Sunday 11 August 2013

ध्यान

ध्यान मानव जीवन की आध्यात्मिक उपलब्धि का एक ऐसा साधन है जहां से सत,चित एवं आनंद की सहज अनुभूति प्राप्त की जा सकती है / अपने दैनिक जीवन में हम अनेकानेक प्रकार की समस्याओं से ग्रस्त होते हैं /इन समस्याओं का सहज निदान ध्यान के माध्यम से प्राप्त करके अपने जीवन को सुखमय बना सकते हैं /ध्यान का तात्पर्य परमपिता परमेश्वर के प्रति समर्पण एवं उनकी सहज अनुभूति से है /अपने जीवन के व्यस्त क्षणों में १५-२० मिनट निकालकर यदि हम एकांत  में एकाग्र होकर स्थिरतापूर्वक पद्मासन अथवा सुखासन में बैठकर ईश्वर की अनुभूति कर लेते हैं, तो हमारे दैहिक ,दैविक एवं भौतिक तीनों प्रकार के कष्ट  स्वयमेव दूर हो सकते हैं और मन को असीम आनंद की प्राप्ति भी  हो जाती है / भारतीय योगशास्त्र में ध्यान का सर्वाधिक महत्व बताया गया है / सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ध्यान के लिए कोई भी व्यक्ति चाहे वह  बालक हो ,प्रौढ़ हो अथवा वृद्ध हो आसानी से अपने को इस मार्ग पर तत्पर कर सकता है / यहाँ तक कि रोगी व्यक्ति भी इसका सम्पूर्ण लाभ प्राप्त कर सकता है /
विधि :-
१-स्वच्छ एवं खुले वातावरण में पद्मासन अथवा सुखासन जिसमें भी सुविधा हो ,स्थिरतापूर्वक बैठ जाएँ I
 २- अपनी दोनों हथेलियाँ को घुटनों पर ज्ञानमुद्रा में रखें I अब दोनों आँखों को पूर्णतयः बंद कर लें और ध्यान आज्ञाचक्र [ दोनों भौहों के बीच ] पर केन्द्रित करते हुए अपने आराध्यदेव की मनोहर छवि  का स्मरण करें /  
३- आज्ञाचक्र पर आपको विभिन्न रंग के फौव्वारे अथवा प्रकाश बिंदु उभरते हुए दिखाई पड़ेंगे / उन्हें आप एकाग्र चित्त होकर निरंतर देखते रहें  तथा इस दौरान  ॐ  शब्द का मानसिक उच्चारण भी करते रहें  /
४- ध्यान  की यह अवधि १५ से २० मिनट अथवा सुविधानुसार अधिक समय तक भी हो सकती है /
५- १५-२० मिनट के पश्चात मध्यम स्वर में ॐ शब्द का उच्चारण प्रारम्भ करें और ५ मिनट तक इसे करते रहें ६- तत्पश्चात नासिका से ॐ शब्द का उच्चारण ५ मिनट तक करें /
७-उक्त क्रिया के बाद धीरे धीरे अपनी आँखों को खोलें और दोनों हथेलियों से मुखमंडल को स्पर्श करते हुए आसन से उठ जाएँ /
परिणाम :- 
 प्रायः ध्यान को मन का व्यायाम कहा जाता है / ध्यान से मन की एकाग्रता बनी रहती है तथा नैसर्गिक आनंद की प्राप्ति भी होती है / ध्यान प्रकारान्तर से उच्च  रक्तचाप को नियंत्रित करता है /  निरंतर ध्यान से ईश्वर के प्रति समर्पण के भाव जागृत होते हैं जिससे आत्मानुभूति का बोध होता रहता है / पूर्ण मनोयोग से ॐ शब्द के उच्चारण से ध्वनि परमात्मा तक सीधे पहुँचने लगती  है /इस तथ्य को एक उदाहरण द्वारा समझने का प्रयास कीजिये /किसी जलाशय के किनारे बैठकर स्वच्छ जल में पत्थर फेंकने का सौभाग्य आपको भी मिला होगा और आपने देखा होगा कि पत्थर फेंकते ही जल में गोलाकार लहरें उठती हैं /यदि एक ही जगह लगातार पत्थर फेंकते रहें तो वे गोलाकार लहरें धीरे- धीरे बड़ा आकार  लेकर आगे बढने लगती हैं और थोड़ी देर बाद ही वे दूसरे किनारे को छूने लगती हैं / इसी प्रकार आपके मुख से निकली हुई ॐ ध्वनि भी  धीरे- धीरे परमात्मा तक पहुंच जाती है और ईश्वरानुभूति का सौभाग्य प्राप्त हो जाता है  / 

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