Saturday 3 December 2011

शशांक आसन

शशांक आसन जैसाकि इसके नाम से ही ध्वनित होता है जिसका तात्पर्य खरगोश की  तरह आकृति बनाकर अपने  शरीर को समेटने से है | यह आसन सरल आसनों की श्रृंखला में माना जाता है | इस आसन को प्रातः अथवा सायंकाल कभी भी खाली पेट करना चाहिए |
विधि :-----
१- सर्वप्रथम आसन पर वज्रासन की मुद्रा में बैठ जाएँ |
२- अपनी दोनों हथेलिओं को घुटनों पर रखिये |
३- गहरी श्वास लेते हुए दोनों भुजाओं को माथा के ऊपर उठाइए | दोनों हाथ समानांतर और हाथों की अंगुलिया आपस में मिली होनी चाहिए |
४- अब श्वास निकालते हुए धीरे धीरे आगे की ओर झुकें किन्तु यह ध्यान रहे कि हाथ दोनों कान से सटे हुए एक साथ  ही आगे झुकेंगे |
५- माथा को आसन पर रखें और हथेलियों को जांघों के अगल बगल आसन पर  रखते हुए अपनी  सांसों को सामान्य कीजिये |
६- इस दौरान आँखों को बंद रखें और श्वास के आवागमन के स्पंदन को नाभि पर केन्द्रित करते हुए १ मिनट से ५ मिनट तक स्थिर रहें |
७- अब ऊपर उठते हुए लयबद्ध श्वास लें और भुजाओं को माथा के ऊपर ले जाएँ  और वज्रासन की मुद्रा में वापस आ जाएँ ||
८- सामान्य  श्वास लेते हुए हथेलियों  को दोनों घुटनों पर रखकर विश्राम करें और आँखों को खोल दें |
परिणाम :----
१- कब्ज को  दूर करने में यह आसन सहायक माना जाता है |
२- एड्रिनल ग्रन्थि के कार्य को सरल एवं सक्रिय करता है |
३- क्रोध एवं मोह के अवसाद से छुटकारा दिलाता है |
४- इस आसन के नियमित  अभ्यास से शिशुओं का विस्तर पर पेशाब करना बंद हो जाता है |
५- इस आसन को नियमित रूप से  करने से चेहरे पर कान्ति बढ़ जाती है और झुर्री एवं सिकुडन    बिलकुल  खत्म हो जाती है |
६- यह आसन साईटिका दर्द को कम कर देता है  |
७- इस आसन से काम विकार  धीरे धीरे समाप्त हो जाते हैं |
८- यह आसन गुदा द्वार और कूल्हे  के बीच की मांसपेशियों को सशक्त बना देता है |
९- दमा एवं सर्दी को दूर करने में यह आसन सहायक होता है |
१० - मूलाधार चक्र को जागृत करने में इस आसन का विशेष  योगदान होता है |

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