें |
४- दोनों हथेलियों को माथे के पास लाकर भूमि पर मोड़ते हुए इस प्रकार रखें कि अँगुलियों के अग्र भाग कंधों के निकट रहें |
५- अपने शरीर को बहुत धीरे धीरे जमीन से ऊपर इस प्रकार उठायें कि शरीर के ऊपरी भाग का भार सिर के ऊपरी भाग पर रहे |
६- अब घुटनों को थोडा झुकाकर वृत्ताकार  बना लें  |
७- अपने दोनों हाथों को पंजों के थोडा  पास लाते हुए शरीर को अर्ध चक्राकार बना दें |
८- अब शरीर को यथाशक्ति पूर्ण चक्राकार बनाने का प्रयास कीजिये और हाथों को पैरों के समीप ले आइये | 
९- इस मुद्रा में श्वास भरें और यथाशक्ति  उसे रोकें |
१० -अब आरम्भिक मुद्रा में वापस लौटते समय श्वास छोड़ें एवं अपनी केहुनियाँ झुकाते समय शरीर का वजन सिर पर रखें |
११- अंत में आसन पर शवासन की मुद्रा में लेट जाएँ |
१२- यह सम्पूर्ण क्रिया सावधानी पूर्वक अत्यंत धीरे धीरे ही  करें |
सावधानी :----यह अत्यंत कठिन और शक्तिशाली  अभ्यास है |अतः कुछ समय तक पीछे झुकने की मुद्राएँ करने के बाद ही चक्र आसन करने का प्रयास करें |यह अभ्यास करने के बाद पाद हस्त आसन अथवा पश्चिमोत्तान आसन जैसे विपरीत आसन अवश्य करें | इस आसन के दौरान यदि किसी अंग विशेष में दर्द एवं तनाव महशूस हो तो इसे कदापि न करें |
परिणाम :--
१-  यह आसन किशोरियों के मासिक धर्म को नियमित करता है |
२- यह आसन छाती  एवं स्तन दोनों को विकसित करता है |
३- यह आसन गुर्दा के नीचे के समस्त भागों को लचीला बनाता है  |
४- दमा, खांसी और फेफड़ों की बीमारी में तथा पीठ के दर्द में विशेष लाभ पहुंचाता है |
५- यह आसन भुजाओं ,गर्दन ,पेट ,मेरुदंड ,पैर ,पिंड ,एवं घुटनों का फैलाव करता है |
६- यह जिगर, प्लीहा ,पैनक्रियाज ,एड्रिनल ग्रन्थियों ,पीठ कि समस्त मांसपेशियों एवं आँतों को सशक्त  बनाता है |
७- पेट तथा नितम्ब की चर्बी घटाकर कमर को पतला और सुडौल बनाता है |
८- यह आसन महिलाओं के जननेंद्रिय रोगों जैसे अनियमित मासिक धर्म एवं लिकोरिया को ठीक करता है |

Saturday 10 December 2011

पादोत्तानासन

पादोत्तानासन सरल आसनों की श्रृंखला का एक महत्वपूर्ण आसन है |
विधि :-----
१- आसन पर पीठ के बल लेट जाएँ और अपने दोनों हाथों कोसीधा करते हुए सिर के पीछे की ओर ले जाएँ |
२- सम्पूर्ण शरीर को ऊपर और नीचे की ओर तानें किन्तु यह ध्यान रहे कि हथेलियाँ आकाश की ओर एवं पैर की अंगुलियाँ आगे की ओर खिंची होनी चाहिए |
३- इस दौरान ताड़ासन की मुद्रा बन जाती है |
४- अब दोनों एडियों को तीन इंच ऊपर उठा लें और आसन के अंत तक उठाये रखें |
५- श्वास भरते हुए दायीं टांग और बायाँ हाथ आसमान की ओर नब्बे अंश का कोण बनाते हुए उठायें किन्तु यह ध्यान रहे कि सिर  व् पैर आसन से न उठने पाए और दोनों पैर मिले व् तने रहें  |
६- श्वास छोड़ते हुए हाथ और पांव दोनों को तीन इंच पर वापस ले आयें |एडियाँ आसन पर न जाने पायें |
७- अब बायीं टांग और दायें हाथ को ऊपर उठायें और कुछ देर तक रुकें |
८- अब श्वास छोड़ते हुए पूर्व स्थिति में वापस आ जाएँ किन्तु एडियाँ जमीन से तीन इंच ऊपर अभी भी  उठी रहेंगी   | इस अवधि में ध्यान स्वाधिष्ठान चक्र पर केन्द्रित रहेगा |
९- यह ध्यान रहे कि नीचे वाले हाथ और पांव आसन से थोडा ऊपर उठे  एवं खिंचे रहेंगे |
१० - अब दायीं टांग और बाएं हाथ को ऊपर आकाश की ओर उठायें  और कुछ देर तक रुकें फिर धीरे धीरे वापस ले आयें  |
११- अब यही क्रिया दोनों हाथों एवं पैरों को एक साथ ऊपर उठा कर करें और कुछ देर रुकने के पश्चात धीरे धीरे वापस हो लें |
१२-अब श्वास को छोड़ते हुए पहले दोनों हाथ को पीछे ले जाएँ फिर पांव को वापस कर धीरे से जमीन पर रखें |
१३- अब शरीर को ढीला करके विश्राम करें ||
परिणाम :--
 १- इस आसन से हाथ और पैर की मांसपेशियां  सशक्त एवं बलशाली बनती हैं |
 २-  इस आसन से वायु विकार और कब्जियत का निवारण होता है |
 ३ - यह आसन  पैर की अँगुलियों और अंगूठों को शक्ति  प्रदान करता है |
  ४-  इस आसन से  गठिया साइटिका का दर्द दूर हो जाता है |
  ५- पैरों की नाड़ियों ,स्नायुओं और मांसपेशियों  को यह आसन सशक्त बनाता है |

आकर्ण धनुरासन

आकर्ण धनुरासन कठिन आसन की श्रृंखला का आसन है |इस आसन को करते समय किसी गुरु अथवा मार्गदर्शक की आवश्यकता होती है |
विधि :---
१- आसन पर बैठ जाएँ एवं अपनी दोनों टांगों को सामने  की ओर फैला लें |
२- अब दायें पांव की एडी को बायीं टांग के ऊपर ले जाते हुए जंघा के पास रखें |
३- दायें हाथ के अंगूठे तथा साथ की अंगुली का छल्ला बनाते हुए बाएं पांव के अंगूठे को पकड़ लें |
४- इसी प्रकार बाएं हाथ से दायें पांव के अंगूठे को पकडकर श्वास भरते हुए बाएं कान तक इस प्रकार खींचें जैसे धनुष पर प्रत्यंचा चढाते हैं |
५- इस दौरान कमर और गर्दन दोनों को सीधी रखें | यह ध्यान रहे कि इस क्रिया में पांव को कान के पास ले जाना है न कि कान को पांव के पास |
६- कुछ देर तक आंतरिक कुम्भक की स्थिति में रुकें तत्पश्चात अत्यंत धीरे धीरे वापस हों |
७- इसी प्रकार बाएं पांव के अंगूठे को पकडकर दायें कान के पास ले जाएँ और कुछ देर आंतरिक कुम्भक में स्थिति के पश्चात धीरे धीरे वापस हों |
सावधानी :-----इस क्रिया के दौरान यदि किसी अंग विशेष में दर्द अथवा तनाव महशूस हो तो पूर्व की मुद्रा में वापस हो लें | यदि पांव कान तक नहीं जा पा रहा है तो जितना सम्भव हो सके उतनी  ही कोशिश करें | वापस होते समय पैर को आसन अथवा जमीन पर अचानक न ले आयें |
परिणाम :----
१- इस आसन का प्रभाव सम्पूर्ण शरीर के समस्त अवयवों पर पड़ता है विशेष रूप से जंघाओं एवं भुजाओं पर |
२- यह आसन गठिया अथवा घुटने दर्द दूर करने में सहायक माना जाता है |
३- यह आसन शारीरिक तनाव के साथ मानसिक तनाव भी दूर करता है |

मकरासन

मकरासन सरल आसनों की श्रृंखला का एक विशेष लाभकारी आसन है जिसे खाली पेट अर्थात भोजन के ६ घंटे पश्चात किया जा सकता है |
विधि :---
१- आसन पर पीठ के बल लेट जाएँ और शरीर के सभी अंगों की शिथिल कर दें |
२- अपने दोनों पैरो को मोड़ें ,एडियों को जंघाओं से मिलाते हुए पंजे को आसन पर स्थिर करें  |
३- दोनों हाथों को कंधे की सीध में इस प्रकार  फैला लें क़ि हथेलियाँ ऊपर आकाश क़ी ओर अधखुली  रहें |
४- अब सम्पूर्ण शरीर को तानें तथा  श्वास भरते हुए दोनों घुटने एक साथ मिले हुए दायीं ओर और गर्दन बायीं ओर आसन को स्पर्श करे |
५- यथासम्भव रुकने के बाद श्वास छोड़ते हुए वापस आ जाएँ |
६- अब श्वास भरते हुए दोनों घुटनों को बायीं ओर और गर्दन  को दायीं ओर आसन से स्पर्श कराएँ तथा कुछ देर रुकने के पश्चात श्वास छोड़ते हुए घुटने एवं गर्दन को  यथास्थान वापस ले आयें |
७- इस क्रिया को दो चार बार करें और फिर विश्राम करें |
८- इस आसन के दौरान सम्पूर्ण ध्यान स्वाधिष्ठान चक्र पर केन्द्रित होना चाहिए |
मकरासन क़ी दूसरी विधि इस प्रकार है :-----
१- अपने दोनों हाथों को कंधों के समानांतर इस प्रकार फैला दें क़ि हथेलियाँ आकाश की ओर रहें |
२- अपने दोनों पैरों को मिलाएं और बाहर क़ी ओर खींचते हुए उन्हें ६० अंश के कोण तक ऊपर उठायें ,दोनों हाथों को दोनों ओर खींचे तथा पंजे को बाहर क़ी ओर रखते हुए दायीं ओर ले जाएँ और श्वास भरते हुए गर्दन को बायीं ओर मोड़ दें |
३- अब पंजों को वापस लाते हुए श्वास को धीरे धीरे बाहर निकाल दें  और गर्दन को भी पूर्व स्थिति में वापस ले आयें
४- पुनः श्वास भरते हुए पैरों को विपरीत दिशा में बायीं ओर ले जाएँ और गर्दन को दायीं ओर मोड़ दें |
५- इस क्रिया को दो चार बार दायें एवं दो चार बार बाएं करें  और शिथिल आसन में विश्राम करें |
सावधानी :---इस आसन को खाली पेट ही करना चाहिए | इस आसन के दौरान किसी मुद्रा में जाते समय श्वास भरना होता है और वापस आते समय श्वास निकालना होता है |
परिणाम  :-----
१- घुटना अथवा उसकी कटोरी यदि खिसक गयी हो तो इस आसन के अभ्यास से कटोरी यथास्थान स्थित हो जाती है तथा घुटने के दर्द दूर हो जाते हैं |
२- साइटिका और गर्दन के दर्द में भी इस आसन से राहत मिलती है |
३- फेफड़ों की बीमारी एवं दमा रोग से ग्रस्त व्यक्ति  को इस आसन से लाभ मिलता है |
४- यह आसन पेट की चर्बी को कम करता है तथा कब्ज भी दूर करता है |
५- इस आसन से आँतों की विधिवत  मालिश  हो जाती है |

योगमुद्रा

योगमुद्रा  सरल आसनों की श्रृंखला का एक बहुपयोगी आसन है |आध्यात्मिक दृष्टि से इस आसन का विशेष महत्व माना गया है |
विधि :--
१- आसन पर पद्मासन की मुद्रा में बैठ जाएँ  तथा दोनों आँखें बंद  कर लें |
२- अपनी दोनों एडियों को नाभि के नीचे मिलाकर रखें तथा घुटने आसन को स्पर्श करते रहें   |
३- अब अपने दोनों हाथों को पीठ के पीछे ले जाएँ और बायीं कलाई को दाहिने हाथ से पकड़ लें |
४- बाएं हाथ की मुट्ठी  को बंद कर लें और शरीर को सीधा  रखें |
५- श्वास भरते हुए सीने को तानें किन्तु यह ध्यान रहे क़ि हाथों का दबाव नीचे क़ी ओर ही रहे |
६- अब धीरे धीरे श्वास छोड़ते हुए शरीर को सामने क़ी ऑर कमर से इस प्रकार आगे  झुकाते जाएँ कि सम्पूर्ण    मेरुदंड सीधा बना रहे किन्तु टखनों ,पिंडों और पीठ पर कोई दबाव न पड़े  |
७- इस दौरान गर्दन झुकनी नहीं चाहिए किन्तु यह प्रयास अवश्य हो क़ि आपका माथा जमीन को स्पर्श कर ले |
८- थोड़ी देर इस स्थिति में बाहय कुम्भक लगाकर रुकें तत्पश्चात श्वास लेते हुए अत्यंत धीरे धीरे वापस आ जाएँ | अभ्यास दुहराते समय केवल कलाई बदलें और दायीं हथेली से बायीं कलाई को पकडकर धीरे धीरे आगे  की ओर श्वास निकालते हुए झुकें |
९ -इस दौरान ध्यान मणिपुर चक्र पर केन्द्रित होना चाहिए |
सावधानी :----जिनके पेट में नासूर [अल्सर ] हो गया हो वे कृपया इस आसन को न करें | जितनी देर बिना किसी दर्द के सम्भव हो सके उतनी देर तक ही इस आसन को करें | प्रातः काल अथवा सायंकाल कभी भी खाली पेट ही इस आसन को करना चाहिए |
परिणाम :----
१- यह आसन पेट की मांसपेशियों ,आंत एवं शरीर के अन्य अंगों की विधिवत मालिश करता है |
२- कोष्ठबद्धता ,अपच एवं पेट की अन्य बीमारियाँ दूर करने में यह आसन अत्यंत लाभकारी है |
३- मणिपुर चक्र को जाग्रत करने के लिए यह आसन अत्यधिक प्रभावकारी मुद्रा है |
४- इस आसन से भूख जाग्रत होती है |



