।। श्री सीतारामाभ्यां
नम:।। ।। श्रीमते करूणासिन्धुवे नम:।।
''रसिकाचार्य श्री
करूणासिन्धु जी महाराज'' को
पुष्पांजलि
अथक कर्मरत, अविरत जाग्रत, बहुविधि अथ-इति ज्ञाता।
अगणित संत
उपकृत तुमसे, रास
रसिक फल दाता।।
श्री मानस ललित ललाम सुटीका आनन्द लहरि प्रदाता।
यश वैभव से अभिसिंचित हो , यश: शेष तव गाथा।।1।।
रसिकाचार्य, धर्म संरक्षक, तुलसी रामायण उदगाता।
स्मृति, वेद, पुराण आदि के प्रखर प्रवर व्याख्याता।।
चारूशिला प्रिय सन्त शिरोमणि, धर्म सनातन त्राता।
भक्ति - मार्ग के संवाहक हो , शत धर्म.ग्रन्थ निर्माता ।।2।।
करूणा की प्रतिमूर्ति कहूँ या, भक्त् शिरोमणि पण्डित ।
सहृदय, सरल, विवेकी, सदगुण, मनुज-प्रेम से स्पन्दित ।।
राम भक्तिमय, ज्ञान
सिन्धु हे, करूणासिन्धु सुमण्डित ।
श्रद्धा के कुछ
शब्द.पुष्प, अब गुरूवर है तुमको अर्पित ।।3।।
श्री हनुमत्कृपा प्राप्त निज पथ पर, द्विजवर भाव.प्रबल ।
स्वजन्म भूमि से सरयू तट तक, चले सतत अविचल ।।
हुआ प्रकाशित 'गढ़ प्रताप',ग्राम गोपालापुर शुभ स्थल ।
पूज्य पितामह साथ रहें, बन धतुरा-कुल के सम्बल।।4।
डा0 जटाशंकर त्रिपाठी ''जिज्ञासु
डा0 जटाशंकर त्रिपाठी ''जिज्ञासु
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