Sunday 18 December 2011

सिद्धासन

सिद्धासन  में पद्मासन के सभी लाभ प्राप्त होते हैं और यह पद्मासन एवं सुखासन से उत्तम आसन माना जाता है क्योंकि इस मुद्रा में मेरुदंड बिलकुल सीधा रहता है | यह आसन प्राणायाम के लिए अधिक उपयुक्त माना जाता है | इसके निरंतर अभ्यास से मूलाधार चक्र से ऊर्जा शक्ति निकलकर सुषुम्ना के माध्यम से आज्ञाचक्र तक समस्त  चक्रों जैसे स्वाधिष्ठान,मणिपुर,अनहत,एवं विशुद्धि चक्रो को स्पर्श करते  हुए आज्ञा चक्र को प्रभावित करता है | इसलिए मन को एकाग्र करने एवं ध्यान के लिए यह सर्वोत्तम  आसन माना गया है |
विधि :----
१- आसन पर दोनों पैर फैलाकर बैठ जाएँ |
२- अपना बायाँ  पैर मोडकर एडी को गुदा एवं अंडकोष के समीप रखें | महिलाएं बच्चेदानी के मूल पर रखें |
३- अब दायाँ पैर मोडकर दायीं एडी को जननेंद्रिय की जड में तथा नाभि के ठीक नीचे रखें |
४- अपने पैरों को इस प्रकार रखें कि दाहिनी एडी बायीं एडी के ठीक ऊपर रहे |
५- मेरुदंड और शरीर भूमि पर सीधे रहें तथा घुटने भूमि से सटे रहें |
६- अब दोनों आँखें बंद कर लें और  यथासम्भव रुकें ,स्थिर रहें तथा अपनी आती- जाती श्वास को मन की आँखों से निरंतर  देखते रहें |
७- इस दौरान ऐसा अनुभव करें कि नाभि से श्वास  लेकर ऊपर पेट ,छाती ,कंठ तक ले जाते हुए दोनों नाकों से श्वास छोड़ते हुए पुनः नाभि से श्वास लेने की अवस्था में प्रवेश कर रहें हैं |
८-  श्वास की इस चक्राकार प्रक्रिया  में ध्यान को अपनी श्वासों पर ही केन्द्रित रखें  |
९- श्वास- प्रश्वास की गति स्थिर होने पर लगभग एक मिनट में आठ बार श्वास लेने और छोड़ने का चक्र पूर्ण होने पर दोनों भौहों के बीच त्रिकुटी [आज्ञाचक्र ] पर मन को केन्द्रित करें और थोड़ी देर स्थिर रहें |
सावधानी :--
 स आसन को कम से कम १० मिनट अथवा जब तक दर्द न महशूस हो सुविधानुसार करते रहें | प्रातः या संध्या काल में एक बार ही इस आसन को करें | जिन रोगियों को घुटने  में दर्द हो वे इसे कदापि न करें | महिलाओं  को भी यह आसन वर्जित है |
परिणाम :--
१- ध्यान के लिए यह सर्वोत्तम आसन है |
२- इस मुद्रा में बैठने का निरंतर अभ्यास यदि कर लिया जाये तो इससे अनेक सिद्धियों की प्राप्ति सम्भव हो जाएगी |
३- नवयुवक ,ब्रह्मचारी एवं अविवाहित  युवक जो ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहते हैं,  के लिए यह आसन बहुत ही लाभकारी  माना गया है |
४- चूंकि इस आसन में एक एडी मूलाधार चक्र पर दबाव डालती है और दूसरी एडी गुर्दे के धरातल [लिंग एवं योनि के मूल ] पर रहे / इसप्रकार  महत्वपूर्ण शक्ति को रोकने के कारण यह आसन विशेष लाभप्रद है |
५- यह आसन आध्यात्मिक चेतना प्रदान करता है तथा पाचन क्रिया में सुधार भी लाता है |
६- सिद्धासन से मानसिक तनाव और अनिद्रा दोनों दूर हो जाती है |
७- यह आसन हृदय रोग और रक्त चाप दोनों को संतुलित करता है |

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