जानुशिरासन

जानुशिरासन को महामुद्रा  भी कहते  हैं | यह सरल आसनों  की श्रृंखला का एक महत्वपूर्ण आसन है |
विधि :----
१- सर्वप्रथम आसन पर बैठ जाएँ और अपने दोनों पैर को आगे की ओर इस प्रकार फैला दें कि पंजा बाहर की ओर तना हुआ हो और दोनों हथेलियाँ नितम्ब के अगल बगल आसन पर रहें  |
२- अब दायीं टांग को मोडकर बायीं जांघ से इस प्रकार मिलाएं कि एडी गुदा के साथ सट जाये और दायाँ घुटना जमीन को स्पर्श करता रहे |
३   -धीरे- धीरे श्वास भरते हुए अपने दोनों हाथों को ऊपर उठायें तथा भुजाओं सहित शरीर को ऊपर क़ी ओर बलपूर्वक  खींचे |
४- अब श्वास छोड़ते हुए सामने क़ी ओर कानों के साथ बाज़ू को सटाते हुए आगे क़ी ओर धीरे -धीरे  झुकते जाएँ किन्तु इतना ध्यान रहे क़ि दोनों बाजू पंजे से आगे निकल जाये /अब  माथा घुटने से लगाकर एडी को दोनों हाथों से पकड़ लें |
५-दोनों कोहनियों को जमीन से स्पर्श कराते हुए कुछ देर  तक बाह्य कुम्भक क़ी स्थिति में रुकें |
६- अधिक देर तक रुकने के लिए श्वासों को सामान्य करना  पड़ेगा |
७- अब यथास्थिति में वापस आने के लिए अपने हाथों को पैरों के आगे ले जाएँ और श्वास भरते हुए बाजुओं को दोनों कानों से सटाकर ऊपर क़ी ओर तानें किन्तु  इतना ध्यान रहे क़ि दोनों घुटने यथास्थान ही रहने चाहिए अर्थात वे आसन से ऊपर नहीं उठने चाहिए |  
८- अब श्वास छोड़ते हुए हाथों को दायें बाएं से वापस ले आयें |
९- अब क्रमशः उपरोक्त क्रिया को बायीं टांग से करते हुए दूसरे चरण को पूर्ण करें |
१०  -उपरोक्त क्रियाओं   के दौरान ध्यान स्वाधिष्ठान चक्र पर केन्द्रित होना चाहिए |
परिणाम :- 
१- इस आसन से कमर की मांसपेशियों को अतिरिक्त शक्ति प्राप्त होती है |
 २- यह आसन  यौन रोग दूर करने में सहायक माना जाता है |
३- जांघों और पैरों की मांसपेशियों को सशक्त एवं बलशाली बनाता है |
४- पेट की चर्बी घटाकर कमर को पतली करने में यह आसन सहायक होता है |
५- रीढ़ ,कंधे और गर्दन के दर्द एवं तनाव को दूर करता है और उसे लचीला भी बनाता है |
सावधानियां :-
  १- इस आसन को करते समय यदि शरीर की मांसपेशियों में अनावश्यक तनाव या खिंचाव महशूस हो तो इसे न करें /
 २- आगे झुकते समय यह ध्यान रहे कि  माथे को घुटने से स्पर्श करना है न कि घुटने को माथे से अर्थात 
घुटना उठाकर माथे से स्पर्श न कराएं /
३-स्पेंडलाएटिक्स  के मरीज इस आसन को कदापि न करें /

Sunday 4 December 2011

हलासन

हलासन कठिन आसनों की श्रृंखला में अत्यंत लाभकारी आसन माना जाता है | यह आसन भी खाली पेट करने की सलाह  दी जाती है | इस आसन में हल जैसी आकृति बनाई जाती है ,इसीलिए इसे हलासन की संज्ञा दी गयी है | हलासन शरीर के फैलाव की एक विकसित मुद्रा है जिसे अभ्यास से आसानी से किया जा सकता है |
विधि :---
१-   आसन पर पीठ के बल लेट जाएँ तथा दोनों हाथों को अगल बगल हथेली नीचे करते हुए रख लें |
२- दोनों आँखें बंद कर लें और सामान्य रूप से श्वास लेते रहें |
३- अपनी हथेलियों से आसन पर थोडा  दबाव दें |
४-  अब अपने दोनों पैरों को एक साथ मिलाते हुए धीरे धीरे उन्हें ऊपर की ओर उठायें और सिर तक ले आयें ताकि  नब्बे अंश का कोण बन सके |
५- अपने घुटनों को कड़ा रखें ,हथेलियों से जमीन को दबाते हुए अपने दोनों पैरों को सिर के पीछे ले जाएँ और उन्हें जमीन से स्पर्श कराएँ |
६- यथासम्भव इस स्थिति में रुके रहें  और सामान्य श्वास लेते रहें  |
७- अपने दोनों हाथों को इस प्रकार रखें कि उनसे पीठ को सहारा मिलता रहे |
८- -हाथों की  स्थिति इस प्रकार  रहे कि वे अंगूठों को स्पर्श करते रहें |
९- इस मुद्रा के समापन में अपने पैरों को घुटनों पर झुका दें और घुटनों को यथासम्भव सिर के पास ले आयें |
१०-अब गर्दन को थोडा टेढ़ी कर लें ताकि सिर का पिछला भाग और पीठ का ऊपरी हिस्सा जमीन पर रख सकें | 
११- धीरे धीरे पैरों को आसन पर वापस ले आयें और पूर्ण विश्राम करें |
१२- सभी मांसपेशियों को ढीला कर दें और शवासन में आराम करें |
सावधानी :---
 १- हलासन में ध्यान मणिपुर चक्र पर केन्द्रित होना चाहिए |
२- इस आसन में सामर्थ्य के अनुकूल ही दबाव दें |
३- यथासम्भव  ही पैरों को पीछे की ओर  ले जाएँ और चरम स्थिति में उतनी ही देर रहें जितना सम्भव हो सके |
४- पीछे जाते समय अपने पैरों को बिलकुल सीधा रखें और घुटनों को झुकाएं नहीं |
५- इस आसन की प्रत्येक क्रिया को अत्यंत धीरे धीरे और सावधानीपूर्वक करें |
६- यदि जोड़ों की कटोरी खिसक गयी हो अथवा कमर व गर्दन में दर्द हो ,तो इस आसन को ना करें |
परिणाम :-----
१- हलासन से मधुमेह पर पूर्ण नियंत्रण किया जा सकता है |
२- यह आसन पाचन  रस की थैली को शक्ति प्रदान करता है |
३- शरीर से अकडन व तनाव को दूर करता है |
४- पेट ,पीठ और गर्दन की मालिश कर उनमें शक्ति का संचार करता है |
५- यह आसन पैरों ,जांघों,नितम्बों एवं पेट का वजन घटाता है |  
 ६- हलासन  से मेरुदंड  काफी लचीला बन जाता है |


 

सिंहासन

सिंहासन का तात्पर्य सिंह की तरह दहाड़ लगाने से है |यह आसन सरल आसनों की श्रृंखला में माना जाता है |
विधि :----
१- वज्रासन की मुद्रा में आसन पर बैठ जाएँ |
२- अपने दोनों हाथों को दोनों घुटनों के बीच में करते हुए हथेलियों को अगल बगल आसन पर  इस प्रकार रख लें कि पृष्ठ भाग आगे एवं अंगुलियाँ अपनी ओर रहें |
३- अपने शरीर को थोडा आगे की ओर झुका लें |
४- दोनों आँखें खोले  रखें तथा भूमध्य भाग को देखें और सिर को थोडा पीछे की ओर झुकाएं |
५- अपने मुहं को खोलकर यथाशक्ति जीभ को बाहर निकाल लें |
६ - अपनी अँगुलियों को फैलाकर रखें ताकि चेहरे की मांसपेशियों पर पर्याप्त तनाव पड़े   |
७- अब गले  से दहाड़ने की आवाज निकालें |
८- अपने चेहरे  को शेर की आकृति के रूप में देखें |
९- इस स्थिति में १० -१५ सेकेण्ड तक आवाज निकालते रहें |
१०- तत्पश्चात जीभ को अंदर लेते हुए मुंह को बंद कर लें और  नेत्रों को विश्राम दें |
११- वज्रासन की मुद्रा में पुनः बैठकर आराम करें और इस क्रिया को चार पांच बार दुहरायें |
परिणाम :----
१- इस आसन से गला ,गर्दन और चेहरे की मांसपेशियों से अनावश्यक तनाव दूर हो जाता है |
२- चेहरे पर फुंसी या झुर्री की रोकथाम करता है |
३- हकलापन और तुतलाहट जैसे रोगों को दूर करता है |
४- मुंह ,कान ,गला और नाक की बीमारियों को दूर करता है |
५- यह आसन चेहरे को आकर्षक व सुंदर बनाता है |

कमर चक्र आसन

कमर चक्र आसन सरल आसनों की श्रृंखला का एक महत्वपूर्ण आसन है |प्रातः काल अथवा शाम को कभी भी खाली पेट अथवा भोजन  के ६ घंटे बाद इसे किया जा सकता है |
विधि :--
१- आसन पर बैठ जाएँ एवं दोनों पैरों  को आगे अधिक से अधिक दूरी बनाते हुए फैला लें अर्थात दोनों एडियों में अधिक से अधिक दूरी बनी रहे  |
२-एक लम्बी गहरी श्वास लें और दाहिने हाथ को पीछे से घुमाकर श्वास निकालते हुए आगे  बायीं ओर झुकें और  बाएं पैर के अंगूठे को पकड़ने का प्रयास करते हुए  नाक माथा घुटने से लगा दें | इस दौरान  पैर बिलकुल सीधा रहना चाहिए तथा आसन से चिपका होना चाहिए |
३- श्वास को बाहर रोकते हुए कुछ देर तक रुकें और फिर श्वास लेते हुए वापस हो लें |
४- अब बाएं हाथ को पीछे से घुमाकर  श्वास निकालते हुए आगे दाहिनी ओर झुकें और दाहिने अंगूठे को पकड़ने का प्रयास करते हुए नाक माथा घुटने से लगा दें |
५- श्वास को यथाशक्ति बाहर रोकें ,तत्पश्चात श्वास भरते हुए वापस हो लें |
६- इस दौरान दोनों पैरों की एडियाँ यथास्थान ही रहेंगी और पैर आसन से चिपके रहेंगे |
७- इस क्रिया को क्रमशः चार पांच बार दुहराए |
सावधानी :---
इस आसन को करते समय यदि किसी अंग विशेष में दर्द अथवा तनाव महशूस हो तो इसे कदापि ना करें | इस आसन के दौरान आँखें बंद रखें |यदि आगे झुकते समय नाक माथा घुटने तक न पहुंचे तो जहां तक आसानी से पहुँच सके वहीं तक ले जाएँ ,अनावश्यक दबाव न दें | इस क्रिया के दौरान हाथ और पैर दोनों मुड़ने नहीं चाहिए | गर्भवती महिलाएं इस आसन को  कदापि न करें | इस आसन के दौरान विशेष ध्यान इस बात पर देना है कि आगे झुकते समय श्वास क्रमशः निकालते रहना और उठते समय श्वास भरते हुए उठना चाहिए / 
परिणाम :-----
१- कमर चक्र आसन से कमर और रीढ़ दोनों की मालिश हो जाती है |
२- पेट की अनावश्यक चर्बी को समाप्त करने में यह आसन विशेष रूप से लाभकारी माना जाता है |
३- यह आसन आँतों की कार्य- प्रणाली में सुधार लाता है |
४- इस आसन के करने से कमर एवं रीढ़ का दर्द स्वमेव दूर हो जाता है |
५- यह आसन शरीर को सुडौल एवं आकर्षक भी बनाता है |

Saturday 3 December 2011

शशांक आसन

शशांक आसन जैसाकि इसके नाम से ही ध्वनित होता है जिसका तात्पर्य खरगोश की  तरह आकृति बनाकर अपने  शरीर को समेटने से है | यह आसन सरल आसनों की श्रृंखला में माना जाता है | इस आसन को प्रातः अथवा सायंकाल कभी भी खाली पेट करना चाहिए |
विधि :-----
१- सर्वप्रथम आसन पर वज्रासन की मुद्रा में बैठ जाएँ |
२- अपनी दोनों हथेलिओं को घुटनों पर रखिये |
३- गहरी श्वास लेते हुए दोनों भुजाओं को माथा के ऊपर उठाइए | दोनों हाथ समानांतर और हाथों की अंगुलिया आपस में मिली होनी चाहिए |
४- अब श्वास निकालते हुए धीरे धीरे आगे की ओर झुकें किन्तु यह ध्यान रहे कि हाथ दोनों कान से सटे हुए एक साथ  ही आगे झुकेंगे |
५- माथा को आसन पर रखें और हथेलियों को जांघों के अगल बगल आसन पर  रखते हुए अपनी  सांसों को सामान्य कीजिये |
६- इस दौरान आँखों को बंद रखें और श्वास के आवागमन के स्पंदन को नाभि पर केन्द्रित करते हुए १ मिनट से ५ मिनट तक स्थिर रहें |
७- अब ऊपर उठते हुए लयबद्ध श्वास लें और भुजाओं को माथा के ऊपर ले जाएँ  और वज्रासन की मुद्रा में वापस आ जाएँ ||
८- सामान्य  श्वास लेते हुए हथेलियों  को दोनों घुटनों पर रखकर विश्राम करें और आँखों को खोल दें |
परिणाम :----
१- कब्ज को  दूर करने में यह आसन सहायक माना जाता है |
२- एड्रिनल ग्रन्थि के कार्य को सरल एवं सक्रिय करता है |
३- क्रोध एवं मोह के अवसाद से छुटकारा दिलाता है |
४- इस आसन के नियमित  अभ्यास से शिशुओं का विस्तर पर पेशाब करना बंद हो जाता है |
५- इस आसन को नियमित रूप से  करने से चेहरे पर कान्ति बढ़ जाती है और झुर्री एवं सिकुडन    बिलकुल  खत्म हो जाती है |
६- यह आसन साईटिका दर्द को कम कर देता है  |
७- इस आसन से काम विकार  धीरे धीरे समाप्त हो जाते हैं |
८- यह आसन गुदा द्वार और कूल्हे  के बीच की मांसपेशियों को सशक्त बना देता है |
९- दमा एवं सर्दी को दूर करने में यह आसन सहायक होता है |
१० - मूलाधार चक्र को जागृत करने में इस आसन का विशेष  योगदान होता है |

