Friday 9 September 2016

मधुमेह एवं उच्च रक्तचाप

 वैसे तो मधुमेह एवं उच्च रक्तचाप अलग अलग बीमारियाँ हैं किन्तु इन दोनों बीमारियों के कतिपय लक्षण व कारण आपस में मिलते जुलते हैं। मधुमेह पीड़ित व्यक्ति को उच्च रक्तचाप रोग की सम्भावना अधिक बढ़ जाती है इसीलिए इन दोनों का एक साथ वर्णन करने की आवश्यकता समझी गयी। उच्च रक्तचाप या हाइपरटेंशन की स्थिति तब बनती है जब किसी वयस्क व्यक्ति का सिस्टोलिक दबाव १४० मि० मी०  और डायस्टोलिक दबाव ८९ मि० मी०मरकरी से लगातार अधिक रहता है। उच्च रक्तचाप के कारण हृदय को अधिक शक्ति से धड़कना पड़ता है जिससे हृदय का आकार बढ़ जाता है। इस स्थित से  कभी कभी हृदय पक्षाघात ब्व्ही हो जाता है। उच्च रक्तचाप के दुष्प्रभाव आँखों,गुर्दों,मष्तिष्क आदि अंगों में परिलक्षित हो सकते हैं। मधुमेह और उच्च रक्तचाप दोनों ही रोगों की सम्भावना उम्र बढ़ने के साथ अधिक हो जाती है। दोनों रोगों के कारण लगभग एक ही हैं जैसे धूम्रपान,मदिरासेवन,तनाव,विलासितापूर्ण जीवन शैली ,मोटापा,अधिक वसायुक्त भोजन आदि। अधिकांशतः मधुमेह के रोगों में हाइपरटेंशन भी पाया जाता है। अतः दोनों रोगों के कारणों में एकरूपता के कारण इनमें अन्योनाश्रित सम्बन्ध माना जाता है। 
यदि किसी मधुमेह पीड़ित व्यक्ति को उच्च रक्तचाप भी है तो उसमें हृदय धमनी रोग,एंजाइना ,हार्टअटैक,हार्ट फेलियर,पक्षाघात,गैगरिन,किडनीरोग,अंधापन आदि की सम्भावना बढ़ जाती है। दोनों रोगों पर गहन शोध करने पर यह तथ्य ज्ञात हुआ कि मधुमेह के रोगी यदि उच्च रक्तचाप से पीड़ित हैं तो उनकी औसत आयु ३३ प्रतिशत कम हो जाती है। ऐसे व्यक्ति की मृत्यु कम आयु में हो जाती है तथा ७५ प्रतिशत रोगोयों में मौत का कारण कोरोनरी धमनी रोग होता है। वैज्ञानिकों  ने यह पाया है कि मधुमेह रोगियों में उच्च रक्तचाप होने की सम्भावना सामान्य व्यक्तियों से दो गुनी हो जाती है किन्तु महिलाओं में पुरुषों की अपेक्षा अधिक सम्भावना होती है। मधुमेह रोगियों में उच्च रक्तचाप के कारण केवल सिस्टोलिक ब्लडप्रेशर बढ़ सकता है और अन्य में डायबिटीज के कारण गुर्दे प्रभावित होने से रक्तचाप बढ़ जाता है। यदि कोई व्यक्ति पूर्व में उच्च रक्तचाप से पीड़ित है और बाद में उसे मधुमेह रोग भी हो जाता है तो रक्तचाप और अधिक बढ़ जाता है तथा उसे नियन्त्रित करने में कठिनाई भी होती है। मधमेह में रक्त में सुगर की मात्रा बढ़ जाती है। रक्त में इन्सुलिन की मात्रा बढ़ने पर रक्त में कोलेस्ट्रॉल तथा ट्राईगिल्सराइड की मात्रा भी बढ़ सकती है।
सावधानियां :--
डाइबिटीज तथा उच्च रक्तचाप का साथ उसी प्रकार का माना जाता है जैसे करेला वह भी नीम चढ़ा। दोनों के एकसाथ हो जाने पर हृदय धमनी रोग,किडनी के रोग, हृदय फेलियर ,पक्षाघात व आँख के रोग प्रभावी हो जाते हैं। अतः ऐसे रोगियों यह सलाह है कि वे शीघ्रातिशीघ्र इसका उपचार कराकर दवाएं लेना आरम्भ कर दें जिसे रक्तचाप तथा रक्त में शर्करा की मात्रा पर प्रभावी नियंत्रण किया जा सके। उपचार के साथ कतिपय परहेज विशेषकर खानपान व दिनचर्या में सुधार भी लाया जाना आवश्यक है।यदि उच्च रक्तचाप का कोई व्यक्ति प्रथम चरण में अर्थात सिस्टोलिक रक्तचाप १०४ से १५० मि ० मी० मरकरी के मध्य हैतथा डायस्टोलिक रक्तचाप ९० से ९९ मि ० मी ० मर्करी के मध्य है और मधुमेह से ग्रसित नहीं है तो उसका उपचार ६ से १२ महीने तक उचित परहेज,व्यायाम,योग,वजन कम करने के प्रयास तथा नमक की मात्रा कम करने से सम्भव हो सकती है किन्तु यदि इतने रक्तचाप पर व्यक्ति मधुमेह से भी ग्रसित है तो उसके उपर्युक्त परहेज के साथ रक्तचाप घटाने की औषधि भी लेना आवश्यक होगा। इन दोनों रोगों के उपचार में निरन्तर योगाभ्यास करना अधिक लाभदायक होगा। 
