प्राणायाम सामान्यतः सांसों के नियन्त्रण की एक तकनीकी कला है। प्राणायाम प्राण एवं आयाम दो शब्दों से बना है। प्राण का अर्थ जीवन ऊर्जा और आयाम का अर्थ विस्तार। प्राणायाम के अंतर्गत पूरक, रेचक, अन्तर्कुम्भक एवं बहिर्कुम्भक चार प्रमुख सोपान वर्णित हैं। प्राणायाम की शिक्षा एवं प्रगति के लिए साधक की पात्रता अनुभवी शिक्षक द्वारा प्रमाणित होनी चाहिए और इसकी शिक्षा के लिए आसनों पर अधिकार और उनसे प्राप्त शक्ति तथा अनुशासन की आवश्यकता होती है |
प्राणायाम के लिए स्वच्छता तथा भोजन में निम्न बातों का ध्यान रखना आवश्यक है ;
१ -जिस प्रकार अशुद्ध मन और शरीर से मन्दिर में प्रवेश वर्जित है उसी प्रकार योगी को अपने शरीर- मन्दिर में प्रवेश करने के पूर्व स्वच्छता के नियमों पर विशेष ध्यान देना चाहिए |
२ -प्राणायाम का अभ्यास प्रारम्भ करने के पूर्व अंतड़ियों को खाली और मूत्राशय को रिक्त कर देना चाहिए |
३ -यथासम्भव खाली पेट अथवा भोजन के कम से कम छः घंटे बाद ही प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए |
४ -प्राणायाम का अभ्यास समाप्त करने के आधे घंटे बाद हल्का भोजन या नाश्ता किया जा सकता है |
समय और स्थान :-प्राणायाम के लिए उत्तम समय सूर्योदय से पूर्व और सूर्योदय के पश्चात का समय उपयुक्त होता है | प्राणायाम स्वच्छ ,हवादार और कीड़े मकोडो से रहित स्थान में किया जाना चाहिए तथा कोलाहलपूर्ण स्थान से दूर |प्राणायाम का अभ्यास संकल्प और नियमितता के साथ यथासम्भव एक ही समय और स्थान पर एक ही स्थिति में करना चाहिए |
स्थिति :-१ - शीतली प्राणायाम को छोड़कर शेष के अभ्यास में श्वसन क्रिया केवल नाक से ही करनी चाहिए |
२ -भूमि पर कम्बल या चटाई बिछाकर पद्मासन अथवा सिद्धासन पर बैठना चाहिए |
३ -प्राणायाम करते समय गर्दन और रीढ़ बिलकुल सीधी रखनी चाहिए |
४ -प्राणायाम करते समय मुख के स्नायुओं ,आँखों और कानों एवं गर्दन की मांसपेशियों ,कंधों ,बाँहों जांघों और पैरों में तनाव का अनुभव नहीं होना चाहिए |
५ -प्राणायाम करते समय ऑंखें पूर्णतयः बंद रखनी चाहिए अन्यथा मन बाहरी विषयों में भटक कर विक्षिप्त हो सकता है |कानों के आंतरिक भाग पर किसी प्रकार का तनाव महशूस नहीं होना चाहिए |
६ -प्राणायाम करते समय दायीं बांह कुहनी पर मुड़ी होती है और श्वास की समान गति बनाये रखने के लिए हाथ नासिका पर रखा जाता है |तर्जनी और कनिष्ठिका के अग्र भागों से पहले बायीं नासिका को नियंत्रित करते हैं और क्रमशः अंगूठे के सिरे से दायीं नासिका को |
७ -प्राणायाम करते समय अपनी स्थिति और श्वासों पर ध्यान केन्द्रित रखते हुए अपने प्राणों के अजश्र प्रवाह के प्रति सचेत एवं सतर्क रहना चाहिए |
८ -प्राणायाम के तत्काल बाद आसन नहीं करना चाहिए बल्कि एक घंटे का अन्तराल रखना चाहिए |इसका कारण यह है कि जो अवयव प्राणायाम में शांत और स्थिर हो जाते हैं वे आसनों से होने वाली हलचल से अस्तव्यस्त हो सकते हैं | अच्छा होगा कि आसनों के अभ्यास के १५ मिनट पश्चात प्राणायाम किया जाये |
९ -कठिन आसनों से शरीर में थकावट आ जाती है ,अतः ऐसी स्थिति में प्राणायाम नहीं करना चाहिए |
१० -पूरक और रेचक में सम अनुपात रखने की कोशिश करनी चाहिए अर्थात यदि एक क्रिया एक मिनट में की गयी है तो दूसरी क्रिया भी एक मिनट में ही करनी चाहिए |
११ -प्राणायाम का प्रत्येक अभ्यास पूर्ण करने के पश्चात हमेशा ५-१० मिनट शवासन में लेट जाना चाहिए |शवासन में मन पूर्णतयः निश्चल और सभी अवयव तथा ज्ञानेन्द्रियाँ निष्क्रिय होनी चाहिए ताकि शरीर और मन दोनों प्रफुल्लित रहें |
११ -प्राणायाम का प्रत्येक अभ्यास पूर्ण करने के पश्चात हमेशा ५-१० मिनट शवासन में लेट जाना चाहिए |शवासन में मन पूर्णतयः निश्चल और सभी अवयव तथा ज्ञानेन्द्रियाँ निष्क्रिय होनी चाहिए ताकि शरीर और मन दोनों प्रफुल्लित रहें |
१२ -प्राणायाम करते समय साधक को अपनी सामर्थ्य की सीमा का ज्ञान अवश्य होना चाहिए और कभी भी उससे बढ़कर अभ्यास नहीं करना चाहिए |
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