भुजंगासन

भुजंगासन में भुजंग की तरह आकृति बनाई जाती है ;इसीलिए इस आसन को भुजंगासन  की संज्ञा दी जाती है |
यह आसन प्रातः काल खाली पेट अथवा शाम को भोजन के पूर्व कर सकतें हैं | 
विधि :-----
१- पेट के बल आसन पर लेट जाएँ किन्तु यह ध्यान रखें कि पैरों की उंगलिया फैली रहें और आपस में सटी हों और हाथ जमीन पर दोनों कंधों के अगल बगल रहें |
२- अब अपने सिर को धीरे धीरे ऊपर की ओर उठायें और ठुड्डी को जमीन पर विश्राम करने दें |
३- दोनों हथेलियों को  आसन पर इस प्रकार रखें क़ि उनका पृष्ठ भाग जमीन को स्पर्श करे |  
४- श्वास को खींचते हुए अपने सिर और छाती को ऊपर की ओर  इस प्रकार उठायें क़ि नाभि आसन को स्पर्श करती रहे और नाभि से ऊपर का भाग ऊपर उठ जाये |
५- अब अपनी गर्दन और पीठ को टेढ़ी कीजिये | दोनों भुजाओं को शरीर के दोनों ओर फैला दें किन्तु यह ध्यान रहे क़ि कुहनियाँ  कम से कम झुकें |
६- अपने शरीर का सम्पूर्ण भार अपनी भुजाओं पर डालें |
७- अपने शरीर का संतुलन दोनों हथेलिओं ,जांघों और पैरों की अंगुलिओं पर करें |
८- पूरी श्वास को निर्धारित  समय तक रोकें और क्रमशः इसे बढ़ाएं |
९- नासिका से श्वास छोड़ते हुए धीरे धीरे पूर्व स्थिति को प्राप्त करें |
१०- अपने गालोँ को जमीन /आसन पर रखें और शरीर को विश्राम दें |
११- थोड़ी देर बाद इस क्रिया को दो तीन बार करें |
स्मरणीय बिदु :----
राज यक्ष्मा ,तनाव ,हार्निया और पेप्टिक अल्सर से पीड़ित व्यक्ति इस आसन को ना करें | पेट पाचन सम्बन्धी थैली ,गुर्दा एवं तिल्ली को विकसित करने  के लिए यह सर्वोत्तम आसन है | इस आसन के दौरान ध्यान विशुद्धि चक्र पर रखें  और ऊपर उठते समय श्वास खींचें और नीचे आते समय श्वास छोड़ें | नीचे आते समय शरीर को अचानक न गिराएँ बल्कि धीरे धीरे गिराएँ | इस आसन के दौरान ठुड्डी जमीन को  स्पर्श करे और हथेलियों का पिछला भाग जमीन को स्पर्श करे तथा भुजाएं जांघों के पास आ जाएँ |
परिणाम :----
१- यह आसन भूख जगाता है और पेट के  मोटापा या चर्बी को कम करता है |
२- यह आसन महिलाओं के गर्भाशय को शक्ति प्रदान करता है तथा मासिक धर्म को नियमित करता है  |
३- महिलाओं के श्वेत प्रदर के निवारण में यह  सहायक माना जाता है |
४- गुर्दा और पाचन रस की थैली को शक्ति प्रदान करता है |
५- यह आसन मधुमेह रोगियों के लिए विशेष लाभकारी है |
६- यह मांस पेशिओं  के कड़ापन को दूर करता है और गर्दन के  दर्द को भी दूर  करता है |
७- भुजंगासन मेरुदंड को लचीला बनाता है तथा स्नायुओं और मेरुदंड के रक्त कोष को सक्रिय करता है |
८- अधिक कार्य करने के बाद अभ्यास करने से पुट्ठा ,गर्दन, पीठ और कमर की थकान कम हो जाती है |
९-यह  गर्दन और रीढ़ की हड्डियों का दर्द और तनाव दूर करता है |


उत्तानपाद आसन

उत्तानपाद आसन बहुत ही लाभकारी आसन है | उत्तान का अर्थ तना हुआ एवं पाद का अर्थ पैर होता है |इस आसन में  पैरो को ऊपर की और उठाया जाता है |
विधि :-------
१- आसन पर बैठकर दोनों पैरो को आगे फैला दें एवं घुटनों  को  आगे की और तानें |
२- दो चार बार गहरी साँस लें और फिर  पीठ के बल आसन पर लेट जाएँ |
३- अब श्वास छोड़ें ,जमीन से पीठ को ऊपर उठायें और  गर्दन को तानें |
४- अब जमीन पर कपाल छूने तक सिर को पीछे ले जाएँ | यदि जमीन पर कपाल टिकाने में कठिनाई हो तो हाथों को सिर के बगल ले आयें ,गर्दन उठायें और पृष्ठ प्रदेश तथा कटि प्रदेश  के पिछले भाग को जमीन से ऊपर उठाते हुए सिर को यथासम्भव पीछे खींचें | 
५- अब बाँहों को बगल में टिका लें और दो चार बार गहरी साँसे लें |
६- पीठ को तानें तथा एक उच्छ्वसन के साथ जमीन से ४५ से ५० अंश ऊपर तक टाँगें उठायें | भुजाओं को भी थोडा ऊपर उठायें ,हथेलिओं को मिलाएं और उन्हें टांगों के समानांतर रखें |
७- इस दौरान भुजाएं और टाँगें कड़ी रखी जानी चाहिए तथा कुहनी या घुटनों पर झुकें नहीं | जांघें ,घुटने ,टखने और पैर एक साथ सटे होने चाहिए |
८-पसलियों को पूरी तरह फैलाएं और आधे मिनट तक इस स्थिति में स्वाभाविक श्वास क्रिया के साथ रहें | शरीर का संतुलन सिर के कपाल एवं नितम्ब पर होना चाहिए |
९- अब श्वास को छोड़ें ,जमीन की ओर टांगों और बाँहों को नीचे करें ,गर्दन को सीधा रखें ,सिर की पकड़ छोड़ दें ,धड को नीचा करें और जमीन पर पीठ के बल लेट कर आराम करें |
परिणाम :__
१- यह आसन वक्षस्थल  का पूर्ण विकास करता है और मेरुदंड के पृष्ठ भाग को लचीला और स्वस्थ रखता है |
२- गर्दन और पीठ के दर्द को दूर करता है और शुद्ध एवं स्वस्थ रक्त की पूर्ति सुनिश्चित करता है |
३- यह आसन कंठ ग्रन्थियों  के कार्य को नियमित करता है |
४- इस आसन से उदर की मांसपेशियां फैलती हैं और मजबूत भी होती हैं |
५- इस आसन से जठराग्नि  तेज होती है और भूख अधिक लगती है | 

अर्ध मत्स्येन्द्र आसन

अर्ध मत्स्येन्द्र आसन कठिन आसनों की श्रृंखला  का एक महत्वपूर्ण आसन है | यह आसन खाली पेट करना चाहिए क्योंकि इस आसन से पेट की समस्त मांसपेशियों की मालिश हो जाती है |
विधि :------
१- आसन पर अपने दोनों पैरों को फैलाकर बैठ जाएँ |
२- दाहिने पैर को घुटने से मोड़ते हुए दाहिनी एडी को गुदा के पास रखें और इसे उस स्थान से हटने न दें |
३- अब बाएं पैर को मोडकर दाहिने घुटने के बाहर पंजे को आसन पर रखें | दोनों हाथों से बाएं घुटने को अपनी ओर खींचें एवं नासिका को घुटने से स्पर्श कराने का प्रयास  करें | इस दौरान शरीर को बिलकुल ढीला रखें |
४- दाहिने हाथ से बाएं पैर के घुटने को दबाते हुए बाएं पैर के अंगूठे  या पंजे को पकड़ें तथा अपनी गर्दन को बायीं और मोड़ते हुए ठुड्डी को बाएं कंधे से  स्पर्श कराएँ | इस दौरान अपना मुहं और गर्दन को बायीं ऑर ही रखें  तथा अंगूठे को पकड़ लें |
५- शरीर बाये घुमाएँ बायीं भुजा पीछे करें और बाएं कंधे को देखने का प्रयास करें |
६- इस मुद्रा में ५ से १५ सेकेण्ड तक रहें ,श्वास की गति को सामान्य करें |
७- इस दौरान पीठ बिलकुल सीधी रहनी चाहिए और दायें बाएं और झुके नहीं |
८- अब अंगूठे को छोड़ते हुए दोनों पैर फैलाकर अपनी स्वाभाविक स्थिति में आ जाएँ |
९- थोडा विश्राम करने के बाद बाएं पैर को मोड़ते हुए बायीं एडी गुदा के पास रखें और उपरोक्त  समस्त क्रियाए क्रमशः पुनः  करते हुए बाएं पैर के अंगूठे को पकडकर गर्दन बायीं ऑर झुकाएं  एवं बाएं कंधे को देखने का प्रयास करें |
सावधानी :---
 इस आसन की चरम स्थिति के समय ५ सेकेण्ड से शुरू करें और प्रतिदिन १-२ सेकेण्ड जोड़ते हुए इस अवधि को बढ़ाते रहें | हलासन और पश्चिमोत्तान आसन में मेरुदंड को आगे झुकाते हैं तथा भुजंग ,शलभ और धनुरासन में मेरुदंड पीछे झुकता है | इस आसन में मेरुदंड को क्रमशः दोनों ऑर मोड़ा जाता है और झुकाया भी जाता है | इस क्रिया से मेरुदंड में लचीलापन अधिक आता है | इस आसन की चरम स्थिति पर ध्यान आज्ञा चक्र पर केन्द्रित करना चाहिए |
परिणाम :------
१- सम्पूर्ण मेरुदंड के तनाव में अविलम्ब राहत पहुँचाता है क्योंकि यह रीढ़ को दोनों ऑर ऐंठता है |
२- रीढ़ स्नायुओं को शक्ति प्रदान करता है और महिलाओं को ल्यूकोरिया की बीमारी से बचाता है |
३- यह मेरुदंड को लचीला बनाता है ,कमजोर गुर्दों को शक्ति प्रदान करता है एवं पेशाब की थैली की मांसपेशियों को ढीला करता है |
४- इससे पेट की आँतों की स्वाभाविक रूप से मालिश हो जाती है |
५- इस आसन से हारमोंस भी नियंत्रित हो जाते हैं |
६- कब्जियत को ठीक करता है तथा पैरों और भुजाओं की मांसपेशियों  का फैलाव करता है एवं उनके दर्द में राहत पहुँचाता है |
७- यह जठराग्नि तेज करता है ,भूख को जगाता है और पेट के समस्त कीड़ों को नष्ट कर देता है |
८- यह आसन पीठ एवं गर्दन के दर्द दूर करने में सहायक होता है |
९- यह आसन मधुमेह के रोगियों के लिए लाभकारी माना जाता है |

Sunday 27 November 2011

उष्ट्रासन

उष्ट्रासन में ऊंट  की आकृति बनाई जाती है | इसी कारण इस उष्ट्रासन कहा जाता है | इसकी गणना कठिन आसनों में की जाती है फिर भी निरंतर अभ्यास से धीरे धीरे यह सहज हो जाता है |
विधि :----
१- अपनी जांघों एवं पैरों को एक साथ कर पैरों की उँगलियों को पीछे की ओर जमीन पर रखते हुए जमीन पर घुटने टेक कर बैठ जाएँ |
२-  अब घुटनों के बल खड़े हो जाएँ अपनी दोनों हाथ कमर पर रखकर दोनों अंगूठों से रीढ़ को दबाते हुए रीढ़ को पीछे की ओर झुकाएं एवं पसलियों को तानें |
३- अब श्वास पूरी तरह से बाहर निकल दें और दाहिनी हथेली दाहिनी एडी पर व बायीं हथेली बायीं एडी पर रखें |
४- अब हथेलियों से पैरों को दबाएँ और सिर को पीठ के पीछे ले जाएँ |
५- स्वाभाविक साँस के साथ इस स्थिति में लगभग आधे मिनट से एक मिनट तक रहें | बिना किसी दबाव के शरीर को स्थिर रखें और धीरे धीरे श्वास लेते रहें और छोड़ते रहें |
६- अब हाथों को एक एक करके हटायें और वज्रासन में बैठ जाएँ एवं थोडा रुककर सुखासन अथवा सामान्य आसन में बैठ कर विश्राम करें |
७- जंघों पर कोई दबाव न दें और यह आसन मंद गति से दो चार बार करें |
परिणाम :---
१- उष्ट्रासन से पेट का सम्पूर्ण व्यायाम होता है और कब्जियत भी दूर होती है |
२- पैनक्रियाज ,यकृत ,गुर्दा ,आँतों की बीमारियाँ इस आसन से दूर हो जाती हैं तथा नासूर एवं बवासीर रोगियों को भी राहत पहुंचाता है |
३- यह आसन अशक्त कंधों और कुबड़े व्यक्तियों के लिए विशेष लाभकारी है |
४- यह पीठ के दर्द में आराम पहुंचाता है और पीठ की रक्त वाहिनी नलिकाओं को क्षमता प्रदान करता है |
५- इस आसन से मांसपेशियों में लचीलापन आता है |
६- महिलाओं के मानसिक एवं जनेन्द्रिय सम्बन्धी समस्त रोगों को दूर करता है |
७- गर्भाशय को सुदृढ़ कर गर्भ धारण की शक्ति को बढ़ाता है और प्रदर रोग दूर करता है |
८- यह आसन मधुमेह रोगियों के लिए विशेष लाभदायक माना गया है तथा मूत्र सम्बन्धी रोगों की रोकथाम करता है |
९- शरीर के सभी ग्रन्थियों और नाड़ियों पर सकारात्मक प्रभाव डालता है |
१०- चूंकि इस आसन में रीढ़ को पीछे की ओर खींचा जाता है अतः बूढ़े यहाँ तक कि जिन व्यक्तियों को रीढ़ सम्बन्धी कोई रोग है वे भी इसे सावधानीपूर्वक कर सकते हैं | 
सावधानी :---
१- -जितनी देर तक बिना किसी दबाव के इस मुद्रा में रह सकें उतनी देर ही इसे करें |
२- यदि इस आसन के दौरान किसी अंग विशेष में दर्द या खिंचाव महशूस हो तो वापस वज्रासन में बैठ जाएँ |
 ३- यह आसन सुबह और शाम किसी भी समय खाली पेट किया जा सकता है |
४- जो महिलाएं तीन मास से अधिक समय से गर्भवती हों वे यह आसन ना करें |
५- हृदय रोग व उच्च रक्त चाप के रोगी भी इसे ना करें |