मधुमेह का नियन्त्रण नियमित व्यायाम एवं योगाभ्यास से अधिक सरल हो जाता है। विभिन्न शोध मधुमेह को नियंत्रण में रखने हेतु योगासन एवं व्यायाम की प्रधान भूमिका स्वीकार करते हैं क्योंकि नियमित व्यायाम न केवल सक्रियता बढ़ता है बल्कि टाइप -२ के रोगी को पूरी तरह मधुमेह के नियंत्रण में सहायक भी होता है। उचित ढंग से किया गया व्यायाम व योगासन रक्त में शुगर की मात्रा को नियंत्रित के देता है किन्तु व्यायाम एवं योगासन के पूर्व सम्बन्धित विशेषज्ञों से परामर्श अवश्य कर लेना चाहिए। मधुमेह के मरीज की आयु व सुगर की स्थिति के अलावा दिल की सेहत भी मायने रखती है। इसी आधार पर प्रत्येक को उसकी स्थिति एवम आवश्यकता के अनुरूप व्यायाम व योगासन करने की सलाह आवश्यक है।
व्यायाम व योगासन से मिलने वाले लाभ निम्नवत हैं :--
१-दिल से सम्बन्धित बीमारियों व हार्टस्ट्रोक का खतरा कम हो जाता है। 
२- नियमित अभ्यास से रात्रि में अच्छी नींद आती है जिससे तनाव नियंत्रण में सहायता मिलती है। 
३- हानिकारक कोलेस्ट्रॉल और रक्तचाप दोनों नियंत्रित हो जाता है जिससे दैनिक कार्यों हेतु पर्याप्त ऊर्जा मिल जाती है। 
४-डायबिटीज के रोगोयों के लिए अपना वजन नियंत्रण करना आवश्यक है और यह नियमित व्यायाम व योगाभ्यास से ही सम्भव है। 
५-रक्त में शर्करा के बढ़े हुए स्तर से शरीर का रक्त संचार प्रभावित होता है। नियमित व्यायाम व योगासन से शरीर में रक्त संचार बेहतर हो जाता है और रक्त सम्पूर्ण शरीर में निर्बाध रूप से पहुंचने लगता है। 
   मधुमेह के रोगी के लिए प्रातःकाल टहलना भी विशेष लाभदायक माना जाता है। प्रतिदिन ४०-५० मिनट तक टहलना पर्याप्त होगा। अधिक देर तक कुर्सी पर बैठने का बाद थोड़ा थल लेना भी लाभदायक होगा। मांसपेशियों को मजबूत बनाये रखने हेतु वेट ट्रेनिंग टाइप -२ के मरीजों के लिए अधिक लाभदायक माना जाता है। नियमित योगासन करने से वसा निरन्तर कम हो जाती है और इन्सुलिन नियंत्रण में रहता है तथा तंत्रिकातंत्र बेहतर तरीके से अपने कार्य करने लगते हैं। योगासन में निरन्तरता बहुत आवश्यक मानी जाती है। नियमित रूप से एक दो घण्टे साईकिल चलना भी दिल को मजबूत करता है और फेफड़े बेहतर ढंग से अपना कार्य करने लगते हैं क्योंकि साईकिल चलाने पर शरीर के विभिन्न भागों में रक्त संचार बेहतर हो जाता है तथा वजन नियंत्रण में भी यह सहायक होता है। जिन मधुमेह रोगियों के पेट में रक्त संचार की कमी की समस्या हो उन्हें तैराकी भी लाभदायक होगा क्योंकि इसमें पैरों के संचालन में अधिक शक्ति नहीं लगानी पड़ती है और प्रकारान्तर से पूरे शरीर का व्यायाम हो जाता है। 
शरीर के वजन को घटाने के लिए भोजन में कैलोरी की मात्रा कम करनी पड़ेगी तथा भोजन में वसा की मात्रा २० ग्राम प्रतिदिन से अधिक नहीं होनी चाहिए। भोजन में नमक की मात्रा भी ६ ग्राम प्रतिदिन से अधिक नहीं होनी चाहिए। नमकीन,तले हुए पदार्थ का परित्याग करना होगा तथा भोजन में प्रोटीन की मात्रा भी कम कर देनी होगी। इस प्रकार पर्याप्त परहेज ,नियमित व्यायाम व योगासन से मधुमेह के कारण शरीर के अंगों पर होने वाले हानिकारक प्रभाव स्वतः कम हो जायेंगे। मधुमेह नियंत्रण हेतु उपरोक्त के साथ ही साथ औषधियों का प्रयोग भी लाभदायक होता है।      

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