Saturday 12 November 2011

धनुरासन

धनु का अर्थ धनुष होता है | इस  आसन में धनुषाकार आकृति बनाई जाती है |इसमें हाथों का उपयोग सिर,धड और टांगों को  ऊपर खींचने के लिए प्रत्यंचा की तरह किया जाता है | शरीर को धनुष के समान टेढा  करके फ़ैलाने और शरीर को सशक्त बनाने की इस क्रिया से तरुणाई की प्राप्ति होती है |
विधि :---
१-आसन पर नीचे मुहं किये हुए पेट के बल लम्बवत लेट जाएँ |
२- श्वास को छोड़ते हुए दोनों घुटनों को एक साथ मोड़ें,  एडियों को पीठ की ओर बढ़ाएं और अपनी बाँहों को पीछे की ओर तानें फिर बाएं हाथ से बाएं टखने को एवं दायें हाथ से दायें टखने को पकड़ लें | अब श्वास भरकर यथासम्भव उसे रोके रखें |
३- अब सांसों को पूरी तरह निकाल दें और जमीन से घुटनों को उठाते हुए दोनों टाँगें ऊपर की ओर खींचें और उसी समय जमीन  से सीने को भी उठायें | बांह और हाथ झुके हुए धनुष के समान शरीर को तानने में प्रत्यंचा के समान कार्य करते हैं |
४-अब अपने सिर को ऊपर की ओर उठायें एवं यथासम्भव पीछे की ओर ले जाएँ |जमीन पर केवल उदर ही सम्पूर्ण शरीर के भार का वहन करे|
५- टाँगें ऊपर उठाते समय घुटनों के पास उन्हें सरकने  न दें अन्यथा काफी ऊँचाई तक टाँगें उठ नहीं सकेंगी | अब टांगों घुटनों और टखनों को सटा लें |
६-इस दौरान श्वास की गति तेज होगी लेकिन इसकी चिंता न  करते हुए यथाशक्ति १५ सेकंड से १ मिनट तक रुकें और आगे- पीछे, दायें -बाएं शरीर को हिला डुला सकते हैं |
७ -अब  श्वास छोड़ते हुए धीरे धीरे टखनों को भी छोड़ दें और दोनों टांगों को सीधी कर लें,किन्तु यह ध्यान रहे क़ि पहले घुटनों को जमीन पर रखें फिर तुड्डी को जमीन स्पर्श कराएँ और इसके बाद पैरों को छोड़ते हुए उन्हें जमीन तक धीरे धीरे आने दें | अपने कपोल को जमीन पर रखकर विश्राम करें | 
यह अभ्यास ५ सेकेण्ड से आरम्भ करें और प्रतिदिन समय को तब तक बढ़ाते रहें जब तक बिना किसी दबाव के १५ से ३० सेकेण्ड तक न हो जाये | इसे प्रातःकाल खाली पेट करें और अधिक से अधिक ३ बार कर सकते हैं | इस आसन के दौरान ध्यान विशुद्धि चक्र पर केन्द्रित होना चाहिए | जो व्यक्ति यक्ष्मा ,आंत उतरने की बीमारी या पेप्टिक अल्सर एवं उच्च रक्त चाप से ग्रस्त हों, वे इसे  कदापि न करें |
स्मरणीय बिन्दु :---- इस आसन को अत्यधिक सावधानी से धीरे धीरे करें क्योंकि फैलाव का यह अत्यंत शक्तिशाली आसन है | पैर ऊपर करते समय सिर को पीछे रखना आवश्यक है | इस दौरान श्वास को सामान्य रूप से भरें और चरम स्थिति में श्वास को रोकें |जांघ एवं घुटने उठाते समय प्रारम्भ में घुटने अलग कर सकते हैं किन्तु शक्ति प्राप्त करने के बाद घुटने एक साथ कर लें |धनुषाकार  से अत्यंत धीरे धीरे सामान्य स्थिति में लौटें | जब कभी आपकी पीठ में कड़ापन महशूस हो अथवा दर्द हो तो इसे कदापि न करें | प्रारम्भ में दोनों पैरों को एक साथ पकड़ने में कठिनाई अथवा दर्द महशूस हो तो तो पहले एक पैर को पकड़ें फिर दूसरे को |
परिणाम :---
१- धनुरासन में मेरुदंड पीछे की ओर तना होता है अतः सम्पूर्ण पीठ पर काफी दबाव पड़ता है और मेरुदंड में लचीलापन आता है |इस आसन के करने से उदर के अवयव सक्रिय हो जाते हैं |
२-महिलाओं  के वक्षस्थल का विकास होता है और मेरुदंड की मांसपेशियों  को सशक्त बनाता है |
३ --पेट ,नितम्ब और जांघों का वजन घटाता है |बवासीर ,वायुविकार को दूर करता है एवं भिजन के प्रति रूचि पैदा करता है |
-साइटिका के दर्द एवं खिसकी कटोरी ठीक करने में सहायक माना जाता है तथा गुर्दा और थैली में पथरी के निर्माण को रोकता है |
५- पेशाब की कमी ,दर्द एवं जलन में राहत पहुंचाता है एवं पुराणी कब्जियत ,मन्दाग्नि और यकृत की सुस्ती दूर करने में सहायक होता है |
६- यह आसन यकृत ,गुर्दा ,पित्त की थैली ,जननेन्द्रियों की कार्य प्रणाली में सुधार लाता है |
७- मध्यम आयु के साधक को इसके नियमित अभ्यास से उनकी शिशन की गिल्टियों पर सकरात्मक प्रभाव पड़ता है और ये ग्रन्थियां बढने नहीं पाती |
  

No comments:

Post a Comment