पश्चिमोत्तान आसन

पश्चिमोत्तान आसन एक सरल व अत्यंत लाभकारी आसन है |
विधि :---
-१- आसन पर बैठ जाएँ और अपने दोनों पैरों को इस प्रकार सीधे फैला दें कि दोनों पैर आपस में मिले रहें |
२- अब अपनी हथेलियों को जांघों पर शिथिलता पूर्वक रखें व शरीर को सीधा कर लें |
३- श्वास लेते हुए दोनों भुजाओं को एक साथ ऊपर उठते हुए माथे तक ले आयें और भुजाओं को कान से सटा दें |
४- अब श्वास को छोड़ते हुए धीरे धीरे कमर से ऊपरी भाग को आगे की ओर झुकाइए |
५- अपने हाथों से दोनों पैरों के अंगूठों को एक साथ पकड़ने का प्रयास कीजिये |
६- कपाल से दोनों घुटनों को स्पर्श करने की कोशिश कीजिये किन्तु यह ध्यान रहे कि दोनों घुटने मुड़ने न पायें |
७- अब बाह्य कुम्भक में ५-१० सेकेण्ड रुकें | इस दौरान पीठ की मांसपेशियों पर ध्यान केन्द्रित करें |
८- अब श्वास लेते हुए पुनः हाथों को ऊपर की ओर  सिर तक उठायें और फिर अगल बगल से हाथों को घुमाते     हुए उन्हें जंघाओं पर लाकर रख दें |  
९-  यथासंभव इस क्रिया को तीन चार बार करें |
परिणाम :----
-  इस आसन के करने से पेट की चर्बी कम होती है तथा मोटापा और कब्जियत दूर होती है |
२- यह नितम्बों की मांसपेशियों को सबल एवं आकर्षक बनाता है | 
३- यह पेट की गैस को बाहर निकालकर बेचैनी को दूर करता है |
४- यह मेरुदंड को लचीला बनाता है तथा पीठ दर्द को दूर करता है |
५- मधुमेह रोगियों के लिए यह रामबाण माना जाता है |
६- यह आसन महिलाओं के प्रजनन अंगों के विभिन्न रोगों की रोकथाम करता है |
७- इस आसन के निरंतर अभ्यास से मस्तिष्क का तनाव सहजता से दूर हो जाता है |

सर्वांगासन

सर्वांगासन जैसाकि इसके नाम से ही ध्वनित है शरीर के सम्पूर्ण अंगों का आसन |पृथ्वी की आकर्षण शक्ति का प्रभाव आपके शरीर पर सदैव बनाये रखता है क्योंकि इस आसन के दौरान कई महत्वपूर्ण अंगों और ग्रन्थियों पर भार पड़ने से रक्त का प्रवाह विपरीत दिशा में होने लगता है | सर्वांगासन से शरीर के उन अंगों में रक्त संचार बढ़ जाता है जिनमें सामान्य स्थिति में रक्त संचार कम रहता है |
विधि :---
१- आसन पर पीठ के बल लेट जाएँ और अपने दोनों हाथों को कमर के दोनों तरफ और हथेलियों को नीचे की तरफ करके  आसन पर  उन्हें अगल बगल रखें |
२- दोनों हथेलियों से जमीन को दबाएँ और दोनों पैर एक साथ धीरे धीरे ऊपर की ओर उठायें ,घुटनों पर उन्हें मोड़ें और पीछे की ओर इस प्रकार झुकाएं कि ठुड्डी  छाती को स्पर्श करने लगे |
३- अपनी दोनों कुहनियों को जमीन पर टिकाकर हाथों से पीठ को ऊपर उठने में  सहारा दें |
४- अब धीरे धीरे एवं सावधानी से अपने शरीर को उल्टा खड़ा करें और उसे सीधा रखें |
५- इस दौरान  दोनों पंजे आपस में मिले हुए एवं पैरों की उंगलिया आसमान की ओर तनी रहें |
६- अपनी शरीर को इस प्रकार ऊपर की ओर उठायें कि सम्पूर्ण शरीर सिर के पिछले भाग ,गर्दन ,कंधों और कुहनियों पर आधारित हो जाएँ |
७ -अपने पृष्ठ भाग को सीधा करें ताकि ठुड्डी छाती को स्पर्श करने लगे |
८- यथासम्भव रुकने के बाद शरीर को जमीन पर लाने के पहले  सर्वप्रथम पैरों को घुटने से मोड़ें एवं घुटने नीचे करें और उन्हें यथासम्भव सिर के निकट ले आयें |
९- अंततः अपने दोनों हाथों को जमीन पर रखें और उन पर अपने को इस प्रकार आधारित करें कि सिर पर शरीर का पिछला भाग अर्थात पीठ जमीन पर आ जाये |
१०- जब आपकी पीठ का निचला भाग जमीन पर हो तब पैरों को आकाश की ओर कीजिये और धीरे धीरे उन्हें जमीन पर ले आइये |
११-अब आप मानसिक दृष्टि से शरीर की मांसपेशियों को तनावरहित और ढीली कर दें एवं दो- तीन मिनट तक शवासन में लेट जाएँ |
सावधानी :---
१- उक्त रक्त चाप ,हृदयरोग एवं गर्दन कि पीड़ा में यह आसन कदापि न करें |
२- इस आसन में पैर उठने के पूर्व सिर और कुहनियों कि स्थिति को भलीभांति ठीक कर लें |
३- पैरों को सदैव धीरे धीरे ही उठायें व नीचे लायें | इससे पेट की मांसपेशियों को ठीक रखने में मदद मिलती है |
४- सम्पूर्ण गतिविधियाँ नियंत्रण,गम्भीरता और संतुलन के साथ पूरी की जाएँ तथा ध्यान विशुद्धि चक्र पर रहे|
परिणाम :------
१- योग का अतिउत्तम सिद्धांत है कि विपरीतिकरन द्व्रारा शरीर को विश्राम दिया जाये एवं रक्त संचार अच्छी प्रकार से हो |
२- यह आसन गले की ग्रन्थियों को प्रभावित कर वजन नियंत्रित करने में सहायक होता है तथा आँखों एवं मस्तिष्क की शक्ति विकसित करता है |
३- यह दमा ,धडकन ,श्वस्नोदाह एवं सिर दर्द में राहत देता है और स्वर को मुखरित करता है |
४- यह आसन पाचन क्रिया शुद्ध करता है तथा श्वास और यौन ग्रन्थियों को सक्रिय और विकसित करता है |
५- हर्निया की रोकथाम करके पैरों और अन्य तनाव पूर्ण अंगों को आराम देता है |
६- यह आसन मेरुदंड एवं स्नायुओं की जड़ों में पर्याप्त रक्त का संचालन करता है तथा मानसिक शक्ति प्रज्ज्वलित कर कुंडलिनी शक्ति जागृत करने में सहायक होता है |
७- यह मेरुदंड को अत्यधिक लचीला बना देता है और यकृत की कार्य प्रणाली में सुधार लाता है |
८- यह आसन स्वप्नदोष -निरोधक एवं ब्रह्मचर्य पालन में सहायक माना जाता है |
९- शरीर में रक्त की वृद्धि कर यह रक्त शोधक का कार्य भी करता है 
१०- यह आसन अनेक महत्वपूर्ण अंगों और ग्रन्थियों को उनकी पूर्व स्थिति में लाने में सहायक होता है |
११-इस आसन से सुस्ती दूर हो जाती है और यह हारमोंस को संतुलित भी करता है |

Saturday 26 November 2011

पवनमुक्त आसन

पवनमुक्त आसन सामान्य आसनों की श्रृंखला में एक महत्वपूर्ण आसन है | यह आसन पेट के अंदर की गैस को बाहर निकालने में बहुत प्रभावशाली  है | कब्जियत एवं अपच की शिकायत को तत्काल दूर कर मन और शरीर को हल्का बना देता है | इस आसन को करने के पूर्व शवासन अवश्य कर लेना चाहिए क्योंकि इससे शरीर और मन दोनों शांत एवं शिथिल हो जाते हैं | इसे गैस मुक्त आसन भी कहा जाता है |
विधि :----
१- आसन पर पीठ के बल लेट जाएँ और दोनों पैरों को सीधे फैलाते हुए आपस में मिला लें | अपने  दोनों हथेंलियों को नितम्ब के आस पास रखें |
२- अब बाएं पैर को मोड़ें तथा दोनों हाथों से घुटने को पकडकर श्वास छोड़ते हुए अपनी ओर इस प्रकार  खींचें कि पेट पर दबाव के साथ घुटना नासिका को स्पर्श करे |
३- यथाशक्ति पेट और फेफड़े में भरी हवा को बाहर निकाल दें तथा श्वास को बाहर  रोक कर कुछ देर तक रुकें |एक गहरी श्वास भरें /
४- अब धीरे धीरे घुटने को छोड़ते हुए श्वास छोड़ें और  बाएं पैर को आसन पर सीधा  फैला लें |
५- थोडा विश्राम करने के पश्चात अब दायें पैर को मोड़ें और श्वास छोड़ते हुए घुटने से पेट को दबाएँ एवं घुटने  को  नासिका से  स्पर्श कराएँ /
६ - यथाशक्ति पेट और फेफड़े में भरी हवा को बाहर निकाल दें तथा श्वास को बाहर  रोक कर कुछ देर तक रुकें फिर एक गहरी श्वास भरें /
७- अब धीरे धीरे घुटने को छोड़ते हुए श्वास छोड़ें  और दाएं पैर को आसन पर सीधा  फैला लें |
८ -- अब दोनों पैरों को एक साथ मोड़ें और घुटनों को दोनों हाथों  से पकडकर श्वास छोड़ते हुए  अपनी ओर खींचते हुए पेट को दबाएँ तथा नासिका को दोनों घुटनों के बीच में ले जाएँ  | श्वास को बाहर रोककर यथाशक्ति कुछ देर तक रुकें | फिर श्वास छोड़ते  हुए दोनों पैर एक साथ फैला कर शवासन में विश्राम करें |
९ -- दो चार बार श्वास लेकर श्वास की गति को सामान्य रूप में स्थिर करें और इस क्रिया को दुहरायें | 
सावधानी :-----हृदय रोग से पीड़ित व्यक्ति को यह आसन नहीं करना चाहिए | इस आसन को करते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है :-
१- आसन के दौरान अचानक एवं तेजी से किसी अंग को न तो मोड़ें और न ही फैलाएं क्योंकि इससे जोड़ों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है |
२- इस आसन को करते समय अपनी दोनों आँखों को बंद रखें तथा मन की  आँखों से द्रष्टा बन कर इसे देखते अवश्य रहें |
३- आसन करते समय प्रसन्नचित्त होकर अन्तर्मुखी स्थिति में  अतिशय आनन्द का अनुभव करें |
परिणाम :----
१- पवनमुक्त आसन से आँतों की  भलीभांति मालिश  हो जाती है |
२- इसके नियमित अभ्यास से  वायु विकार और कब्जियत का निवारण होता है |
३- इसको करने से  पेट की  मांसपेशियां शक्तिशाली बन जाती हैं |
४- इस आसन से  दूषित गैस  बाहर निकल जाती है और  मन को शांति प्राप्त होती है  |
५-  यह आसन जोड़ों के दर्द एवं गठिया रोग को भी दूर कर  देता है |

Friday 25 November 2011

सुप्त वज्रासन

यह आसन वज्रासन मुद्रा  का  विस्तार अथवा  इसका सहयोगी आसन माना जाता है | सुप्त का अर्थ है लेटा हुआ |यद्यपि  यह एक कठिन आसन है जिसके लिए बहुत अभ्यास और सावधानी की आवश्यकता होती है फिर भी नियमित अभ्यास से यह कुछ ही दिनों में यह सरल लगने लगता है  |
विधि :---
१- वज्रासन की मुद्रा में आसन पर स्थिर होकर बैठ जाएँ |
२-अपने दोनों पंजों को थोडा फैलाते हुए आसन पर इस प्रकार बैठें कि दोनों एडियाँ नितम्ब को अगल बगल से स्पर्श करती रहें तथा दोनों घुटने आपस में मिले रहें  | अब  दोनों हाथों से अपने पंजे के पिछले  भाग  अर्थात  एडी को पकड़ लें | 
३- अब एक लम्बी गहरी श्वास भरें तत्पश्चात कमर के ऊपरी भाग को श्वास निकालते हुए धीरे धीरे पीछे की ओर धकेलते हुए पीठ और सिर को आसन पर रख दें | यदि इस क्रिया में कोई कठिनाई या दर्द महशूस हो तो क्रमशः पहले  दायें और फिर  बाएं हाथ की कुहनी को आसन पर टिकाते हुए पीठ के बल लेटने का प्रयास करें |यह ध्यान रहे कि पंजे का निचला भाग अर्थात तलवे नितम्ब  के ठीक नीचे आ जाएँ |
४- यथाशक्ति कुछ देर तक इस आसन /मुद्रा में स्थिर रहें तत्पश्चात धीरे धीरे श्वास क्रिया को जारी रखें |
५- इस दौरान दोनों घुटने थोडा फैले हुए होने चाहिए तथा  हाथों को अगल बगल में सीधे रखते हुए दोनों पैरों को पकड़े रखें |
६- यथासम्भव रुकने अथवा दो तीन मिनट बाद  धीरे धीरे श्वास भरते हुए सिर और पीठ को उठाते हुए वज्रासन की मुद्रा में बैठ जाएँ |
सावधानी :----
सुप्त वज्रासन की  मुद्रा में यदि किसी अंग विशेष में दर्द अथवा खिंचाव महशूस हो तो इस आसन को छोडकर आराम की मुद्रा अर्थात श्रमिक आसन में बैठ जाएँ | किसी अंग पर अनावश्यक दबाव न डालें तथा यथाशक्ति ही इस आसन में स्थिरता प्राप्त करें |स्थिरता की अवधि को धीरे धीरे बढ़ाया जा सकता है |
परिणाम :-------
१- स्पेंडलाइटिक्स के रोगी  के लिए यह आसन विशेष रूप से लाभदायक  माना जाता है |
२- इस आसन से जंघाएँ बलिष्ठ होती हैं तथा अनावश्यक चर्बी भी समाप्त हो जाती है |
३- पीठ कि हड्डियों में लचीलापन आता है तथा कमर दर्द से छुटकारा मिलता है |
४- मूत्राशय से सम्बन्धित विकारों /रोगों की यह आसन रोकथाम करता है |
५- यह आसन पाचन क्रिया को सुदृढ़ करता है तथा भूख  भी उत्पन्न करता है |

Sunday 20 November 2011

पद्मासन

पदम् का अर्थ कमल है | यह अत्यंत महत्वपूर्ण तथा उपयोगी आसनों में से एक ऐसा आसन है जिसमें कमल के समान शारीरिक स्थिति बनाई जाती है | यह आसन ध्यान के लिए विशेष रूप से प्रयुक्त होता है |
हठयोग प्रदीपिका के प्रथम अध्याय के ४८ वें श्लोक में कहा गया है "पद्मासन में बैठकर हथेलियों को एक दूसरे पर रखकर सीने पर चिबुक को मजबूती से स्थिर करें और ब्रह्म का चिंतन करते हुए गुदा को बार बार सिकोड़ें और अपान को ऊपर उठायें ;इसी प्रकार गले का संकुचन करते हुए प्राण को नीचे की ओर दबाएँ | इससे कुंडलिनी के द्वारा असामान्य ज्ञान प्राप्त होता है |"
विधि :-----कम्बल को चार पर्त करके  बिछा लें और उस पर अपनी टाँगें सीधी करके बैठ जाएँ |
१- घुटने  के पास दाहिनी टांग मोड़ें ,हाथों से दाहिना पैर पकड़ें और इसे बायीं जांघ के मूल में इस प्रकार स्पर्श कराएँ कि दाहिनी एडी नाभि के समीप आ जाये 
२- अब बाएं पैर को मोड़ें और हाथों से बायाँ पैर पकडकर दाहिनी जांघ के मूल में  इस प्रकार रखें कि बायीं एडी नाभि के समीप हो | पैरों की एडियाँ ऊपर की ओर मुड़ी होनी चाहिए |
३- बाएं हाथ को चिन्मय मुद्रा में बाएं पैर के घुटने पर रखें और दाहिने  हाथ को दाहिने घुटने पर रखें |
४- हाथों को घुटनों पर इस प्रकार रखें कि हथेलियाँ ऊपर रहें ,बीच की अंगुलियाँ जंघे के ऊपरी भाग को स्पर्श करें और अन्य तीन अंगुलियाँ आपस में मिली हुई सीधी रहें |
५- अब ध्यान की मुद्रा में आँखें बन्द करें और मेरुदंड को सीधा रखें | घुटनों एवं जंघाओं पर दबाव दिए बिना शरीर को यथासम्भव दृढ रखें | दोनों पैरों के ऊपर हथेलियों को एक दूसरे के ऊपर रखें |
६- अपनी नाभि पर श्वास प्रक्रिया का मानसिक निरीक्षण अथवा अवलोकन करते रहें |श्वास लेते समय 'सो 'एवं छोड़ते समय ' हं'का जप  करें |
७- इस मुद्रा में निर्विचार होकर दस मिनट तक स्थिर रहें और मेरुदंड को सीधा रखें |
८- दायीं जांघ पर बायाँ पैर और बायीं जांघ पर दाहिना पैर रखकर टांगों की स्थिति को आपस में बदल लें ताकि टांगों को समान रूप से शक्ति प्राप्त हो सके |
परिणाम :--१- पद्मासन में ध्यान और जप सुगमता से किया जाता है |मनन ,चितन और ध्यान के लिए यह सर्वाधिक उपयुक्त मुद्रा मानी जाती है |
२-इस आसन को एकांत में यदि विधिपूर्वक किया जाये तो इस मुद्रा में शरीर काफी देर तक स्थिर रह सकता है| 
३- केवल शारीरिक दृष्टिकोण से भी यह आसन घुटनों और नालियों की कठोरता दूर करने के लिए सर्वथा उपयुक्त है | यह आसन भूख जगाने में भी सहायक होता है |
४- इस आसन से जीवन शक्ति मूलाधार चक्र से सहस्रार चक्र में प्रविष्ट होती है |
५- पद्मासन से गुर्दा क्षेत्र में अधिक रक्त प्रवाहित होता है क्योंकि उस समय पैरों में रक्त संचार कम रहता है |
६- रक्तचाप एवं हृदयरोग में यह आसन बहुत लाभदायक माना जाता है |
७- इस आसन के निरंतर अभ्यास से आध्यात्मिक  विकास होता है |
सावधानियां :-- यह आसन सुबह अथवा शाम कभी भी खाली पेट अर्थात भोजन के ६ घंटे बाद करना चाहिए | यौगिक अभ्यास तथा प्राणायाम के बाद इसे करना चाहिए | भोजनोपरांत  तत्काल इस आसन को  न करें |चितन ,मनन और प्राणायाम के लिए यह आसन अत्यंत लाभदायक समझा जाता है | महिलाएं भी इस आसन में बैठ सकती हैं |कमजोर शरीर के व्यक्ति के लिए यह आसन सर्वथा अनुकूल है | धीरे धीरे समयावधि को बढ़ाते रहें |

शलभासन

शलभ का अर्थ टिड्डी होता है | टिड्डी जैसी आकृति बनाने के कारण इस आसन को शलभासन कहतें हैं |
विधि :---
१- पेट के बल आसन पर लेट जाएँ ,मुख नीचे की ओर और भुजाएं पीछे की ओर तनी होनी चाहिए |
२- सिर और टुद्दी को जमीन पर रखते हुए विश्राम करें |
३- अब दोनों हथेलियों को जंघाओं के नीचे ले जाएँ और धीरे धीरे श्वास छोड़ते हुए सिर ,सीना एवं टाँगें एक ही साथ जमीन से ऊपर उठायें | हथेलियाँ भी जंघाओं के साथ ऊपर उठनी चाहिए ,शरीर का केवल उदरीय  अग्रभाग ही जमीन पर टिका  होना चाहिए |
४- हाथों पर शरीर का भार न लें बल्कि पीठ की मांसपेशियों के ऊपरी भाग की कसरत के लिए उन्हें पीछे की ओर तानें |
५- स्वाभाविक रूप से साँस लेते हुए जितनी देर तक रुक सकें रुकें ,फिर धीरे धीरे पैर और सिर को नीचे लायें |
६- थोड़ी देर विश्राम करने के बाद अपने बाएं पैर का भार ठुड्डी पर देते हुए ठुड्डी और दोनों हथेलियों के सहारे अपने को संतुलित करें तथा यह स्थिति निर्धारित समय तक बनाये रखें और समय को  धीरे- धीरे बढ़ाये |
७- अब धीरे धीरे बायाँ पैर जमीन पर लायें और नाक से श्वास बाहर निकाल दें |
८ -अब दाहिने पैर से भी  यही क्रिया करें | इस क्रिया को दो- तीन बार दुहरायें |   
सावधानी :----
इस क्रिया के दौरान ध्यान विशुद्धि चक्र पर होना चाहिए |इस  आसन के समय हथेलियों का पृष्ठ भाग और भुजाएं जाघों के समीप रहें |अपने फेफड़ों को हवा से अंशतः भरें ताकि छाती थोड़ी चौड़ी हो जाये | इस आसन की अवधि में पैरों को यथासम्भव सीधा रखें | शलभासन हमेशा भुजंगासन  और गर्दन के व्यायाम के बाद ही किया जाता है |श्वास को अचानक या बहुत तेजी से न निकालें |अपना वजन अपनी बाँहों पर उस समय डालें जब आपके शरीर का निचला हिस्सा ऊपर जाता है |
परिणाम :---
१ - यह आसन पेट ,पैर और भुजा की उपेक्षित मांस पेशियों को सशक्त बनाकर अतिरिक्त शक्ति प्रदान करता है और नितम्बों को सुडौल बनाता है |
२- जांघों एवं नितम्बों का वजन घटाने में सहायक होता है |
३- यह आसन पाचन क्रिया को बढाता है और वायु विकार से छुटकारा दिलाता है |
३- रक्त संचार में सुधार करता है और सभी अंगों को शक्ति प्रदान करता है |
४- यह आसन भूख जगाता है और मधुमेह को नियंत्रित भी करता है |
५- महिलाओं के मासिक धर्म को नियंत्रित करता है तथा पेट के अंगों ,यकृत एवं गुर्दा को शक्ति प्रदान करता है |
६- ऐसे रोगियों जिन्हें पेशाब करने में दर्द हो या पेशाब कम मात्रा में होता हो उन्हें इससे विशेष लाभ मिलता है |
७- मेरुदंड को पीछे खीचने से उसमें लचीलापन आता है और कमर के दर्द दूर हो जाते हैं |
८- इस आसन से उन अंगों का भी विकास होता है जो वर्षों से उपेक्षित रहें हों |
९ -इस आसन से पेट की मांसपेशियां और ग्रन्थियां विशेष रूप से प्रभावित होती हैं |

Sunday 13 November 2011

ताड़ासन

ताड़ का अर्थ पर्वत एवं सम का अर्थ सरल ,सीधा एवं स्थिर होता है | अतः पहाड़ की तरह  निश्चल एवं सीधे  खड़े रहने की स्थिति को ताड़ासन कहतें हैं | यह शीर्षासन का विपरीत आसन है तथा शंख प्रक्षालन की प्राथमिक मुद्रा है |

विधि :--
१- आसन पर दोनों एडियों में ६ इंच की दूरी रखते हुए एडियों एवं अंगूठों को मिलाकर सीधे खड़े हो जाएँ | तलवों के अग्र भाग को जमीन पर टिकाकर समस्त अँगुलियों को तानें |
२- एडियों को उठाते हुए दोनों हाथों को सिर के ऊपर उठायें |
३- अपने दोनों हाथों को ऊपर उठाकर उँगलियों को आपस में फंसा दें और पेट को अंदर करके गर्दन सीधी करते हुए रीढ़ को ऊपर की ओर तानें |
४- अब पैरों की अँगुलियों के बल खड़े होकर अपनी हथेलियों के अग्र भाग को देखें और शरीर के ऊपरी भाग को ऊपर की ओर पूरी शक्ति से तानें तथा श्वास भी खींचें |
५- ५ से १० सेकेण्ड तक श्वास को रोकें फिर श्वास छोड़ते हुए धीरे धीरे पांव के तलवे के बल खड़े हो जाएँ और भुजाओं  को सिर के ऊपर झुका दें |
६- यह क्रिया ८-१० बार करें | यथासम्भव शीर्षासन के पश्चात इसे करें तथा शीर्षासन में लगने वाले समय के आधे समय तक इसे करें | फैलाव को स्थिति को ५-१० सेकेण्ड तक श्वास को रोकें तथा यथास्थिति बनाये रखें |
७- तिर्यक ताड़ासन के लिए चार बार कमर के बाएं एवं चार बार दाहिने झुकें |बाएं चरम स्थिति में श्वास छोड़ें ,बीच में श्वास खींचें और फिर दाहिने श्वास  छोड़ें |
 ताड़ासन की दूसरी सरल  विधि पीठ के बल आसन पर सीधे लेट जाएँ और दोनों हाथों को सिर के पीछे की ओर ले जाएँ | अब दोनों हाथों को ऊपर की ओर तथा दोनों पैरों को आगे की ओर  अधिक से अधिक तानें | पैरों की उँगलियाँ आपस में मिली हुई एवं शरीर को  मध्य भाग से ऊपर और नीचे दोनों ओर बलपूर्वक  खींचें | इस क्रिया को कई बार दुहरायें | यह विधि उन लोगों के लिए है जो खड़े होकर ताड़ासन करने में असमर्थ हों |  यह क्रिया दो चार बार करें |
शंख प्रक्षालन के दौरान ताड़ासन खड़े होकर ही करें /
परिणाम :---
१- ताड़ासन में हमें शरीर को समान रूप से ऊपर उठाने का अवसर मिलता है | प्रायः हम कभी एडियों के बल अथवा एक पैर के बल खड़े होते हैं जिससे शरीर का पूरा भार पंजों पर नही आ पाता है | अतः पंजों पर समान भार न होने के कारण हम एक ओर झुक कर चलते हैं जिसका उदाहरण हमारे जूतों के घिसे हुए भाग प्रस्तुत करते हैं |
२- यह आसन  शरीर को सुडौल व आकर्षक बनाता है तथा रीढ़ को शक्तिशाली |
३- यह पुरुषों एवं स्त्रियों के भरी और थुलथुली  छाती को हल्की करने में सहायक होता है |
४- योग्य शिक्षक के मार्गदर्शन में यदि गर्भवती स्त्रियाँ इस आसन को प्रथम ५ माह तक करती हैं तो बच्चा आसानी से पैदा होगा अर्थात आपरेशन की आवश्यकता नहीं पड़ेगी |
५- इस आसन को करने से मेरुदंड और शरीर के सभी अंग फैलते हैं जिससे लम्बाई बढ़ाने में यह आसन सहायक होता है |
६ -इस  आसन  के करने से गठिया का दर्द दूर हो जाता है |
७ -कोष्ठबद्धता से छुटकारा पाने के लिए प्रतिदिन सुबह ३-४ गिलास गुनगुना  पानी पियें और ताड़ासन में १०० कदम आगे पीछे चलें |   

Saturday 12 November 2011

धनुरासन

धनु का अर्थ धनुष होता है | इस  आसन में धनुषाकार आकृति बनाई जाती है |इसमें हाथों का उपयोग सिर,धड और टांगों को  ऊपर खींचने के लिए प्रत्यंचा की तरह किया जाता है | शरीर को धनुष के समान टेढा  करके फ़ैलाने और शरीर को सशक्त बनाने की इस क्रिया से तरुणाई की प्राप्ति होती है |
विधि :---
१-आसन पर नीचे मुहं किये हुए पेट के बल लम्बवत लेट जाएँ |
२- श्वास को छोड़ते हुए दोनों घुटनों को एक साथ मोड़ें,  एडियों को पीठ की ओर बढ़ाएं और अपनी बाँहों को पीछे की ओर तानें फिर बाएं हाथ से बाएं टखने को एवं दायें हाथ से दायें टखने को पकड़ लें | अब श्वास भरकर यथासम्भव उसे रोके रखें |
३- अब सांसों को पूरी तरह निकाल दें और जमीन से घुटनों को उठाते हुए दोनों टाँगें ऊपर की ओर खींचें और उसी समय जमीन  से सीने को भी उठायें | बांह और हाथ झुके हुए धनुष के समान शरीर को तानने में प्रत्यंचा के समान कार्य करते हैं |
४-अब अपने सिर को ऊपर की ओर उठायें एवं यथासम्भव पीछे की ओर ले जाएँ |जमीन पर केवल उदर ही सम्पूर्ण शरीर के भार का वहन करे|
५- टाँगें ऊपर उठाते समय घुटनों के पास उन्हें सरकने  न दें अन्यथा काफी ऊँचाई तक टाँगें उठ नहीं सकेंगी | अब टांगों घुटनों और टखनों को सटा लें |
६-इस दौरान श्वास की गति तेज होगी लेकिन इसकी चिंता न  करते हुए यथाशक्ति १५ सेकंड से १ मिनट तक रुकें और आगे- पीछे, दायें -बाएं शरीर को हिला डुला सकते हैं |
७ -अब  श्वास छोड़ते हुए धीरे धीरे टखनों को भी छोड़ दें और दोनों टांगों को सीधी कर लें,किन्तु यह ध्यान रहे क़ि पहले घुटनों को जमीन पर रखें फिर तुड्डी को जमीन स्पर्श कराएँ और इसके बाद पैरों को छोड़ते हुए उन्हें जमीन तक धीरे धीरे आने दें | अपने कपोल को जमीन पर रखकर विश्राम करें | 
यह अभ्यास ५ सेकेण्ड से आरम्भ करें और प्रतिदिन समय को तब तक बढ़ाते रहें जब तक बिना किसी दबाव के १५ से ३० सेकेण्ड तक न हो जाये | इसे प्रातःकाल खाली पेट करें और अधिक से अधिक ३ बार कर सकते हैं | इस आसन के दौरान ध्यान विशुद्धि चक्र पर केन्द्रित होना चाहिए | जो व्यक्ति यक्ष्मा ,आंत उतरने की बीमारी या पेप्टिक अल्सर एवं उच्च रक्त चाप से ग्रस्त हों, वे इसे  कदापि न करें |
स्मरणीय बिन्दु :---- इस आसन को अत्यधिक सावधानी से धीरे धीरे करें क्योंकि फैलाव का यह अत्यंत शक्तिशाली आसन है | पैर ऊपर करते समय सिर को पीछे रखना आवश्यक है | इस दौरान श्वास को सामान्य रूप से भरें और चरम स्थिति में श्वास को रोकें |जांघ एवं घुटने उठाते समय प्रारम्भ में घुटने अलग कर सकते हैं किन्तु शक्ति प्राप्त करने के बाद घुटने एक साथ कर लें |धनुषाकार  से अत्यंत धीरे धीरे सामान्य स्थिति में लौटें | जब कभी आपकी पीठ में कड़ापन महशूस हो अथवा दर्द हो तो इसे कदापि न करें | प्रारम्भ में दोनों पैरों को एक साथ पकड़ने में कठिनाई अथवा दर्द महशूस हो तो तो पहले एक पैर को पकड़ें फिर दूसरे को |
परिणाम :---
१- धनुरासन में मेरुदंड पीछे की ओर तना होता है अतः सम्पूर्ण पीठ पर काफी दबाव पड़ता है और मेरुदंड में लचीलापन आता है |इस आसन के करने से उदर के अवयव सक्रिय हो जाते हैं |
२-महिलाओं  के वक्षस्थल का विकास होता है और मेरुदंड की मांसपेशियों  को सशक्त बनाता है |
३ --पेट ,नितम्ब और जांघों का वजन घटाता है |बवासीर ,वायुविकार को दूर करता है एवं भिजन के प्रति रूचि पैदा करता है |
-साइटिका के दर्द एवं खिसकी कटोरी ठीक करने में सहायक माना जाता है तथा गुर्दा और थैली में पथरी के निर्माण को रोकता है |
५- पेशाब की कमी ,दर्द एवं जलन में राहत पहुंचाता है एवं पुराणी कब्जियत ,मन्दाग्नि और यकृत की सुस्ती दूर करने में सहायक होता है |
६- यह आसन यकृत ,गुर्दा ,पित्त की थैली ,जननेन्द्रियों की कार्य प्रणाली में सुधार लाता है |
७- मध्यम आयु के साधक को इसके नियमित अभ्यास से उनकी शिशन की गिल्टियों पर सकरात्मक प्रभाव पड़ता है और ये ग्रन्थियां बढने नहीं पाती |
  

Wednesday 9 November 2011

सूर्य नमस्कार

आसनों की श्रृंखला में सूर्य नमस्कार एक महत्वपूर्ण आसन है | इस आसन में १२ प्रकार के आसन एवं आकृतियों को सम्मिलित किया गया है | पहले और बारहवें आसन से मानसिक शांति ,स्फूर्ति और चित्त की एकाग्रता प्राप्त होती है और साधक इस आसन से  अध्यात्म की ओर अग्रसर होता है | दूसरे और ग्यारहवें आसन से भुजाओं  और पीठ की रीढ़ का व्यायाम होता है तथा आंत और पेट की मांसपेशियों में फैलाव एवं रीढ़ और गर्दन के दर्द भी दूर हो जाते हैं |तीसरे एवं दसवें आसन से पेट की समग्र बीमारियाँ दूर होती हैं |पेट व उसके आस पास की चर्बी में कमी आती है तथा पाचन क्रिया ठीक हो जाती है |इससे पीठ की रीढ़ में लचीलापन आता है तथा यह  आसन कमर दर्द दूर करने में विशेष सहायक माना जाता है |  चतुर्थ एवं नवम आकृति से मानसिक तनाव में कमी आती है तथा तथा सम्पूर्ण पेट और पीठ की कठोरता भी समाप्त हो जाती है | दोनों जंघाओं एवं पैरों की मांसपेशियों में मजबूती आती है | पांचवें और आठवें आसन से पीठ की रीढ़ एवं पेट की मांसपेशियों की मालिश एवं रीढ़ की स्नायु को स्वच्छ रक्त प्रवाह सुलभ हो जाता है |गर्दन से रीढ़ तक के भागों को स्फूर्ति व शक्ति मिलती है |छठें एवं सातवें आसन से वक्षस्थल का विकास होता है और भुजाओं ,पीठ एवं नितम्ब की मांसपेशियों को अतिरिक्त शक्ति मिल जाती है जो मधुमेह की बीमारी दूर करने में सहायक होता है |
     सूर्य नमस्कार में इन बारह आकृतियों से गुजरने के पश्चात शरीर के समस्त अंगों ,मांसपेशियों ,ग्रन्थियों ,एवं प्रमुख भीतरी अंगों पर सीधा प्रभाव पड़ता है जिससे उन्हें अतिरिक्त शक्ति व स्फूर्ति प्राप्त होती है |यह आसन सामान्य रोगों का कुचालक माना जाता है |इन बारह आसनों को समन्वित रूप में  करते समय श्वास का आवागमन तेजी से होता है, फलतः कार्बन आक्साइड गैस बाहर निकलती है और फेफड़ों के कीटाणु भी बाहर निकल जाते हैं |चूंकि इस आसन के दौरान आक्सीजनयुक्त स्वच्छ हवा मिलती रहती है फलस्वरूप मष्तिष्क को विशेष स्फूर्ति व ताजगी महशूस होती है |
कोई भी आसन अथवा उसकी मुद्रा श्रेष्ठ नहीं होती बल्कि आसन करने की भावना ही उसे श्रेष्ठ बनाती है। मात्र शरीर को हिलाना डुलाना ही योगासन नहीं कहलाता वरन योग का वास्तविक स्वरूप मनुष्य का भावनात्मक सन्तुलन है। यदि  मनुष्य अपने कर्म संस्कारों का क्षय करते हुए भावनात्मक संतुलन प्राप्त कर लेता है तो वह स्वतः योगी के परमपद का अधिकारी हो जाता है। सूर्यनमस्कार मात्र शारीरिक आसन नहीं है बल्कि यह साधक को भावनात्मक एवम मानसिक स्वास्थ्य भी प्रदान करता है। देव संस्कृति विश्वविद्यालय हरिद्वार के मानवीय चेतना एवम योग विज्ञान विभाग की शोधकर्त्री सुश्री इंदु शर्मा द्वारा डॉ प्रणव पंड्या के संरक्षण में अस्सी साधकों को नब्बे दिन तक ३० मिनट प्रतिदिन सूर्य नमस्कार कराने के पश्चात उनके शारीरिक,मानसिक एवम भावनात्मक स्थितियों में आये हुए अभूतपूर्व परिवर्तन से इस तथ्य की पुष्टि की  है। योगाचार्यों का अभिमत है कि सूर्य नमस्कार स्वयं में एक पूर्ण यौगिक अभ्यास है। केवल इसी आसन के नियमित अभ्यास से व्यक्ति सम्पूर्ण स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर सकता है तथा अपनी मानसिक समस्याओं यथा चिंता,तनाव,क्रोध,अनिद्रा,ईर्ष्या,द्वेष आदि को दूर कर सकता है। 
सूर्य नमस्कार के अंतर्गत तीन विभिन्न प्रणालियों का अनुसरण करना पड़ता है। प्रथम आसन ,द्वितीय प्राणायाम {श्वसन }और तृतीय मन्त्रोच्चारण।सूर्य नमस्कार में बारह विभिन्न आसनों से गुजरना पड़ता है। इन बारह आसनों का सम्बन्ध सूर्य के गमन मार्ग  पड़ने वाली बारह राशियों से जोड़कर देखा जाता है। ये बारह आसन क्रमशः प्रणमासन,हस्तोत्तानासन,पादहस्तासन,अश्वसंचालनासन,पर्वतासन,अष्टांगासन,भुजंगासन,पर्वतासन,अश्वसंचालनासन,  पादहस्तानासन,हस्तोत्थानासन, एवम प्रणमासन हैं। वास्तव में प्रथम छह आसन ही प्रधान आसन हैं और सातवें आसन से क्रमशः उनकी पुनरावृत्ति की जाती है। सूर्य नमस्कार  समस्त गतिविधियां श्वसन प्रक्रिया के नियंत्रण के साथ सम्पन्न की जाती हैं और प्रत्येक आसन का सम्बन्ध पूरक,रेचक और कुम्भक में से किसी  साथ निर्धारित किया जाता है। सूर्य नमस्कार के बारह आसनों अथवा मुद्राओं में प्रत्येक के साथ बीजाक्षरयुक्त मन्त्र सम्बद्ध किये गए हैं  आसनों की स्थितियों के अनुरूप ही अभ्यासकर्ता को  आत्मसात करना पड़ता है। 
इस प्रकार सूर्य नमस्कार योग की तीन विशिष्ट प्रक्रियाओं का सम्मिलित योगाभ्यास है जो सम्पूर्ण व्यक्तित्व पर सकारात्मक प्रभाव डालता है। अतः यह एक यौगिक अभ्यास है जो शरीर ही  बल्कि मन और उसके मनोभावों से सम्बद्ध क्षमताओं पर सकारात्मक प्रभाव डालता है। इसके साथ ही साथ व्यक्तित्व को अनेक प्रकार की मनोशारीरिक एवम भावनात्मक व्याधियों को भी नष्ट कर देता है।
विधि :----
सूर्य नमस्कार हेतु सर्वप्रथम आसन पर प्रार्थना की मुद्रा में सीधे खड़े हों जाएँ ,दोनों एडियाँ   आपस में जुड़े रहें तथा पंजे खुले रहें, जुडी हुई हथेली छाती  के ठीक सामने रहे | आँखें पूर्णतयः बंद होनी चाहिए एवं ध्यान सम्पूर्ण शरीर पर केन्द्रित रहे | ऐसी  स्थिति में आने से पूर्व श्वास को पूरी तरह बाहर निकालते हुए  मध्यम स्वर में ॐ सूर्याय नमः का उच्चारण कर सूर्य देव का आह्वान करें |
उपरोक्त क्रिया के पश्चात दूसरी स्थिति के लिए अपने दोनों हाथों को सिर से ऊपर की ओर तानते हुए पीछे की ओर ले जाएँ किन्तु यह ध्यान रहे कि दोनों हाथों के मध्य कंधे के बराबर की दूरी रहे  तथा हाथों की अंगुलियाँ आपस में मिली हों |अब अपने सिर एवं भुजाओं को पीछे की ओर धकेलें |इस स्थिति  में ध्यान विशुद्धि चक्र पर केन्द्रित होना चाहिए |
तीसरे क्रम में आगे की ओर झुकें ,श्वास बाहर निकालें ,एवं हाथों की पांचों अँगुलियों के अग्र भाग को आसन पर रख दें | अब घुटनों को सीधा रखते हुए अपने सिर को दोनों भुजाओं के बीच में स्थित करें तथा यथासम्भव घुटनों को ललाट से स्पर्श कराने का प्रयास करें | इस दौरान घुटने मुड़ने नहीं चाहिए | इस स्थिति में ध्यान मणिपुर चक्र [नाभि  के पीछे रीढ़ पर ] पर केन्द्रित रखें |  
चौथी स्थिति में बायाँ पैर पीछे की ओर ले जाएँ और बाएं घुटने को आसन से स्पर्श कराएँ |अब दाहिने पैर को मोडकर आगे की ओर झुकाएं किन्तु दाहिना पैर और हाथ एक सीध में होने चाहिए |अपने शरीर का भार दोनों हाथो  ,दाहिने पैर ,बाएं घुटने और बाएं पैर के अंगूठों पर होना चाहिए |सिर को थोडा पीछे की ओर तानें ताकि पीठ हल्की सी दबी रहे और ऊपर की ओर देखने का प्रयास करें |इस मुद्रा में श्वास भीतर और ध्यान स्वाधिष्ठान चक्र पर रहे |
पांचवी स्थिति पर्वत आसन की है जिसमें दाहिना पैर बाएं पैर के पास ,पेट और बाएं घुटने को थोडा ऊपर उठायें और शरीर को पर्वताकार त्रिकोण  स्थिति में रखें |छाती को तुड्डी से स्पर्श करते हुए सिर को नीचे की ओर झुकाएं | इस मुद्रा में श्वास पूरी तरह बाहर निकली हो एवं ध्यान सह्श्रार चक्र पर केन्द्रित हो |
छठी स्थिति में अष्टांग नमस्कार की मुद्रा बनाएं जिसमें शरीर के पांच अंग जैसे अंगूठे ,घुटने ,छाती ,तुड्डी और हाथ जमीन अथवा आसन को स्पर्श करें | पैर और नितम्ब आसन से थोडा ऊपर रहें और ध्यान सम्पूर्ण शरीर पर केन्द्रित रहे |
सातवीं स्थिति में भुजंगासन  अर्थात कमर से ऊपरी भाग को श्वास लेते हुए ऊपर की ओर उठायें |यह ध्यान रहे कि भुजाएं सीधी रहें और सिर को  पीछे की ओर तानें | इस स्थिति में ध्यान स्वाधिष्ठान चक्र पर केन्द्रित होना चाहिए |
आठवीं स्थिति में श्वास छोड़ते हुए पांचवी स्थिति में वापस आ जाएँ |
नौवीं स्थिति में श्वास खींचते हुए दाहिना पैर आगे करें और बायाँ घुटना नीचे  करके आकृति चार में स्थित हो जाएँ |
दसवीं स्थिति में श्वास छोड़ते हुए बायाँ पैर दाहिने पैर के पास लायें और अपने दोनों पैरों को फैलाएं और आकृति  तीन में स्थित हो जाएँ |
ग्यारहवीं स्थिति के लिए श्वास भरते हुए दोनों हाथ ऊपर करके आकृति संख्या दो बनाएं |
बारहवीं और अंतिम स्थिति के लिए श्वास छोड़ते हुए आकृति एक में वापस आ जाएँ |
सूर्य नमस्कार की चरम स्थिति बनाये रखने के लिए प्रत्येक मुद्रा में उतनी ही देर तक रहें जितनी देर तक श्वास को नियंत्रण में रख सकें | प्रातः काल सूर्योदय के समय इस आसन को करना लाभकारी होगा |सूर्य नमस्कार का अभ्यास सावधानीपूर्वक करने से सम्पूर्ण शरीर में ताजगी आती है ,कार्य क्षमता बढती है तथा पीठ और मेरुदंड  को विशेष लाभ मिलता है |

Sunday 30 October 2011

उज्जायी प्राणायाम

उज्जायी वह प्रक्रिया है जिसमें फुप्फुस पूरी तरह फैलाये जाते हैं और अभिमानी विजेता के समान सीना बाहर निकाला जाता है / इसके लिए उपयुक्त समय प्रातः काल अथवा सायंकाल है |यह कभी भी किसी साफ सुथरे स्थान पर जहाँ प्रदूषण न हो, किया जा सकता है |  |
विधि :---
-१- पद्मासन, सिद्धासन अथवा सुखासन में सुविधानुसार आसन पर बैठ जाएँ |
२- पीठ को सीधा एवं कड़ा रखें | धड की ओर सिर को थोडा नीचा करें और सीने  की हड्डी के ठीक ऊपर हंसुलियों के बीच कटाव पर चिबुक को स्थिर [जालन्धर बंध ] रखें |
३-मुंह और दोनों आँखें बंद रखें तथा दोनों नाक छिद्रों से सामान्य रूप से श्वास लेते हुए दृष्टि को अन्तर्मुखी बनाएं |
४- अब श्वास को पूरी तरह छोड़ें | यहीं से श्वास की उज्जायी प्रणाली आरम्भ होती है |
५- दोनों नाकों से धीमी ,गहरी ,स्थिर साँस लें और अंदर आती हुई हवा के मार्ग का अनुभव तालू के ऊपरी  भाग पर होता है तथा सिसकारी  की ध्वनि  होती है | इस ध्वनि  को ध्यानपूर्वक सुनना चाहिए |
६- ऐसा महशूस करें कि श्वास गले की नली से छोड़ रहें हैं ,नाक के छिद्र से नहीं |
७- पुनः नया श्वास लेने के पहले कुछ सेकंड के लिए ठहरें ,इसे वाह्य कुम्भक कहते हैं |
८- आँखें पूर्णतयः बंद रखते हुए पांच से दस मिनट के लिए इस मालिका को दुहरायें और अंत में शवासन में लेट जाएँ  | निम्न रक्त चाप की स्थिति में इसे न करें |
९ -इस दौरान यह ध्यान रहे कि श्वास सामान्य और अत्यंत धीमा हो जो एक शिशु के श्वास की भांति हो |
परिणाम :----
- यह प्राणायाम कंठ के संक्रामक रोग को दूर करता है और कफ को रोकता है |
२- स्वास्थ्य में गिरावट रोकने के लिए इसे अवश्य करें |
३- यह ह्रदय रोग की बीमारियों को ठीक करता है और नाड़ियों को शांत करता है |
४- यह जठराग्नि तेज करता है और सिर की गर्मी दूर करता है |
५- झुकी हुई स्थिति में बिना कुम्भक के किया गया उज्जायी प्राणायाम उच्च रक्त चाप या कपालवेदना से पीड़ित व्यक्तियों के लिए उत्तम है |
६- यह आक्सीजन की मात्रा  बढ़ाकर स्नायु व्यवस्था में शांति लाता है ,फलतः परम सुख की भावना पैदा होती है |
७- यह अतिरिक्त लार पैदा करता है जिससे गले की खुश्की दूर हो जाती है |
८- यह एक ऐसा प्राणायाम है जिसे रात और दिन कभी भी सुविधानुसार किया जा सकता है |
९ - यदि कोई रोगी उच्च रक्त चाप ,खुजली और अनिद्रा से पीड़ित है तो वह उज्जायी प्राणायाम एक घंटे तक करे | यह क्रिया योग में  अजपाजप के साथ भी की जाती है |
१०- यदि जिह्वा को ऊपर की ओर लपेटकर एवं  तालू से सटाकर किया जाये तो अतिरिक्त लार पैदा होगी और इससे पाचन क्रिया सहज हो जाएगी |

शीर्षासन

सिर पर खड़े होने का आसन अत्यंत महत्वपूर्ण यौगिक आसनों में से एक है |यह मौलिक शारीरिक स्थिति है| शीर्षासन माला में कई प्रकार से इस आसन को किया जाता है जैसे सालम्ब शीर्षासन ,निरालम्ब शीर्षासन ,ऊर्ध्व पद्मासन ,कपाली आसन आदि। यह सभी आसन शीर्षासन के ही विस्तार के रूप में जाने जाते हैं।  शीर्षासन में पारंगत होने के बाद किसी कुशल शिक्षक की देखरेख में ही उक्त आसन करना चाहिए।प्रारम्भिक अवस्था में नये साधक को सावधानीपूर्वक निम्न विधि के अनुसार शीर्षासन  करना चाहिए :----
१- चार तह किया हुआ कम्बल भूमि पर बिछाएं और उसके पास में घुटने टेक कर आगे की ओर झुककर बैठें  |
२- अपनी एडियों के बल बैठकर घुटनों को जमीन पर एक साथ रखिये |
३- हाथों की अँगुलियों को आपस में फंसाकर अपने दोनों हथेलियों के पृष्ठ भाग को सिर के आगे  आसन पर रखें |
४- कम्बल पर केवल सिर का कपाल ही स्थिर करें और अपने सिर का पिछला हिस्सा हथेलियों के समीप ही रखें 
५-अपने पैर की अँगुलियों को सिर के निकट लाते हुए शरीर और घुटनों को जमीन से ऊपर की ओर उठायें |
६- श्वास छोड़ें एवं भूमि पर से हल्की उछाल लेते हुए मुड़े घुटनों को सीधा करते हुए दोनों टाँगें एक साथ ऊपर उठायें ताकि उसका भार आपके सिर और भुजाओं दोनों पर पड़े | इस क्रिया में घुटनों को शरीर के पास ही रखें |
७-अपनी टांगों को तानें और भूमि की सीध में सारे शरीर को रखते हुए सावधानीपूर्वक सिर पर खड़े हो जाएँ |
८- अपनी सामर्थ्य के अनरूप कुछ क्षणों तक इस स्थिति में स्थिर रहें तत्पश्चात अपनें पैरों को बहुत धीरे धीरे जमीन पर लायें | नौसिखिये व्यक्ति को एक मित्र की सहायता आवश्यक है या दीवार के सहारे इसे करें | दीवार  और सिर के बीच दो - तीन इंच का अंतर रखें |यदि अंतर अधिक होगा तो रीढ़ के टेढ़ी होने और पेट बढने की सम्भावना बढ़ सकती है |
९- दीवार के सहारे इसे करते समय नितम्बों को दीवार का सहारा दें और पैर ऊपर ले जाएँ तत्पश्चात पीठ को लम्ब रूप में ऊपर तानना चाहिए और धीरे-धीरे दीवार का सहारा छोडकर  संतुलन पर प्रभुत्व पाना चाहिए |  १०- जब एक बार संतुलन प्राप्त हो जाता है तब टागें सीधी किये बिना और नितम्बों के पीछे ओर की क्रिया के साथ भूमि पर नीचे आना सहज हो जाता है | टांगों को मोड़े बिना ऊपर जाना और नीचे आना प्रारम्भ में सम्भव नहीं है परन्तु उपरोक्तानुसार आत्मविश्वास के साथ यह क्रिया धीरे धीरे सहज हो जाती है |
११- जब एक बार आत्मविश्वास आ जाये तब सिर की स्थिति निश्चित करने के बाद भूमि से घुटने उठाते हुए टांगें सीधी तानें और पीठ सीधी रखते हुए पैर की अंगुलियाँ सिर के पास लायें तथा भूमि पर एडियाँ दबाने की कोशिश करें |रीढ़ के मध्य भाग को तानते हुए समान रूप से श्वास लें और ३० सेकंड या सामर्थ्य के अनुरूप कुछ देर इस स्थिति में रहें |प्रारम्भ में इसे २० सेकंड में करें और प्रतिदिन १० सेकंड उसमें जोडकर आगे आसन करते रहें | इसे प्रातः काल दिन में केवल एक बार ही खाली पेट की स्थिति में करें तथा इसे करते समय मन को सह्स्र्सार चक्र या अपनी साँस पर ध्यान केन्द्रित रखें |
शीर्षासन की स्थिति में ऊर्ध्व पद्मासन लगाने हेतु सांसों को सामान्य करते हुए अपनी दाहिनी टांग को मोडते हुए बायीं जंघा पर रखें तथा बायीं टांग को मोड़ते हुए दायीं जंघा पर रखकर पद्मासन लगा लें और कुछ देर तक इसी स्थिति में स्थिर रहें। 
शीर्षासन सम्बन्धी सावधानी :--
-शीर्षासन में संतुलन मात्र महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि साधक को क्षण प्रतिक्षण निगरानी रखनी है और बारीक़ से बारीक़ स्थिति की जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए | जब हम पैरों पर खड़े होते हैं तब हमें अतिरिक्त प्रयास ,शक्ति एवं ध्यान की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि यह प्राकृतिक स्थिति है |
अतः इस आसन को ताड़ासन की स्थिति में करना उचित होगा |शरीर का सारा भार केवल सिर पर ही उठाना चाहिए न की हथेलियों और हाथों पर |हाथ और हथेली किसी प्रकार के असंतुलन को रोकने के लिए ही उपयोग में लाये जाएँ |सिर का पृष्ठ भाग धड ,जांघों के पृष्ठ भाग और एडियाँ भूमि की सीध में होनी चाहिए ना कि एक ओर झुकी हुई |गला, चिबुक और सीने की  हड्डी एक पंक्ति में होनी चाहिए अन्यथा सिर एक ओर झुकेगा |सिर के पीछे परस्पर गुथे हाथ इस प्रकार होने चाहिए कि हथेलियाँ सिर से सटने न पायें |हथेलियों के ऊपरी और निचले हिस्से एक सीध में होने चाहिए अन्यथा सिर का कपाल ठीक तरह से भूमि पर स्थिर नहीं होगा |जब व्यक्ति उच्च या निम्न रक्त चाप से पीड़ित हो तो उसे यह आसन नहीं करना चाहिए |
शीर्षासन का परिणाम :----शीर्षासन मस्तिष्क को ताजा बनाने के लिए अत्यंत प्रभावकारी विधि है |इसे आसनों का राजा भी कहा जाता है |जन्म के समय हम प्रायःपहले सिर बाहर निकालते हुए दुनिया में आते हैं तत्पश्चात अन्य अवयव बाहर लाते हैं | खोपड़ी के अंदर मस्तिष्क बंद रहता है जो नाड़ी मंडल और ज्ञानेन्द्रियों को नियंत्रित करता है | इस आसन से निम्न  लाभ होते हैं :---
१- यह मस्तिष्क के स्नायु केंद्र में शक्ति प्रदान करता है और उसे सक्रिय भी बनाता है |
२- मस्तिष्क की शक्तियों में सुधार लाता है और मन को सतर्क बनाये रखता है |
३- सिर के बालों को झड़ने से रोकता है तथा देखने और सुनने की क्षमता बढाता है |
४- आत्मिक आवेगों, भय,क्रोध, और श्वास सम्बन्धी विसंगतियों को उचित समय पर समाप्त कर देता है |
५-मस्तिष्क में रक्त की आपूर्ति के फलस्वरूप सेल और टिस्यू को शक्ति प्रदान करता है |तेजी से रक्त संचार होने एवं रक्त में आक्सीजन की आपूर्ति से ह्रदय और अंतड़ियों को राहत मिलती है |
६- महिलाओं के गर्भाशय की मांसपेशियों को सशक्त बनाता है |
७- हार्निया और बन्ध्यता में राहत देने ,उसे रोकने एवं उसे समाप्त करने में सहायक होता है |
८- सिफलिस ,गुनोरिया एवं अन्य जननेद्रिय तथा अंडाशय रोगों को ठीक करने में सहायक होता है |
९- इससे अनिद्रा ,गुर्दा रोग ,कब्जियत एवं स्वप्नदोष रोकने में सहायता मिलती है तथा आँख ,कान, गला, नाक  के रोगों को  ठीक करता है |
१०-निद्रा ,स्मृति एवं जीवनशक्ति की कमी से ग्रस्त व्यक्तियों ने इस आसन के नियमित एवम उचित अभ्यास से उसकी पुनर्प्राप्ति की है |इसका नियमित अभ्यास मन को अनुशासित करता है एवं स्फूर्ति और उत्साह की वृद्धि करता है |

Saturday 29 October 2011

वज्रासन

आसनों की श्रृंखला में वज्रासन एक सरल व अत्यंत लाभकारी  आसन की श्रेणी में रखा गया है |यह एक मात्र ऐसा आसन है जो खाना  खाने के तुरंत बाद भी किया जा सकता है |  इस आसन को आप अख़बार पढ़ते समय अथवा टी .वी . देखते समय भी कर सकते हैं /
विधि :----
१- किसी समतल स्थान पर एक कम्बल का टुकड़ा अथवा चादर बिछाकर उस पर अपने दोनों घुटने इस प्रकार मोड़कर बैठें कि दोनों जंघाएँ पैरों पर टिकीं  हों तथा एडियाँ दायें बाएं नितम्ब को स्पर्श करती हुई अगल बगल  लेटी हों |
२- पैर के दोनों अंगूठे आपस में मिले हों तथा तलवा ऊपर की ओर रहे |
३- नितम्बों को पैर के तलवे के बीच में रखें व टखनों को जांघों से स्पर्श कराएँ |
४- अंगूठों से लेकर घुटने तक के भाग जमीन को स्पर्श करते रहें |
५- सम्पूर्ण शरीर का भार घुटनों एवं आंशिक रूप से नितम्बों पर रखें |
  ६-  अपने घुटनों पर दोनों हाथों की  हथेली रखते हुए अपने हाथो को शिथिल रखें |
७- घुटने एक दूसरे के थोड़ी दूरी पर रहें |
८- सिर, गर्दन और मेरुदंड एक सीध में स्थित होने चाहिए | कुछ दूर पर सामने किसी वस्तु को एकटक देखते भी रह सकते हैं किन्तु आदर्श स्थिति में दोनों आँखें बंद ही  रखना चाहिए |
९- शरीर को शिथिल रखते हुए आराम से दोनों आँखें बंद करके बैठे तथा अपनी सांसों के आवागमन को मन की आँखों से देखते रहें  |
१० -इस स्थिति में १० से १५ मिनट तक बैठें तथा स्वाभाविक  रूप से श्वसन क्रिया करते रहें |
सावधानी :---
-पूरे समय तक सीधे बिना हिले डुले बैठे रहें | श्वास लेते और छोड़ते समय मन ही मन १०० तक की गिनती गिनते रहें तथा अपनी आँखों को बंद रखें |यदि इस दौरान आपके शरीर के किसी भाग अथवा घुटनों में दर्द मह्शूश हो तो इस आसन को कदापि न करें और सुखासन या पद्मासन में बैठ जाएँ | इस आसन पर बैठते समय यह ध्यान रहे कि नितम्ब एडियों पर ना रहें  बल्कि उनके अगल बगल स्थित हों | 
वज्रासन से लाभ :-----
१-वज्रासन सम्पूर्ण मेरुदंड का तनाव दूर करता है तथा तलवों एवं जंघाओं के खिंचाव को  भी दूर करता है  |
२- पैर और अंगूठों को शक्ति प्रदान करता है |
३- मन्दाग्नि रोग से ग्रस्त और ह्रदय रोगी को भोजन के उपरांत थोड़ी देर इस आसन पर अवश्य बैठना चाहिए |
४- यह आसन घुटने के रोगों से मुक्ति प्रदान करता है |
५- इस आसन पर बैठने से पाचन क्रिया तेजी से अपना कार्य करने लगती है |
६- पैरों की नाड़ियों, स्नायुओं और मांसपेशियों को सशक्त बनाता है |
७- इससे गठिया और  साइटिका का दर्द दूर हो जाता है |
 ८- सर्वाइकल के दर्द में भी यह आसन राहत प्रदान करता है |
९- कब्जियत और गैस की शिकायत को भी  दूर करता है |
१०- यह आसन  बवासीर में आराम देता है |
११-अमाशय एवं गर्भाशय की मांसपेशियों को सशक्त करता है

योग से रोगोपचार

यौगिक चिकित्सा-पद्धति  मनोविज्ञान ,शरीर विज्ञानं ,रसायन विज्ञानं ,पंच कोष ,पंच प्राण ,ग्रन्थियों तथा तत्वों के सिद्धांत पर आधारित हैं | हमारे शरीर में पर्याप्त प्रतिरोधक शक्ति विद्यमान है जो रोगों को जड़ से उखाड़ने  में समर्थ है | इस पद्धति के अंतर्गत शरीर की शुद्धि, अन्तःस्रावी ग्रन्थियों को सक्रिय बनाने  ,सभी संस्थानों [नाड़ी, श्वसन, पाचन,रक्त -परिभ्रमण ,मल निष्कासन ] के कार्यों को उचित ढंग से संचालित करना, उपचार की अपेक्षा परहेज पर बल देना ,ब्रह्मचर्य को महत्व देना व आहार नियंत्रण से रोगों का निराकरण करना, चित्त शुद्धि ,आत्मिक पवित्रता ,षट्कर्म ,आसन, प्राणायाम,ध्यान आदि के द्वारा शरीर और मन को तनाव रहित करते हुए रोगोत्पत्ति  कारणों को समाप्त करना शामिल है | इनमें से कुछ पद्धतियों का वर्णन निम्नवत किया जा रहा है :----
षट्कर्म :-नेति क्रिया जिसमें जलनेति ,सूत्रनेति प्रमुख हैं |चूंकि नासिका के ऊपरी भाग और मस्तक की संधि पर अनेक नस -नाड़ियों का मेल होता है,अतः नेति से इनकी शुद्धि व सक्रियता में वृद्धि होती है |इससे आंख ,नाक, कान, गला व मष्तिष्क सभी अंग प्रभावित होते हैं |नासिका द्वारा जल-पान,दुग्ध-पान, घृत-पान आदि के प्रयोग से रोगों का इलाज किया जाता  है |
कुन्जल:-आमाशय और आहार नली की सफाई हेतु गुनगुना जल पीकर मुंह से ही निकला जाता है |इससे अम्ल पित्त और कफ बाहर आ जाता है |मन्दाग्नि ,रक्त विकार ,विष विकार ,पित्त के रोगों ,एसिडिटी और दमा रोग ठीक हो जाते हैं |
बस्ती या एनिमा :-बड़ी आंत में मल सड़ने से एवं मल के रुकने से विकार पैदा हो जाता है |इसके लिए इस  क्रिया के द्वारा मल को निष्काषित किया जाता है जिसके कारण बड़ी आंतें तथा पाचन तन्त्र सुचारू रूप से काम  करने लगती है | इस क्रिया से गैस ,बदहजमी ,बवासीर,कब्ज एवं पेट के अन्य रोगों को राहत मिलती है |
नौलि:--छोटी -बड़ी आँतों ,पेट की मासपेशियों ,स्नायु और रक्त वाहिनी नाड़ियों को यह क्रिया सशक्त बनाती  है तथा वात सम्बन्धी दोषों को दूर करने में सहायक होती है | इससे पेट के सभी रोग स्वतः दूर हो जाते हैं | 
त्राटक ,चक्षु प्रक्षालन तथा व्यायाम :--इस क्रिया से नेत्र पुष्ट एवं स्नायु मंडल शक्तिमान होते हैं | मन की एकाग्रता व शांति स्थिर होती है साथ ही संकल्प शक्ति का अभूतपूर्व  विकास हो जाता है |चक्षु प्रक्षालन तथा चक्षु व्यायाम से नेत्रों को स्वस्थ रखा जा सकता है |
कपालभाति:--इस क्रिया से कपाल अथवा मष्तिष्क की शुद्धि, मानसिक शांति तथा आँतों को अतिरिक्त शक्ति प्राप्त होती है | इससे सभी मुख्य ग्रन्थियां सक्रिय व सशक्त होती है | कपाल की नस नाड़ियों में एकत्र गंदगी बाहर निकल आती है जिससे नाक, कान एवं गला रोगों की सम्भावना कम हो जाती है |
आसन : ---रोग मुक्ति में आसन का विशेष योगदान होता है |इससे मन और शरीर दोनों स्वस्थ एवं पुष्ट होते हैं | आसन से स्नायु मंडल का तनाव दूर हो जाता है |मांसपेशियों के फैलने और सिकुड़ने से उनकी प्रकारांतर से मालिश होती रहती है तथा पेशियों के सक्रिय होने से रक्त प्रवाह शरीर के सभी अंगों तक आसानी से पहुँचता रहता है| आसनों के दौरान दीर्घ श्वास की क्रिया उत्पन्न होने से अधिक आक्सीजन मिलता है और रक्त शुद्धि भी होती रहती है |अन्तःस्रावी ग्रन्थियों से पाचक रस उचित मात्रा में निकलने से समस्त संस्थान अपना कार्य सुचारू रूप से करते रहते  हैं |आसन से रीढ़ की हड्डी अधिक सशक्त व लचीली बन जाती है |अतः रोगों के शमन हेतु निम्नांकित आसनों का प्रयोग लाभकारी  सिद्ध होता है :-
रक्त हीनता में पवन मुक्तासन ,शवासन,सूर्य- नमस्कार,भुजंगासन,शलभासन वज्रासन लाभकारी होगा |नजला में सुप्त वज्रासन ,शशांक आसन ,शवासन तथा दमा रोगी के लिए शवासन, पवनमुक्तासन,सर्वांग आसन ,सुप्त वज्रासन,पश्चिमोत्तान आसन ,व शशांक आसन लाभकारी होगा |
पाचन क्रिया सुदृढ़ रखने हेतु सूर्य नमस्कार ,शवासन ,पश्चिमोत्तान आसन ,शलभासन धनुरासन ,अर्धमत्स्येन्द्र आसन ,सर्वांगासन ,हलासन ,सुप्त वज्रासन उपयुक्त होगा |
ह्रदय रोगी के लिए पवनमुक्तासन और शवासन ही पर्याप्त होगा |
अनिद्रा दूर करने के लिए सूर्य नमस्कार ,शवासन योगमुद्रा शशांकासन ,सर्वांगासन , सुप्तवज्रासन ,भुजंगासन पवनमुक्तासन करना चाहिए |
उक्त रक्त चाप के रोगी को पवनमुक्तासन ,शवासन ,वज्रासन तथा निम्न रक्त चाप के रोगी को सूर्य नमस्कार, शवासन ,शशांकासन ,व भुजंगासन करना चाहिए |
यकृत रोगी को सूर्य नमस्कार ,शवासन ,पश्चिमोत्तानासन ,शशांकासन, शलभ व धनुरासन करना चाहिए |  बवासीर रोगी हेतु सूर्य नमकार ,सर्वांगासन ,उष्ट्रासन ,सुप्त वज्रासन ,शवासन एवं पश्चिमोत्तान आसन लाभकारी होगा |स्नायु दौर्बल्य एवं विस्मृति दूर करने के लिए शीर्षासन ,सर्वांगासन ,सूर्यनमस्कार ,ताड़ासन ,सुप्त वज्रासन ,पश्चिमोत्तानासन, शवासन, योगमुद्रा ,शशांकासन करना उपयुक्त होगा |
वायु विकार के लिए पवनमुक्तासन ,सूर्य नमस्कार ,पश्चिमोत्तानासन ,भुजंगासन ,शलभासन ,धनुरासन करना चाहिए |
मधुमेह रोगी को शीर्षासन, सर्वांगासन,जानू शीर्षासन,धनुर्रासन,मयूरासन अर्ध नावासन व शलभासन करना चाहिए | 
कोष्ठबद्धता दूर करने हेतु शीर्षासन ,सर्वांगासन ,खड़े होकर करने वाले सभी आसन ,उत्तानासन ,एवं पश्चिमोत्तानासन लाभकारी होगा | प्रभावित रोगी को अपनी क्षमता के अनुरूप ही उपर्युक्त आसनों का प्रयोग करना चाहिए और उचित यह होगा की किसी कुशल शिक्षक की देख रेख में ही आसनो का अभ्यास करें | 
कुछ रोगों के निदान हेतु निम्नांकित सारिणी के अनुरूप आसनों का अभ्यास किया जाना लाभकारी होगा।
कान,आँख एवं नाक का दर्द  :-सिद्धासन ,सर्वागासन एवं अर्धमत्स्येन्द्र आसन
स्थायी कब्ज :-हलासन ,धनुरासन मत्स्यासन ,पाद ह्स्तासन
कुष्ठ रोग :-शीर्षासन ,पद्मासन सिद्धासन सिंहासन ,गोमुख आसन ,वक्रासन।
मोटापा :-मंडूक आसन ,पश्चिमोत्तान आसन ,सुप्त वज्रासन धनुरासन एवं अर्ध मत्स्येन्द्र आसन।
मासिक धर्म :-धनुरासन मत्स्यासन ,सुप्त वज्रासन एवं पश्चिमोत्तान आसन।
चरम रोग :- पद्मासन सिद्धासन ,सिंहासन ,वीरासन मन्दूक आसन ,सुप्त वज्रासन।
नपुसकतत्व :- पद्मासन ,सिद्धासन सिंहासन ,मंडूक आसन ,वज्रासन ,सुप्त वज्रासन एवं गोमुख आसन।
कमर का दर्द ;-वक्रासन ,हलासन एवं सूर्य नमस्कार
मुद्राएँ :---   यह  आसन और प्राणायाम के मध्य में प्रयुक्त  होता है |महामुद्रा से यौनरोग ,कुष्ठ रोग ,अजीर्ण ,भगन्दर एवं वायु रोग दूर होते हैं |विपरीत करनी मुद्रा से यौवन स्थिर रहता है जबकिअश्विनी मुद्रा से गुप्त रोग नष्ट होते हैं |भुजंगी मुद्रा से अजीर्णता दूर होती है |योग मुद्रा से यकृत सम्बन्धी समस्त रोग ठीक होते हैं ,जठराग्नि बढती है तथा नाड़ियाँ शुद्ध हो जाती हैं |काकी मुद्रा से अम्ल पित्त दूर होता है तथा पाशिनी मुद्रा से बल में वृद्धि होती है  |
बंध :--बंध का तात्पर्य बाँधने से है |प्राणायाम के दौरान बंधों का प्रयोग शरीर और मन दोनों को सशक्त करता है तथा ग्रन्थियां शक्तिशाली होती है | जालन्धर बंध से यौवन स्थिर एवं गले के रोग ठीक हो जाते हैं |उद्दीयान  बंध से आंतें ,गुर्दे एवं लीवर के रोग ठीक होते हैं |पैनक्रियाज ,यकृत ,एड्रिनल आदि ग्रन्थियां प्रभावित होती हैं | मूल बंध से बवासीर ,पौरुष ग्रन्थि के दोष ,खुजली ,अजीर्ण ,अनिद्रा बुढ़ापा ,दुर्बलता  आदि  दूर होते हैं | काम शक्ति और मन पर नियंत्रण रहता है और शरीर में हल्कापन भी  महशूस होता है |
प्राणायाम :---प्राण शरीर का आधार पुंज है | प्राण की कमी अथवा असंतुलन से भयंकर रोग जन्म ले लेते हैं | फेफड़े जो २४ घंटे में आठ टन रक्त शुद्ध करते है ,में किसी प्रकार का विकार या अवरोध रोग उत्पन्न कर सकता है | अतः प्राणायाम करने से शरीर में व्याप्त प्राणों व उप प्राणों में संतुलन बना रहता है |मन में शांति एवं शरीर में शिथिलता  का अनुभव होता है | नाड़ी शोधन ,भ्रस्त्रिका ,शीतली, उज्जायी, अनुलोम- विलोम एवं भ्रामरी प्राणायाम से मन और शरीर दोनों स्वस्थ व चैतन्य रहता है |
ध्यान :---रोगों के शमन में ध्यान का सर्वाधिक योगदान माना जाता है क्योंकि ध्यान से मन निर्विचार ,राग- द्वेष रहित,आनन्दमय तथा उलझनों एवं तनाव से मुक्त होता है | इससे मन में प्रसन्नता एवं हल्कापन भी महशूस  होता है |अतः ध्यान  रोगों को दूर करने के लिए रामबाण के रूप में प्रयुक्त हो सकता है |ध्यान अध्यात्मिक साधना का प्रमुख सोपान है |इसे मन का स्नान भी माना जाता है  / अतः ध्यान से आत्मानुभूति एवं आत्मानुभूति से ईश्वर की प्राप्ति सहज हो जाती है |